हरिवंश का कॉलम: टेक्नोलॉजी से निकालो समाधान

0
234

गांधीवादी दादा धर्माधिकारी (सर्वोदय दार्शनिक) ने मार्क्स को एक संदर्भ में मसीहा कहा। सर्वोदयी दादा ने 1974 में हम युवाओं को बताया कि मार्क्स पहले दाशर्निक थे, जिन्होंने कहा गरीबी भाग्य की देन नहीं। इससे पहले किसी संत, महापुरुष या दार्शनिक ने ऐसा नहीं माना। मोबाइल, इंटरनेट, नई तकनीक आई, तो दादा का कथन याद आया।

नई तकनीक का विस्तार मार्क्स के विचारों से भी अधिक हुआ है। दुनिया के कोने-कोने में यह पहुंची। संस्कृतियों-भाषाओं की सरहद पार कर। इस कालखंड में सिलिकॉन वैली दुनिया का नया विचार केंद्र बना। भारत का बेंगलुरु इसी का देशज संस्करण है।

आज दुनिया में टेक्नोलॉजी आविष्कार करने वाले शहर नए प्रकाश स्तंभ हैं। यह ज्ञान युग है। ज्ञान युग में ही संभव है कि कोई नारायण मूर्ति अपनी प्रतिभा के बल धरातल से निकलकर दुनिया का यशस्वी उद्योगपति बन जाए। पुरानी धारणा थी कि उद्योगपति नसीब और नियति से वैसे घराने में जन्मते हैं। अब स्टार्टअप, नई टेक्नोलॉजी से यह उपलब्धि एक प्रतिभाशाली गरीब युवक के लिए भी संभव है।

नई टेक्नोलॉजी से भारत में कितने लोग जुड़े हैं? 102 करोड़ (आबादी का 78%) के पास मोबाइल है। 50 फीसदी के पास इंटरनेट है। 40 करोड़ सोशल मीडिया यूजर्स हैं। ताजा सूचना के अनुसार, गांवों में इंटरनेट प्रयोग करने वाले शहरों की अपेक्षा बढ़े हैं। इतनी बड़ी आबादी- युवा, नई टेक्नोलॉजी से जुड़े हैं।

क्या वे आसपास की दुनिया खूबसूरत बनाना चाहते हैं? युवा बदलाव के प्रतीक हैं। पर आज भारत के युवा सामाजिक दायित्व से प्रेरित हैं या भौतिक सुख व बगैर परिश्रम धन की चाहत उनकी प्रेरणा है? बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा था कि एक युवक के जीवन में अंधकारमय पल होता है, जब वह बिना परिश्रम अकूत धन चाहता है। तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, पर कैसे?

दुनिया में पोर्नोग्राफी देखने वाले देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। टेक्नोलॉजी से जुड़े युवाओं की प्राथमिकता थोड़ी बदल जाए, तो देश बदल जाएगा। जो टेक्नोलॉजी प्रेमी हैं, वे रामसेवक शर्मा की पुस्तक ‘द मेकिंग ऑफ आधार: वर्ल्ड लार्जेस्ट आईडेंटिटी प्लेटफार्म’ जरूर पढ़ें। आईआईटी कानपुर से वह पढ़े। आईएएस बने। अमेरिका से पढ़ाई की। सिलिकन वैली का आकर्षक प्रस्ताव छोड़ा। मुल्क लौटे। अनेक महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद संभाला।

समृद्ध अनुभव के बाद आधार के लिए चुने गए। नंदन नीलेकणि के साथ इस प्रोजेक्ट को मुकाम तक पहुंचाया। 1983 से प्रशासन में उन्होंने कंप्यूटर का इस्तेमाल किया। बड़े पैमाने पर होने वाले विभागीय स्थानांतरण में। भूमि रिकॉर्ड अपडेट करने में। चुनावों से लेकर खोए और मिले हथियारों के डाटा बेस निजी कंप्यूटर पर तैयार कर। अपराध के अनेक अनसुलझे गुत्थी सुलझाकर।

प्रशासन में ऐसे अनेक ‘इनोवेटिव प्रयोग’ 1985 में किए। जिला अधिकारी के रूप में आरएस शर्मा और आईआईटी कानपुर के उनके मित्र अरविंद वर्मा (उस जिले के पुलिस अधीक्षक), दोनों ने मिलकर 1985 में ‘कंप्यूटर इन डिस्ट्रिक एडमिनिस्ट्रेशन’ बुकलेट लिखी। बाद में चलकर यह ई-गवर्नेंस का मुख्य थीम बना। याद रखिए ये प्रयोग 1985 के आसपास हो रहे थे।

शायद दुनिया को तब इसकी आहट नहीं थी। हम भारतीय नए प्रयोग के प्रति संजीदा होते, तो दुनिया में गवर्नेंस क्षेत्र में टेक्नोलॉजी से बदलाव के अगुआ होते। हमारी राजनीति या विधायिका इन प्रयोगों के प्रति सजग होती, तो क्या भारत में आज ‘डिजिटल इंडिया’ का अभियान चलाना पड़ता?

आईटी इंडस्ट्री में हमारा डंका दुनिया में बजा। यह प्राइवेट सेक्टर का उद्यम-प्रयास था। यह सब जानना ‘आई ओपनर’ है। पर सारे प्रयास निजी थे। इन चीजों को संस्थागत मदद मिलती, सरकार के स्तर पर इन्हें अपनाया जाता, तो आज भारत टेक्नोलॉजी के बल गवर्नेंस के क्षेत्र में कहां पहुंचा होता?

आधार से डीबीटी (डायरेक्ट बैनिफिट ट्रांसफर) का जन्म। लीकेज का बंद होना। रेल, सरकारी प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध नियंत्रण में तकनीक का इस्तेमाल, जैसे न जाने कितने क्षेत्रों में कंप्यूटर प्रयोग, डाटा एनालिसिस, आईसीटी का उपयोग आज जीवन का हिस्सा है। यह सब दशकों पहले मुमकिन था।

हमारी व्यवस्था में ऐसे प्रयोगों को बढ़ावा देने, अपनाने, उत्साहित करने का माहौल नहीं था। खासतौर से नौकरशाही, तो पटरी-लीक से उतरना नहीं चाहती। आधार प्रोजेक्ट के विवरण से भी स्पष्ट है कि जो ऐसे नये प्रयोग करते हैं, वह चाहे प्रशासन हो या व्यवस्था, अकेले होते हैं। उनके निजी मनोबल, संकल्प से ऐसी चीजें संभव होती हैं।

पुस्तक से यह निष्कर्ष साफ है कि हम ऐसे अधिक से अधिक टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट बनाएं, तो हमारे देश के गवर्नेंस और देशवासियों के जीवन पर चमत्कारी असर होगा। महज युवा एक संकल्प कर लें कि वे सोशल मीडिया पर जो रोज लगभग 2.30 घंटे गुजारते हैं, उसका एक हिस्सा अपने आसपास के जीवन को बेहतर बनाने में लगाएं। सार्वजनिक योजनाओं पर निगाह रखें। हर चुनौती का समाधान टेक्नोलॉजी से निकालने के लिए तत्पर हों, तो हालात बदल जाएंगे।

हरिवंश
(लेखक राज्यसभा के उपसभापति हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here