राजनीति में जनहित की दरकार

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राजनीति को कुछ लोग गंदी व तुच्छ स्वार्थपूर्ण समझते हैं। जबकि राजनीति एक ऐसा मार्ग है जिसके द्वारा देश की सेवा की जा सकती है। गलती उन लोगों की भी नहीं है, जो राजनीति की वतर्मान स्थिति को देखकर उससे दूर भागते हैं। कुछ स्वार्थी नेताओं ने उनके समक्ष राजनीति का जो भयावह चेहरा प्रस्तुत किया उससे दूर भागना स्वभाविक है। किन्तु कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा की विदाई का वह दृश्य जिसमें गुजरे वत को याद करके प्रधानमंत्री मोदी का भावुक होना और उसके बाद गुलाम नबी आजाद का भी भावुक होना इस बात की दलील है कि राजनीति सुधार की ओर अग्रसर है। सोमवार को राज्यसभा के अंदर भावपूर्ण दृश्य थे वह एक मिसाल से कम नहीं थे। असर संदन में सत्तापक्ष व विपक्ष में तनातनी रहती है। बात-बात पर बहस होती है। दोनों में हूटिंग तक होती है। लेकिन राज्यसभा का वह दृश्य सबसे अनूठा, यादगार था जिसमें कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद को उनके कार्यकाल पूरा होने पर विदाई दी जा रही थी।

इस अवसर पर पीएम मोदी का पिछली यादों को ताजा करते हुए बार-बार भावुक होना और पानी पीना इस बात का प्रतीक है कि राजनीति एक सकारात्मक दिशा की ओर जा रही है। जिसकी कल्पना अच्छे लोग करते हैं अब राजनीति उसी ओर लौट रही है। बजट सत्र के दौरान किसान हित में राज्यसभा के अंदर कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद का आदरपुर्वक अपनी बात कहना जिसकी पीएम मोदी ने विदाई समारोह के दौरान स्वयं तारीफ करते हुए यह कहना कि गुलाम नबी आजाद एक आदर्श नेता हैं उनके लिए उनके द्वार सदैव खुलेंगे रहेंगे। इसके अलावा पीएम मोदी का गुलाम नबी आजाद के व्यतित्व को सेल्यूट करना एक अनूठा पल था। पीएम के इस वतव्य का दूसरे राजनीतिज्ञ लोग अन्य अटकलें लगा रहे हैं कि गुलाम नबी को यदि कांग्रेस में चिट्ठी लिखने के लिए नजर अंदाज किया जाता है तो वह भाजपा में जा सकते हैं जहां से उन्हें राज्य सभा में भेजा जा सकता है। बहरहाल ये तो अटकलें हैं जिनका कोई अर्थ अभी नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन पीएम का एक विपक्षी नेता के कार्यकाल पर भावुक होना उसके बाद गुलाम नबी आजाद का भी भावुक होना और पिछली घटनाओं को याद करते हुए उन्हें ताजा करना एक सकारात्मक पहल है।

जो बहुत कम देखने को मिलती है। यदि गुलाम नबी के व्यतित्व पर नजर डालें तो वह बेदाग नेता हैं, जिसका सभी दल के नेता सम्मान करते हैं। गुलाम नबी का संबंध कश्मीर से है, वह कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उस दौरान की एक आतंकी घटना का जिक्र करते हुए गुलाम नबी की सेवाओं को याद करना दोनों नेताओं की आम लोग के लिए सेवा भाव को दर्शाता है। गुलाम नबी आजाद संसद क्या पार्टी में जिस पद पर भी रहे उसकी गरिमा बनाए रखने का ध्यान रखा। काी स्वार्थ को हावी नहीं होने दिया। इस विदाई के पल को देखते हुए लगता है कि राजनीति में गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं की जरूरत है जो अपनी बात निहायत अदब के साथ कहते हैं, जिसका दूसरे पक्ष के नेता भी सम्मान करते हैं। ऐसे नेता हमारी गंदी होती जा रही राजनीति में सुधार पैदा कर सकते हैं। राजनीति में विपक्ष की या भूमिका होनी चाहिए इस बात को केवल गुलाम नबी आजाद जैसे नेता ही जानते हैं। आज हमारी राजनीति को ऐसे ही नेताओं की जरूरत है, जो स्वार्थपारिता से ऊपर उठते हुए जनहित की सोच रखते हैं, उस पर अमल करने का दम भी रखते हैं।

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