कृषि कानून को रद कराने के लिए जहां देश के किसान संगठन आंदोलित है और वह अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए संघर्षरत हैं, वहीं इस आंदोलन को हवा देने व किसानों का उत्साह बढ़ाने के लिए विपक्षी पाटिर्या पर्दे के पीछे से लामबंद हैं। भाजपा नेता भी इन कानूनों के समर्थन में किसान सभा और गांवों में जाकर किसान चौपाल लगाकर इन कानूनों का महत्व बताने का प्रयास कर रहे हैं। इसी दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने ट्वीट में राहुल को निशाना बनाया है। उन्होंने एक वीडियो के हवाले से बताना चाहा है कि वीडियो के मुताबिक राहुल गांधी पिछली लोकसभा में एक अधिवेशन के दौरान इन कानूनों के समर्थन में कहते हैं किसानों को बिचौलियों से राहत दिलाने के लिए पीएम मोदी से आग्रह किया था जो उन्होंने ठंडे बस्ते में डाल दिया। उन्होंने किसानों के दर्द को बयान करते हुए बताया था कि किसानों का माल फैट्री में सीधा बेचने की व्यवस्था की जाए। भाजपा अध्यक्ष ने राहुल गांधी पर सवाल दागते हुए पूछा कि यह क्या है कि जो लोग पिछली लोकसभा अधिवेशनों में इन कानून की वकालत कर रहे थे, अब कानून बनने पर उसका विरोध कर रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष का यह कहना कि इस आंदोलन की आड़ में विपक्षी पार्टियां राजनीति कर रही हैं।
उनके बयान से ऐसा लग रहा है कि अब भाजपा नेता किसान समस्याओं को सुलझाने की बजाय विपक्षी पार्टियों को इस आंदोलन का जिम्मेदार ठहरा कर उनकी छवि को किसानों के समक्ष रख रहे हैं ताकि वह किसानों की सहानुभूति न पा सकें। भाजपा नेताओं का उद्देश्य कि किसान पंचायत के माध्यम से विपक्षी पार्टियों का चेहरा किसानों के समक्ष लाना है, जिससे विपक्षी पार्टियों की सरकार को घेरने की रणनीति विफल हो जाए। वह इस बात की भी परवाह नहीं कर रही है कि उसके गठबंधन में शामिल उसकी सहयोगी पार्टी पंजाब की अकाली दल व राजस्थान की आरएलपी भी इस मुददे पर उसका साथ छोड़ गई है। आरएलपी के हनुमान बेनिवाल किसानों के साथ आ गए हैं। नागौर से सांसद हनुमान बेनिवाल का यह कहना कि जरूरत पड़ी तो वह लोकसभा से भी इस्तीफा दे देंगे, किन्तु किसानों का अहित नहीं होने देंगे, राजस्थान के किसानों में अपनी पैठ बनाना है। जो पार्टियां एनडीए के साथ छोड़ रही हैं, वह चाहती है कि इस मुददे पर यदि किसानों के हित में बोला जाएगा तो आने वाले चुनाव में उन्हें किसानों का समर्थन मिलेगा।
जो गैर भाजपाई दल कृर्षि कानून पर चुप्पी साधे हुए हैं उन्हें भी किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि केंद्र सरकार किसानों को नाराज नहीं करना चाहती, वह उन्हें कानून का महत्व समझाना चाहती है इसी को लेकर किसान संगठनों से एक बार फिर मंगलवार को वार्ता करना चाहती है। जहां सरकार इन कानून को रद करने के मूड में नहीं है, वहीं किसान संगठन भी कानून वापस लेने के लिए बराबर दबाव बना रहे हैं। सरकार और किसान दोनों ही अपनी-अपनी जिद पर डटे हैं। केंद्र सरकार का प्रयास होगा कि वह आंदोलित किसानों का गणतंत्र दिवस से पूर्व आंदोलन स्थगित कराए। उसने कुछ नेताओं को किसानों को समझाने के लिए लगाया है। मंगलवार को होने वाली वार्ता में किसान संगठनों ने अपने एजेंडे में वे सभी मांगे लिख दी हैं, जिनके लिए वह संघर्ष कर रहे हैं। यदि यह वार्ता सफल रही तो किसानों का आंदोलन समाप्त हो जाएगा, यदि वार्ता विफल रही तो यह आंदोलन लंबा चलेगा। आंदोलन जितना लंबा होगा, वह उतना ही ताकतवर होगा,योंकि इससे और अधिक किसान जुड़ेंगे। वार्ता का परिणाम या होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।