बिहार में भाजपा व जदयू की सरकार भले ही गठित हो गई हो, लेकिन वहां की मुय विपक्षी पार्टी अब भी राजनीतिक पैंतरे चलने से बाज नहीं आ रही है। राजद चाहती है कि कुछ तिकड़म फंसाकर वह साा हासिल करे। अब उसने बिहार के सीएम नीतीश कुमार के पास सियासत का पासा फेंकते हुए उसे लोकसभा चुनाव में पीएम बनाने के लिए समर्थन देने का ऑफर भेजा है। राजद के वरिष्ठ नेता उदय नारायण चौधरी का यह कहना कि यदि मुयमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी जदयू के समर्थन से तेजस्वी यादव को बिहार का सीएम बनवा दें तो लोकसभा चुनाव में राजद लोकसभा चुनाव में नीतीश को पीएम के लिए समर्थन करेगी। बिहार विधानसभा में साापक्ष के पास 125 सदस्य हैं। जिनमें से भाजपा के 74 जदय के 43 मांझी की पार्टी और मुकेश साहनी की पार्टी के चार-चार विधायक हैं। बिहार में जिस दिन से नई सरकार का गठन हुआ तबसे ही सियासतदां इस बात का कयास लगा रहे हैं कि वहां की नीतीश सरकार इस बार बमुश्किल ही कार्यकाल पूरा करेगी। क्योंकि बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी जदय के नेता बराबर सियासी चाल चलते रहेंगे।
उदय नारायण चौधरी ने यह प्रस्ताव देकर राजद ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है। वह नीतीश की अगुआई में भाजपा को केंद्र में रोक पाएगी और बिहार का शासन भी हासिल कर सकती है। दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पहले ही कह दिया है कि बिहार में मध्यावधि चुनाव होंगे। कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह का यह कहना कि भाजपा की ओर से की जा रही फजीहत के बाद नीतीश कुमार को इस्तीफा दे देना चाहिए। वे पहले निर्णय लेते थे, अब नहीं ले पा रहे हैं। इस बात की ओर इशारे कर रहा है कि जदयू की पैंतरेबाजी में कांगे्रस भी प्रयासरत है। एक समय था जब नीतीश को प्रधानमंत्री पद का बड़ा दावेदार माना गया था, लेकिन इस दौड़ में नरेंद्र मोदी ने उन्हें मात दे दी थी। हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने जदयू के छह विधायकों को अपने पाले में कर लिया। जिस पर नीतीश कुमार का यह कहना कि वह अन्य राज्यों में अपने बलबूते चुनाव लड़ेगी। इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि नीतीश भी भाजपा से आगे कोई समझौता नहीं करना चाहेंगे।
नीतीश यह कहना कि वे नहीं चाहते थे कि मुख्यमंत्री बनें, लेकिन सहयोगी दल के कहने पर उन्होंने यह जिम्मेदारी संभाली। यानी बदले हुए राजनीतिक हालात में मुख्यमंत्री पद पर रहने की उनकी इच्छा अब नहीं रह गई है। बिहार में कैबिनेट का विस्तार भी अब तक नहीं हुआ है। इस देर का ठीकरा नीतीश भाजपा पर फोड़ चुके हैं। ऐसा लग रहा है कि जब से जदयू का कद बौना व भाजपा का कद लंबा हुआ है तब से नीतीश अकेले कोई नया फैसला नहीं ले पा रहे हैं। उधर राजद नेता भी नीतीश को अपने में मोह में फंसाने में जुटे हैं। दूसरी तरफ भाजपा की मांग बढ़ती जा रही है। वह पहले ही विधान परिषद के सभापति का पद और विधानसभा अध्यक्ष का पद ले चुकी है। भाजपा के एक नेता ने गृह विभाग छोडऩे की मांग नीतीश से कर दी है। भाजपा की बढ़ती मांगें, नीतीश को लेकर राजद की पैंतरेबाजी और नीतीश की विवशता से ऐसा लगने लगा है कि जो अटकलें बिहार के बारे में सियासतदां लगा रहे हैं, वह कभी भी सत्य साबित हो सकती है। बिहार की राजनीति चुनाव के समय से लेकर अबतक दिलचस्प बनी हुई हैं बिहार की राजनीति ऊंट की तरह कब करवट लेले कुछ नहीं कहा जा सकता।