..ताकत का दुरुपयोग ही विनाश का कारण

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असुरों का राजा था हिरण्यकशिपु। उसने तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्माजी प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकशिपु ने कहा- मुझे अमरता चाहिए। मैं कभी मरूं नहीं। ब्रह्माजी ने मुस्कुराकर कहा कि ऐसा तो संभव नहीं है। प्रकृति का नियम है जो पैदा हुआ है, उसको एक ना एक दिन तो मरना ही पड़ेगा। तुम कुछ और मांग लो।हिरण्यकशिपु ने काफी देर विचार किया। फिर उसने मांगा कि मुझे कोई मार ना सके, देवता, दैत्य, दानव, मानव, गंधर्व, किन्नर, पशु और पक्षी कोई ना मार सके। मैं ना अस्त्र से मरूं, न शस्त्र से। ना धरती पर मरूं, ना आकाश में। ना घर के अंदर मरूं, ना बाहर। ना दिन में मरूं और ना रात में। हिरण्यकशिपु ने हर तरह से खुद को सुरक्षित कर लिया। ब्रह्माजी भी समझ गए कि यह एक तरह से अमरता की ही इच्छा है। फिर भी उन्होंने हिरण्यकशिपु को ये वरदान दे दिया। वरदान पाने के बाद हिरण्यकशिपु ने बेखौफ देवताओं, मानवों सहित पूरी प्रकृति पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।

पूरी सृष्टि त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगी। सारे देवता ब्रह्माजी के पास पहुंचे। देवताओं ने ब्रह्माजी से कहा कि आपने हिरण्यकशिपु को ये कैसा वरदान दे दिया है, वो तो मारा नहीं जा सकता, अब उसके अत्याचारों से सबको मुक्ति कैसे मिलेगी? इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि आप लोग चिंता ना करें, भगवान विष्णु इसका हल निकालेंगे। हुआ भी वैसा ही। भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया, जो ना पूरा पशु था, ना मानव। उन्होंने हिरण्यकशिपु को घर की दहलीज पर मारा। जो ना घर के अंदर गिनी जाती है ना बाहर, उसे अपनी गोद में रखकर मारा, जो ना धरती थी ना आकाश, उसे अपने नाखूनों से मारा, जो ना अस्त्र थे ना शस्त्र। आप प्रकृति से कितनी भी चतुराई कर लें। वो नियंत्रण के लिए अपने पास एक रास्ता हमेशा रखती है। अपनी योग्यता और शक्ति का दुरुपयोग करने वालों का विनाश निश्चित है।

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