इस लेख को लिखने के एक दिन पहले भारत में कोरोना से 116 नई मौतें दर्ज की गईं। इसके विपरीत भारत से एक चौथाई आबादी वाले अमेरिका में 1897 मौतें हुईं, यानी भारत से 16 गुना ज्यादा। भारत की आबादी के 20वें हिस्से के बराबर आबादी वाले ब्रिटेन में 592 मौतें दर्ज हुईं यानी भारत से 5 गुना ज्यादा।
इन आंकड़ों को आबादी के आधार पर समायोजित करें, तो भारत की 116 नई मौतें, UK की 5 और अमेरिका की 29 मौतों के बराबर होंगी। जब UK और अमेरिका इस स्तर पर पहुंचेंगे, वहां बड़ा जश्न होगा। नए मामले, सक्रिय मामले, मौत, लगभग सभी पैमानों पर भारतीय कर्व फ्लैट हो चुका है। हालांकि, क्योंकि हम भारत हैं, इसलिए हमें ज्यादा श्रेय नहीं मिलता। हमें गरीब, तीसरी दुनिया का, विश्वास के लिए अयोग्य, अपने बल पर ऐसा कुछ हासिल करने में अक्षम मानते हैं।
भारत के अनुभव से सीखने की बजाय, पहली प्रतिक्रिया है भारतीय आंकड़ों पर शंका करना। हम मामलों की सही गणना नहीं कर रहे, पर्याप्त टेस्ट नहीं कर रहे, मौतों का सही वर्गीकरण नहीं कर रहे, ऐसी शंकाओं की फेहरिस्त लंबी है। यह सोचना कि भारतीय सरकार का गुप्त तंत्र पूरे देश में, हर जिले में आंकड़ों से छेड़छाड़ कर, महीनों खूबसूरत ट्रेंड बनाए रख सकता है, ज्यादा ही बड़ा दावा है।
षड्यंत्रों के लिए बहुत प्रयास और समायोजन लगता है। जहां तक टेस्टिंग की बात है, तो यह तर्क दिया जा सकता है कि बहुत भारतीयों के टेस्ट नहीं हुए, लेकिन पिछले कुछ महीनों में रैंडम टेस्टिंग बढ़ी है। अब तक लगभग सभी प्रमाण बताते हैं कि भारत का कोरोना कर्व फ्लैट हुआ है, जबकि अमेरिका, UK और ज्यादातर यूरोप में ऐसा नहीं हुआ। भारत की उपलब्धि में यह भी उल्लेखनीय है कि उसने यह कठोर लॉकडाउन के बिना (अप्रैल-मई 2020 के दो महीनों को छोड़कर) किया।
वास्तव में भारत के खुलने पर भी कोरोना मामलों की संख्या कम होती रही। बिहार चुनाव में बड़ी रैलियां हुईं। किसान आंदोलन में लाखों लोग नजदीकी संपर्क में हैं। पिछले हफ्ते तमिल फिल्म ‘मास्टर’ ने ओपनिंग के रिकॉर्ड तोड़े। घरेलू उड़ानों की यात्री संख्या कोरोना से पहले के स्तर के करीब है। फिर भी कोई ‘सुपर-स्प्रेडर’ घटना नहीं हुई। भारत को विश्वमंच पर यह कहने का बहुत मौका नहीं मिलता है, लेकिन कोरोना संकट से भारत का उबरना शानदार रहा है। यह सब वैक्सीन के बिना हुआ है, जो अब स्थिति और बेहतर बनाएगी।
भारत अर्थव्यवस्था को खोलने और कोरोना मामलों को कम स्तर पर लाने में सफल रहा है। भारत से सफल केवल वे देश ही हैं, जहां अलोकतांत्रिक शासन हैं, जो हमारे लिए बेंचमार्क नहीं हैं। इन शासनों में आप सरकार की आलोचना नहीं कर सकते, इसलिए कोरोना से जुड़ी नीतियों का वास्तविक असर जानना असंभव है।
हमने इतना अच्छा प्रदर्शन कैसे किया? मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, हालांकि यह पता करने में कि भारत के पक्ष में क्या रहा, विशेषज्ञ भी चकरा जाएंगे। हालांकि, ये संभावित कारण हो सकते हैं:
भारतीयों में हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो गई है। उदाहरण के लिए सीरोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक दिल्ली की आधी से ज्यादा आबादी में कोविड एंडीबॉडी हैं और उन्हें पहले ही कोरोना हो चुका था। उनमें लक्षण नहीं दिखे और वायरस आबादी से गुजर गया।
वायरस से लड़ने में भारतीयों की रोगप्रतिरोधक क्षमता पश्चिमी देशों से बेहतर है। यह तो विशेषज्ञ ही पता कर सकते हैं कि इसके पीछे हमारे बच्चों का धूल-मिट्टी में खेलना या हमारा खास मसालों वाला खाना या स्ट्रीट फूड खाना है या ज्यादा धूप लेना या फिर मोटापे की कम दर है। हालांकि वायरस ने हमारी तुलना में पश्चिमी देशों में ज्यादा घातक हमला किया था।
भारतीयों में सुरक्षित रहने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। वे जानते हैं कि बीमारी होने पर उन्हें बचाने कोई नहीं आएगा। अपने बचाव की मजबूत मानसिकता लोगों को सचेत रखती है। शुरुआती सख्त लॉकडाउन से लोगों में बीमारी के प्रति काफी जागरूकता आ गई थी, जिससे लोगों ने सावधानियों को गंभीरता से लिया। बेशक कुछ कारण अनजाने ही बने रहेंगे और यह ईश्वर का आशीर्वाद ही है कि हमें पश्चिमी देशों जैसी खलबली नहीं देखनी पड़ी।
कोरोना खत्म होने में बेशक अभी वक्त है। यह जरूरी है कि जब तक टीकाकरण अभियान पूरा नहीं होता, हम सचेत रहें। हालांकि, अब समय आ गया है कि दुनिया पहचाने कि भारत ने 140 करोड़ लोगों पर कोरोना के असर को बहुत कम कर कितनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह भी समय है कि वायरस से लड़ने में हमने जो मजबूती दिखाई है, उसके लिए अपनी पीठ थपथपाएं और ईश्वर को दया बनाए रखने के लिए धन्यवाद दें। साथ ही मास्क पहनना जारी रखें। शाबाश भारतीयों
चेतन भगत
(लेखक अंग्रेजी के उपन्यासकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)