मूल्य वृद्धि पर कसनी होगी लगाम

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पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते मूल्य थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। इसको लेकर केंद्र सरकार विपक्ष के निशाने पर है। विपक्ष का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत नियंत्रित व नरम है तो भारत में इसके मूल्यों में वृद्धि यों हो रही है। लगातार 19वें दिन भारत में डीजल व पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि हो रही है। कोविड-19 महामारी की वजह से आर्थिक स्थिति में सुस्ती आ गई है। सरकारों को राजस्व में वृद्धि के लिए पेट्रोलियम उत्पाद एक आसान जरिया दिखाई दे रहा है। अप्रैल, मई में लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों से चालीस हजार करोड़ राजस्व प्राप्त किया है जबकि लॉकडाउन के दौरान पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री में काफी बढ़ोतरी हुई है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्धि कर की दरों को बढ़ाने से हो रही है। वर्तमान समय में देश के सामने विशेष आर्थिक परिस्थिति है। राजस्व संग्रह में वृद्धि आवश्यक है परन्तु एक ही क्षेत्र पर बोझ लाद देना कहां तक उचित है! सरकार को राजस्व संग्रह के लिए अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान देना चाहिए योंकि पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यवृद्धि का सीधा संबंध महंगाई से है।

देश की जनता कोविड महामारी तथा इससे हुई आर्थिक मंदी को झेल रही है। ऐसे में यदि महंगाई बढ़ी तो आम जनता की स्थिति का आकलन नहीं किया जा सकता। डीजल व पेट्रोल के मूल्य बढऩे पर वस्तुओं का भाड़ा बढ़ जाता है। आवागमन के साधन पर खर्च अधिक होने लगता है। मालभाड़ा बढऩे से वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है। इसका प्रभाव निर्माण, विकास, ख़ाद्यान्न, जीविकोपार्जन व उद्योगों पर भी पड़ा है। एक बार किसी भी कारण से यदि ढुलाई व वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं तो वे फिर कम नहीं होते। सार्वजनिक क्षेत्र के परिवहन के टिकटों का दाम जब डीजल और पेट्रोल के मूल्यवृद्धि के कारण बढ़ जाते हैं तो पुन: डीजल व पेट्रोल की कीमतों में कमी के बाद भी टिकट दर में कमी नहीं की जाती है। इसी तरह सजियां, फल, दवाई व अन्य सामग्री का मूल्य भी काफी हद तक डीजल व पेट्रोल की कीमतों पर निर्भर रहता है। इनके कीमतों में वृद्धि के चलते महंगाई का बढऩा निश्चित है। इसका सीधा प्रभाव देश की जनता पर पड़ेगा। खासतौर पर निम्न मध्य वर्ग व उच्च मध्यम वर्ग के परिवारों पर यह असहनीय होगा।

उच्च वर्ग पर महंगाई का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, वहीं निम्न वर्ग महंगाई के प्रभाव में अधिक नहीं आता, क्योंकि निम्नवर्ग की आवश्यकताएं हैं और उसे कई सरकारी योजनाओं का लाभ व ससिडी मिलती है। जबकि निम्न मध्यवर्ग व उच्च मध्यवर्ग को यह सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं। कोविड-19 महामारी में सर्वाधिक प्रभावित मध्यम वर्ग है। इस वर्ग की आय प्रभावित हुई है। छंटनी के चलते अनेक लोगों ने अपनी नौकरियां खोई हैं। पूंजी व बिक्री की समस्या है। मध्यम वर्ग का बजट पहले से ही बिगड़ा हुआ है। ऐसे में महंगाई बढ़ी तो उसको गृहस्थी चलाना मुश्किल हो जाएगा। यह वर्ग कर्ज पर मकान, गाड़ी आदि खरीदता है, उसकी ईएमआई देने में मुश्किलें आएंगी। लिहाजा फाइनेंसरों का कोपभोजन बनना पड़ेगा। उधर कृषि पर भी पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यवृद्धि का असर पड़ेगा। किसान सिंचाई व जुताई के लिए डीजल का प्रयोग करता है। वर्तमान समय में खरीफ की फसल की बुआई चल रही है। डीजल का दाम बढऩे पर खेती करना महंगा हो जाएगा। खासतौर पर धान की खेती में बुवाई व रोपाई में सिंचाई की जरूरत पड़ती है जो कि डीजल इंजन के सहारे अधिक है। उधर मंदी की मार झेल रहा आटोमोबाइल सेटर पर भी असर आने की संभावना बढ़ गयी है। डीजल सस्ता होने के नाते लोग आवागमन में व्यय कम करने की दृष्टि से डीजल गाडिय़ों को वरीयता देते थे।

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