भारत और पाकिस्तान के बीच बॉर्डर पर शांति बनाए रखने के लिए सहमति बनी है। बुधवार को दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) की बैठक हुई। इसमें तय किया गया कि 24-45 फरवरी की रात से ही उन सभी पुराने समझौतों को फिर से अमल में लाया जाएगा, जो दोनों देशों के बीच सीजफायर एग्रीमेंट को लेकर हुए हैं।
ये कैसे होता है और इसके क्या मायने हैं?
हॉटलाइन दोनों देशों के DGMO के टेलिफोन लाइन पर बात करने की दशकों पुरानी व्यवस्था है। इसके जरिए वे लाइन ऑफ कंट्रोल पर शांति व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर नियमित तौर पर बात करते हैं। इससे पहले साल 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत हुई थी। तब भारत के DGMO ने पाकिस्तान DGMO को बताया था कि हमने पीओके में आतंकवादी ठिकानों पर ऑपरेशन किया है और ये कार्रवाई उरी में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में की गई है।
दोनों देशों के DGMO ने पहले से स्थापित और मौजूद तंत्र का प्रयोग किया है और उन्हीं समझौतों को दोहराया है, जिनका उल्लंघन होने पर नियंत्रण रेखा पर हिंसा बढ़ जाती है और सुरक्षा स्थिति गंभीर हो जाती है। इस बार महत्वपूर्ण यह है कि दोनों ही पक्षों ने साझा बयान जारी किया है। इससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, खासकर तब, जब दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध बहुत खराब स्तर पर हों।
गोलाबारी रुकने का मतलब ये नहीं है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई रुक जाएगी
दोनों देशों के बीच साल 2003 से ही संघर्ष विराम लागू है। हालांकि पाकिस्तान ने कई बार इसका उल्लंघन किया है, अधिकतर बार घुसपैठ का समर्थन करने के लिए। भारत ने हर बार इसका कड़ा जवाब भी दिया है। इसकी वजह से दोनों ही तरफ जानें गई हैं। 5 अगस्त को आर्टिकल 370 हटाने के बाद से पाकिस्तान की तरफ से नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बढ़ी है। सीमा पर रहने वाले नागरिकों को खासतौर पर निशाना बनाया गया है।
हिंसा की वजह से लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के दोनों तरफ रहने वाले आम लोग प्रभावित होते हैं। यदि पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ रुकेगी तो हिंसा भी कम होगी और आम लोगों को भी फायदा होगा। इसका मतलब ये नहीं है कि सतर्कता या तैनाती में कोई कमी आएगी। गोलाबारी रुकने का मतलब ये नहीं है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई रुक जाएगी।
सेना हर तरह के हालात पर नजर बनाए रखेगी और ग्राउंड पर मौजूद कमांडरों को घुसपैठियों के खिलाफ परिस्थितियों के हिसाब से सही निर्णय लेने की आजादी होगी। नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ रोकने के लिए बनाया गया ग्रिड मजबूत बना रहेगा। भारतीय सेना आतंकवाद और घुसपैठ के खिलाफ अपने अभियान जारी रखेगी। भारत अपना पक्ष साफ कर चुका है। पाकिस्तान से तब तक बात नहीं होगी जब तक वो घाटी में आतंकवादियों का समर्थन करना बंद नहीं करेगा।
शांति बहाल करने के लिए पाक को एक मौका दिया ही जाना चाहिए
पाकिस्तान इस समय कई मोर्चों पर लड़ रहा है। उसकी सेना पश्चिमी सीमा पर घिरी है। पाकिस्तान भी आतंकवाद का दंश झेल रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था बेहद खराब स्थिति में है। खाड़ी देश अब उस तत्परता से पाकिस्तान के साथ नहीं खड़े हैं जैसे पहले होते थे। अमेरिका भी पाकिस्तान पर आतंकवाद का समर्थन न करने का दबाव बना रहा है। इसके साथ ही वहां के आम लोग भी अब देश की सत्ता व्यवस्था और सेना पर सवाल उठाने लगे हैं। वहां के लोगों के पास अब जानकारी हासिल करने के पहले से ज्यादा मौके हैं।
क्या पाकिस्तान जैसा देश समझ गया है कि आतंकवाद का समर्थन करने का अब कोई मतलब नहीं रह गया है? इसी महीने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने कहा था कि उनका देश सभी दिशाओं में शांति के लिए हाथ बढ़ाएगा। पाकिस्तानी एयरफोर्स के स्नातक समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हमेशा से सभी मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास करता रहा है, इनमें जम्मू-कश्मीर का अहम मुद्दा भी शामिल है।
अब यह तो वक्त ही बताएगा कि ये बातचीत दोनों देशों के लिए टर्निंग पॉइंट साबित होती है कि नहीं। इस पर सवाल उठाने वाले बहुत लोग हैं, लेकिन शांति को एक मौका दिया ही जाना चाहिए। ये रास्ता जटिल होगा, लेकिन इसे भी आजमाना चाहिए। दोनों ही पक्षों को नियंत्रण रेखा के हालात को बारीकी से संभालना होगा। और जब रास्ता उबड़-खाबड़ हो जाए, जो होना ही है, तब हमें साझा बयान के अंतिम पैरा पर लौटना होगा।
इस साझा बयान के अंतिम पैराग्राफ में ‘दोनों ही पक्षों ने दोहराया है कि किसी भी अप्रत्याशित स्थिति या गलतफहमी को हल करने के लिए हॉटलाइन संपर्क और बॉर्डर फ्लैग मीटिंग की मौजूदा व्यवस्था का उपयोग किया जाएगा।’ विश्वास बहाल करना चुनौतीपूर्ण होगा। स्थिति के शांत होने से पहले, दोनों ही पक्षों को छोटी-छोटी बातों और मामूली परेशानियों को नजरअंदाज करना पड़ सकता है।
लेकिन, जान बचाने, हिंसा को कम करने और शांति बहाल करने की दिशा में उठाए जा रहे हर कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। कोई भी युद्ध नहीं चाहता है। दुनिया को युद्ध की जरूरत नहीं है। अभी जरूरत एक साथ मिलकर महामारी से लड़ने की है।
ले. जनरल (रिटा.) सतीश दुआ
(लेखक कश्मीर में भारतीय सेना के पूर्व कोर कमांडर रहे हैं और चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पद से रिटायर हुए हैं, ये उनके निजी विचार हैं)