पाकिस्तान के भारत विरोधी दो फर्जी मुद्दे

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कोरोना के इस भयंकर संकट के दौर में पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को पता नहीं क्या हो गया है ! पाकिस्तानी जनता की कोरोना से रक्षा करने में अपनी नाकामी को छुपाने के लिए क्या उसे इस वक्त यही हथियार हाथ लगा है ? उसने भारत-विरोधी दो कदम उठाए हैं। एक तो उसने इस्लामी सहयोग संगठन से कहा है कि भारत में फैले ‘इस्लामद्रोह’ के विरुद्ध वह एक जांच कमेटी बिठाए और दूसरा, उसने बाकायदा बयान जारी करके अयोध्या में राम मंदिर बनाने का विरोध किया है। पाकिस्तान के पहले कदम का विरोध मालदीव और संयुक्त अरब अमारात के राजदूतों ने ही दो-टूक शब्दों में कर दिया है। इन दोनों मुस्लिम देशों के राजदूतों ने कहा है कि किसी देश की कुछ घटनाओं के आधार पर उसके विरुद्ध इस तरह की जांच बिठाना उचित नहीं है।

संयुक्तराष्ट्र संघ में पाकिस्तानी राजदूत मुनीर अकरम ने यह मुद्दा इस्लामी संगठन के राजदूतों की बैठक में उठाया था। उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना संकट का फायदा उठाकर भारत की हिंदुत्ववादी सरकार ने कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय कर लिया है और उसने पड़ौसी मुस्लिम देशों के शरणार्थियों में सांप्रदायिक भेदभाव का कानून बना दिया है। राजदूत अकरम से कोई पूछे कि ये मुद्दे कोरोना के पहले उठे थे या बाद में ? इन मुद्दों पर जिन्हें भारत सरकार का विरोध करना था, वे डटकर करते रहे। सरकार उन्हें छू भी नहीं सकती थी। हां, कश्मीरी नेताओं को कुछ वक्त के लिए नजरबंद जरुर किया गया लेकिन वह वैसा नहीं करती तो वहां खून की नदियां बह सकती थीं। दुख की बात यही है कि कोरोना के वक्त भी सिरफिरे आतंकवादी अपनी करनी से बाज नहीं आ रहे हैं।

क्या पाकिस्तान ने उनकी भर्त्सना की ? इसी तरह राम मंदिर बनाने का फैसला भी कोरोना के बहुत पहले आ चुका था। फैसला देनेवालों में एक जज मुसलमान भी थे। इसके अलावा वर्षों की जांच के बाद जजों ने यह पाया कि बाबरी मस्जिद को मंदिर तोड़कर ही बनाया गया था। इस तथ्य की पुष्टि भी ‘आरक्योलाजिकल सर्वे’ के एक विशेषज्ञ ने की है, जो कि एक मुसलमान ही है। इसके अलावा देश की लगभग सभी प्रमुख मुस्लिम संस्थाओं ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मान्य किया है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तानी सरकार द्वारा इस मामले को तूल देने की तुक क्या है ? पाकिस्तान के कई मेरे मित्र नेताओं को मैं यह विश्वास दिलाना चाहता हूं कि भारत के अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों से कहीं बेहतर है।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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