योग्यता कभी खत्म नहीं होती निजी संबंध खत्म ना करें

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चैतन्य महाप्रभु के एक मित्र थे रघुनाथ शास्त्री। दोनों बचपन से ही घनिष्ठ मित्र थे। दोनों ही बहुत विद्वान थे। एक दिन दोनों मित्र नाव में बैठकर गंगा नदी पार कर रहे थे। उन दिनों चैतन्य महाप्रभु ने बड़ी तपस्या के साथ अपने पूरे ज्ञान और अनुभव का उपयोग करते हुए एक न्याय शास्त्र की रचना की थी। यात्रा करते समय चैतन्य महाप्रभु ने सोचा कि मुझे मेरे मित्र से इस न्याय शास्त्र पर राय लेनी चाहिए। उन्होंने रघुनाथ शास्त्री से कहा, भाई इस शास्त्र को पढ़ो। मैंने बहुत दिल से लिखा है। मुझे भरोसा है कि ये बहुत पढ़ा जाएगा और इसे बहुत ख्याति भी मिलेगी। अगर इसमें कोई कमी होगी तो तुम जैसा विद्वान उसे दूर भी कर देगा। मित्र के कहने पर रघुनाथ शास्त्री ने उस ग्रंथ को पढ़ा शुरू कर दिया।

पढ़ते-पढ़ते शास्त्रीजी की आंखों से आंसु बहने लगे। चैतन्य बोले, मित्र क्या बात है? तुम रो क्यों रहे हो? क्या मुझसे कोई भूल हो गई है। शास्त्रीजी बोले, चैतन्य, तुम्हें शायद मालूम नहीं है, मैंने भी बहुत मेहनत के बाद न्याय विषय पर ही एक ग्रंथ की रचना की है। मैंने भी ऐसा ही सोचा है कि मेरे ग्रंथ को बहुत लोग पढ़ेंगे और ये बहुत प्रसिद्ध हो जाएगा। इससे मुझे यश भी मिलेगा। वर्षों की तपस्या के बाद मेरा ग्रंथ पूरा हुआ है, लेकिन तुम्हारा शास्त्र पढऩे के बाद मुझे ये समझ आया कि तुम्हारे ग्रंथ के सामने मेरा ग्रंथ कुछ भी नहीं है। तुम्हारा ग्रंथ सूर्य है और मेरा ग्रंथ एक छोटा सा दीपक की तरह है।चैतन्य महाप्रभु ने कहा, बस इतनी सी बात है। ये बोलकर चैतन्य ने अपना ग्रंथ उठाकर गंगा नदी में बहा दिया।

सीख: एक मित्र के प्रति दूसरे मित्र का ये भाव हमें ये संदेश देता है कि हमारी ख्याति, हमारा यश हमारी निजी संबंधों से ऊपर नहीं होना चाहिए। अपनी योग्यता से हमें संसार में बहुत कुछ मिलेगा। लेकिन, जब व्यक्तिगत रिश्ते जैसे पति-पत्नी, भाई-भाई क्या मित्रता का रिश्ता निभाना हो तो योग्यता को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए। चैतन्य महाप्रभु ने इसके बाद भी बहुत ख्याति मिली। योग्यता तो जीवनभर साथ रहती है। इसीलिए योग्यता की वजह से रिश्तों को नजरअंदाज न करें। योग्यता के कारण संबंध खराब नहीं होना चाहिए।

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