इतिहास की महान घटना का दिन निकट

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आने वाले महीनों में भारत अपने इतिहास की महान घटना देखेगा- महान कोरोना टीकाकरण। कोरोना का टीकाकरण हर देश में बहुप्रतिक्षित घटना है। भारत भी अपवाद नहीं है। कई टीके ट्रायल का फेज-3 पूरा कर चुके हैं। उन्हें आने वाले हफ्तों में इस्तेमाल की अनुमति मिल सकती है। हालांकि, जहां अच्छा टीका बनाना मुश्किल काम था, वहीं टीके के डोज मंगाना, बांटना और हर भारतीय की बांह में लगाना भी उतना ही चुनौतीपूर्ण है। यह बड़ी कवायद होगी और हमारी तैयारी अभी से शुरू हो जानी चाहिए। भले ही टीके का वास्तविक उत्पादन अभी कुछ महीने दूर हो, लेकिन अगर हम बतौर राष्ट्र चाहते हैं कि डोज उपलब्ध होते ही टीकाकरण का काम बिना बाधा हो पाए तो कई अन्य कदम अभी उठाने होंगे। भारत के लिए यह काम बड़ा है। अगर 130 करोड़ भारतीयों को टीके (जैसे मॉडर्ना या ऑक्सफोर्ड वैक्सीन) के दो डोज देने हैं, तो 260 करोड़ डोज देशभर में देने पड़ेंगे। अगर इसे 3-6 महीने में करने का लक्ष्य रखते हैं तो हम लाखों ट्रकों (कोल्ड स्टोरेज वाले) की बात कर रहे हैं, जो देशभर में लाखों यात्राएं करेंगे। इसका मतलब यह भी है कि लाखों स्वास्थ्यकर्मी हर शहर में टीकाकरण करेंगे। अगर यह काम सहजता से नहीं हुआ तो अव्यवस्था फैल जाएगी, जैसा कि भारत में अक्सर होता है। सारी दुनिया का ध्यान हम पर होगा। हमारे लिए यह बताने का मौका है कि हम यह काम अच्छी तरह से कर सकते हैं। हम वैक्सीन के लिए लंबी कतारों या अस्पताल में खत्म सप्लाई या परिवहन के दौरान खराब हुई वैक्सीन के दृश्य देखना नहीं चाहते। हम टीके की कालाबाजारी नहीं चाहते।

हम राजनीति नहीं चाहते (अमुक पार्टी शासित राज्य ने फलाना पार्टी शासित राज्य से बेहतर काम किया)। हम ट्विटर पर झगड़े नहीं चाहते। बल्कि दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि संकट में भारत कैसे साथ रहता है। जैसे हम विश्व कप फाइनल में, या सीमा पर झड़पों होने पर साथ रहते हैं, कोरोना टीकाकरण में भी वैसी ही एकता दिखानी होगी। हम सभी की इच्छा होनी चाहिए कि सभी को वैक्सीन मिले और इस पर धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा या किसी ऐसी चीज का असर न पड़े, जिस पर हम सामान्यत: लड़ते रहते हैं। क्योंकि यह सामान्य समय नहीं है। यह असाधारण समय है। यह इतिहास बनाने का समय है। सबसे पहले जरूरी है कि हर राज्य अपनी जरूरत बताए कि कितने डोज चाहिए, जिलों में बांटने की योजनाएं क्या हैं, कितने स्टाफ व अन्य सप्लाई की जरूरत है। सुईयां, सिरिंज और एल्कोहल युक्त रुई के फाहे, इन सभी की व्यवस्था अभी हो सकती है, भले ही वास्तविक टीका कुछ समय बाद आए। सबसे जरूरी यह है कि राज्य पूरे टीकाकरण की लागत की जानकारी दें, जो हजारों करोड़ रुपयों में होगी। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को इसपर बात करनी होगी कि कौन यह खर्च उठाएगा। यह सब अभी ही हो जाना चाहिए। हम यह बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि टीके के डोज कस्टम में रखे-रखे खराब हों और राज्य-केंद्र इसपर राजनीति करते रहें कि कौन डिलिवरी ट्रकों का पैसा देगा या कौन सप्लाई का

परिवहन करेगा। अगर हम अगले दो महीनों में ये सभी तैयारी कर लें, तो हम जनवरी के बाद से बड़े पैमाने पर टीकाकरण के लिए तैयार होंगे। हमारी प्राथमिकता स्पष्ट होनी चाहिए कि किसे वैक्सीन पहले मिलेगी। प्राथमिकताएं जोखिम (जैसे स्वास्थ्य कर्मियों को यह पहले मिले) और महामारी के फैलाव की तीव्रता (ऐसी जगह जहां ज्यादा मामले हैं) के आधार पर तय होंगी। यह सब भी अभी ही तय हो जाना चाहिए। हम नहीं चाहते कि शाम को टीवी पर चीख-चीखकर बहस हो कि यह पहले किसे मिलेगी, जबकि वैक्सीन का स्टॉक किसी गोदाम में रखा-रखा अपना प्रभाव खोता रहे। इसीलिए अभी योजना बनाएं। अगर हम सही तैयारी करें और प्राथमिकताएं तय करें, जो जनवरी 2021 से ही शुरुआत कर, मई 2021 तक ज्यादातर आबादी का टीकाकरण कर सकते हैं। इस तरह कोरोना खत्म कर जून से सामान्य आर्थिक गतिविधियों पर लौट सकते हैं। अगर सही योजना बनाकर क्रियान्वयन नहीं करेंगे, तो 6-12 महीनों की आर्थिक गतिविधि का नुकसान हो सकता है और वायरस से जानें तो जाएंगी ही। भारत यह कर सकता है अगर हम मिलकर काम करें। बेशक, तमाम योजनाओं के बावजूद बाधाएं आएंगी, जिनकी ऐसी बड़ी कवायद में आशंका होती ही है। हालांकि हम इस दौरान एक रहें। न पक्षपाती हों, न बहस करने वाले और न ही वामपंथीदक्षिणपंथी बनें। हम बस काम में लगे रहें, जब तक हम सभी का टीकाकरण न हो जाए। इसका क्रियान्वयन भारतीयों को सुरक्षित बनाएगा और हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी। आइए, हम मिलकर बाहें बढ़ाएं और वह टीका हासिल करें जिसका हमें इंतजार था। आइए, 2021 में मिलकर कोरोना को इतिहास बना दें।

चेतन भगत
( लेखक अंग्रेजी के उपन्यासकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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