बिहार में अगर रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी उन सीटों पर उम्मीदवार उतारती है, जहां जनता दल यू के उम्मीदवार लड़ेंगे और उसे हराने का प्रयास करती है तो इससे सिर्फ जदयू का नुकसान नहीं होना है। भितरघात का यह दांव भाजपा पर भी भारी पड़ सकता है। चिराग पासवान ने लोगों से खुल कर कहा है कि वे जदयू को वोट न दें। उन्होंने यह भी कहा है कि भाजपा और लोजपा मिल कर अगली सरकार बनाएंगे। पहली नजर में ऐसा लग रहा है कि इससे जदयू को नुकसान होगा और भाजपा को फायदा होगा। पर भाजपा को भी इसका नुकसान हो सकता है और संभव है कि लोजपा का भट्ठा बैठ जाए। इस संभावना को जानते हुए ही लोजपा के चार सांसद लगातार इस पक्ष में थे कि लोजपा को एनडीए में ही रहना चाहिए। बहरहाल, लोजपा नेता चिराग पासवान की अपील से आम बिहारी मतदाता में यह मैसेज जा रहा है कि भाजपा की शह पर वे इस किस्म के बयान दे रहे हैं।
सो, इससे हो सकता है कि भाजपा का कोर वोट जदयू के पक्ष में मतदान न करे या कम मतदान करे। पहले भी ऐसा होता रहा है और तभी भाजपा के साथ एलायंस में जदयू का स्ट्राइक रेट भाजपा से कम रहता है। इस बार वह थोड़ा ज्यादा हो सकता है। पर जब तक भाजपा की मंशा ठीक रही तब तक जदयू का कोर वोट और बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहने वाले बड़े वर्ग का वोट भाजपा को ट्रांसफर होता रहा। इस बार लोजपा के बयानों से जदयू और नीतीश समर्थकों में भी भाजपा की मंशा ठीक नहीं होने का मैसेज जा रहा है। ऐसे में अगर नीतीश के बनाए सामाजिक समीकरण का वोट भाजपा को ट्रांसफर नहीं होता है तो भाजपा को ज्यादा नुकसान होगा। क्योंकि भाजपा अपने कोर वोट के दम पर विधानसभा चुनाव में जो बेहतर हासिल कर सकती है वह 2015 के चुनाव में दिखा था। तब भाजपा के साथ पासवान की पार्टी भी थी, मांझी की पार्टी भी थी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी थी और बिना पार्टी के नेता मुकेश सहनी भी साथ थे। तब भी भाजपा सिर्फ 54 सीट जीत पाई। वैसे अब अलगाव से ठीक पहले भाजपा और जनता दल यू के तालमेल की घोषणा करने के लिए हुई प्रेस कांफ्रेंस बड़ी जद्दोजहद के बाद हुई थी। पहले परदे के पीछे खूब राजनीति हुई।
नीतीश कुमार ने लोजपा नेता चिराग पासवान की राजनीति को लेकर आपत्ति जताई तो भाजपा के नेता भाग कर उनके आवास पर पहुंचे और बयान दिया गया कि बिहार में एनडीए में वहीं रहेगा, जो नीतीश कुमार को नेता स्वीकार करेगा। इस दो टूक बयान के बाद भी दो घंटे प्रेस कांफ्रेंस टली। लेकिन जब हुई तो सुशील मोदी ने नीतीश कुमार के प्रति अपना समर्पण भी दिखाया और दोस्ती भी दिखाई। गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा में दो खेमे बन गए हैं। एक सुशील मोदी का पुराना खेमा है, जिसके हाथ में पिछले 20-25 साल से पार्टी की कमान है। इसमें सुशील मोदी के अलावा मंगल पांडेय, राधामोहन सिंह आदि नेता हैं। दूसरा खेमा अपेक्षाकृत नया है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि उसे भूपेंद्र यादव ने खड़ा कराया है। उसमें प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय आदि नेता हैं। इनके अलावा नेताओं की एक बड़ी जमात ऐसी है, जो सुशील मोदी का विरोध करती है पर कुछ कर नहीं पाती है। उनका कहना है कि सुशील मोदी की असली ताकत नीतीश हैं। इसलिए वे हरसंभव कोशिश करेंगे कि नीतीश की ताकत बनी रहे।