पावर कंपनियां कानूनी छूट की हकदार नहीं

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ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऐतिहासिक जीत को लगान फिल्म के एक सीन से समझा जाए तो भारत और भी कई मोर्चों पर जीत सकता है। फिल्म में अंग्रेज टीम की बैटिंग के दौरान जब अनपढ़ ग्रामीण एक साथ गेंद का पीछा करते हैं, तब कप्तान आमिर खान सभी को अपनी जगह से कुशल फील्डिंग की प्रेरणा देकर मैच जितवा देते हैं। केशवानंद भारती मामले में 50 साल पहले इसी बात को संवैधानिक लहजे में सुप्रीम कोर्ट के जजों ने ‘शक्तियों का प्रथक्करण’ कहा था।

पिछले कुछ दिनों से वेेबसीरीज ‘तांडव’ और वॉट्सऐप की डाटा चोरी पर एक्टिविस्ट, अफसर, नेता, मंत्री, संत्री, जज, संसदीय समिति, नीति आयोग सभी एक्टिव हैं। लेकिन गलत तरीके से हो रही फील्डिंग की वजह से डिजिटल कंपनियों का विजयी चौका इस बार फिर सीमा रेखा के पार हो जाएगा। ट्रम्प और उनके सहयोगियों के सोशल मीडिया अकाउंट पर एकतरफा प्रतिबंध से साफ है कि फेसबुक व ट्विटर जैसी सुपर पावर कंपनियां अब इंटरमीडियरी की कानूनी छूट की हकदार नहीं हैं। भारत तो इन कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार है। इन कंपनियों से निपटने की रणनीति बनाने के पहले इन 9 विरोधाभासों को खत्म करना होगा:

1. ऐसी हर घटना के खुलासे के बाद संसदीय समिति इन कंपनियों के भारतीय प्रतिनिधियों से मीटिंग करती है। तो फिर उन्हीं भारतीय अधिकारियों को बुलाकर चेतावनी देने की बजाय, मंत्री द्वारा वॉट्सऐप के ग्लोबल सीईओ को पत्र लिखने का क्या औचित्य है?

2. क़ानून व आईटी मंत्री के पत्र में करोड़ों भारतीयों की डेटा सुरक्षा के अधिकार का जिक्र है। तो फिर चीनी एप्स की तर्ज पर इन कंपनियों पर भी दंडात्मक कार्रवाई हो जो करोड़ों भारतीयों का डाटा अमेरिका में नीलाम करते हैं।

3. वॉट्सऐप पेमेंट को रिजर्व बैंक ने अनुमति दी है, इसके लिए डाटा लोकलाइजेशन जरूरी है। भारत में डाटा रखने के वॉट्सएप के क्लेम सही हैं तो जवाबदेह अधिकारियों को आयरलैंड-अमेरिका में क्यों खोजना पड़ता है?
4. सरकार ने सवालों की तोप वॉट्सऐप पर दाग दी और वॉट्सऐप ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा फाइल करके मामले को संविधान पीठ के हवाले कर दिया। कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीनों में फैसला दिया है तो फिर इन मामलों में जल्द सुनवाई और फैसला क्यों नहीं होता?

5. जब सुप्रीम कोर्ट में ऐसा ही मामला तीन साल से संविधान पीठ के सम्मुख लंबित है तो फिर याचिका को ट्रांसफर करने की बजाय दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के गले में ही डाटा के सवालों की घंटी क्यों बांध दी?

6. वॉट्सऐप के कई स्पष्टीकरण साथ मिलाकर देखें तो यह साफ़ है कि पिछले 4 सालों से फेसबुक के साथ डाटा शेयरिंग का गोरखधंधा चल रहा है। तो फिर इस मसले पर अभी तक सरकार और नियामक संस्थाएं चुप क्यों रहे?

7. नए नियमों को जल्द लागू करने के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कई हलफनामे दिए हैं। इसके बावजूद पिछले 2 सालों से आईटी इंटरमीडियरीज रूल्स के मसौदे को अभी तक नोटिफाई क्यों नहीं किया गया?

8. संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश का कानून बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों ने डेटा सुरक्षा और प्राइवेसी पर जो फैसला दिया था, उस पर 3 साल बाद भी प्रभावी अमल नहीं होने से सभी संस्थाओं को परेशान होना पड़ रहा है।

9. पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट और सोशल मीडिया पॉलिसी के तहत सरकारी डाटा को विदेश भेजने के अपराध के लिए 3 साल की जेल हो सकती है। इसके बावजूद करोड़ों अफसर, मंत्री, जज सरकारी कामों में वॉट्सऐप, ज़ूम, गूगल, फेसबुक आदि इस्तेमाल क्यों और कैसे करते हैं?

वॉट्सऐप हो या टेलीग्राम, मुफ्त सेवा देने वाली हर कंपनी डाटा लूट के कारोबार में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर लिप्त है। 2014 में वॉट्सऐप के 46.5 करोड़ यूजर्स से उसकी वैल्यू लगभग 19 अरब डॉलर थी। अब वॉट्सऐप में लगभग 200 करोड़ यूजर्स के साथ इसकी वैल्यू 90 अरब डॉलर मान सकते हैं। इसमें भारत के 40 करोड़ लोगों की वजह से फेसबुक को किए जा रहे डाटा ट्रांसफर की वैल्यू करीब 18 अरब डॉलर (1.4 लाख करोड़ रु.) बैठती है। एक कंपनी से दूसरी कंपनी को होने वाले डाटा ट्रांसफर पर कंपनी कानून व आयकर कानून के तहत टैक्स लगाने का नियम है। इसे लागू करने के लिए नए आम बजट में और ज्यादा सटीक प्रावधान होने चाहिए।

2020 तक भारत को वैश्विक शक्ति बनाने का पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम का विजन तो साकार हुआ नहीं। अब नए दशक में अधूरे एजेंडे पूरा करने के लिए पूरे देश को मिलकर 20-20 मैच खेलना होगा। वॉट्सऐप विवाद से सबक लेकर फायर फाइटिंग की बजाय सोशल मीडिया, ओटीटी, एआई, स्टार्टअप, बिटकॉइन, गेमिंग ऐप, लोन ऐप जैसे भारी-भरकम प्रकल्पों को बढ़ावा देने के साथ उनके आर्थिक, विधिक और औपनिवेशिक पहलुओं की व्यवस्थित पड़ताल करनी होगी। गणतंत्र दिवस में रस्मी परेड के साथ संवैधानिक सिस्टम के सभी खिलाड़ी अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के संकल्प को सार्थक बनाएं तो फिर विजय चौक की रोशनी से पूरा देश जगमगा उठेगा।

विराग गुप्ता
( लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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