ईरान में रईसी की जीत से दूसरे देशों में खुशी नहीं

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ईरान के राष्ट्रपति के चुनाव में इब्राहिम रईसी के जीतने पर वे सब लोग बहुत खुश हैं, जो ईरान में अपने आपको कट्टर राष्ट्रवादी कहते हैं। ईरान अपने आप को लाख इस्लामी राष्ट्र कहे लेकिन दुनिया के ज्यादातर इस्लामी राष्ट्रों से उसके संबंध सहज नहीं हैं। रईसी की जीत पर इस्राइल खफा है ही, सउदी अरब और एराक जैसे राष्ट्रों में भी खुशी का माहौल नहीं है।

कश्मीरी नेताओं से सीधा संवाद अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों की भी चिंता थोड़ी बढ़ गई है, क्योंकि उन्होंने ईरान के साथ जो परमाणु-सौदा किया था, उसको पुनर्जीवित करने में कठिनाइयाँ आ सकती हैं। रईसी ईरान के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। ईरान-एराक युद्ध के बाद ईरान में देशद्रोहियों को दंडित करने के लिए जो आयोग बना था, उसके सदस्य होने के कारण अमेरिका ने रईसी पर तरह-तरह के प्रतिबंध घोषित किए थे। उस आयोग को ‘हत्या आयोग’ के नाम से जाना जाता है। रईसी ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामैनी के परमप्रिय शिष्यों में से हैं।

यह माना जाता है कि खामैनी के बाद वे ही सर्वोच्च नेता के पद पर बैठेंगे। रईसी ने 2017 में भी हसन रुहानी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। इस बार ईरान के चुनाव आयोग ने हसन रुहानी के अलावा कई महत्वपूर्ण ईरानी नेताओं की उम्मीदवारी को रद्द कर दिया था। सर्वोच्च नेता खामैनी ने पहले से ही रईसी को समर्थन दे दिया था। इसीलिए उनका चुना जाना तो तय ही था। उन्हें कुल पड़े हुए वोटों के 62 प्रतिशत वोट मिले हैं लेकिन कुल मतदाताओं के एक-तिहाई से भी कम वोट उन्हें मिले हैं। लगभग 6 करोड़ मतदाताओं में से 2 करोड़ 90 लाख ने वोट डाले।

उनमें से भी रईसी को 1 करोड़ 79 लाख वोट ही मिले। ज्यादातर लोग वोट डालने ही नहीं गए। रईसी के पहले आठ साल तक राष्ट्रपति रहे हसन रुहानी ज़रा उदारवादी नेता थे। उनके ज़माने में छह राष्ट्रों ने मिलकर ईरान को परमाणु शस्त्रास्त्र विरक्ति के लिए तैयार किया और ईरान-विरोधी राष्ट्रों ने भी ईरान के प्रति नरम रुख अपनाया लेकिन आर्थिक दुरवस्था, मंहगाई, बेरोजगारी और जन-प्रदर्शनों ने रुहानी को तंग करके रख दिया था।

ट्विटर और टीवी की निरंकुशता अब रईसी की जीत पर रूस, तुर्की, सीरिया, मलेशिया और संयुक्त अरब अमारात जैसे देशों ने उनको बधाई दी है लेकिन अन्तरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन जैसी संस्थाओं ने चिंता व्यक्त की है। ईरान के परमाणु-समझौते को पुनजीर्वित करने की जो बात बाइडन-प्रशासन ने फिर से शुरु की थी, उम्मीद है कि अमेरिका उस पर कायम रहेगा और ट्रंप-प्रशासन के प्रतिबंधों को उठा लेने की कोशिश करेगा। रईसी और ईरान के अपने राष्ट्रहित में यह होगा कि यह नई सरकार परमाणु-समझौते पर व्यावहारिक रवैया अपनाए और ईरान को आर्थिक संकट से बाहर निकाले।

डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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