रामानुज वैष्णव संप्रदाय के बहुत बड़े आचार्य थे। इनकी परंपरा में आगे जो शिष्य हुए, उनमें कबीरदास भी शामिल थे। कभी-कभी रामानुज ऐसी बातें बोल देते थे कि सुनने वाले हैरान रह जाते थे। एक दिन एक प्रतिष्ठित व्यक्तिरामानुज के पास आया और उसने कहा, कि मैं आपको अपना गुरु बनाना चाहता हूं। आप मुझे कोई मंत्र दे दीजिए। रामानुज बोले कि आए हो तो मंत्र अवश्य दूंगा, लेकिन पहले मुझे ये बताओ कि क्या तुमने कभी किसी से प्रेम किया है। उस व्यक्ति ने कहा कि प्रेम तो बंधन है और मैं तो दुनियादारी छोडऩा चाहता हूं। रामानुज ने कहा कि छोडि़ए दुनियादारी। तुमने कभी किसी स्त्री से, माता-पिता से, भाई-बहन से या किसी मित्र से प्रेम किया है। व्यक्ति बोला कि नहीं, मैं प्रेम को नहीं मानता, क्योंकि अगर मैं प्रेम करने लगूंगा तो मैं बंध जाऊंगा। मेरे मन में कई कामनाएं जाग जाएंगी।
इसीलिए सबकुछ छोडऩा चाहता हूं। तभी तो आपका शिष्य बनने के लिए यहां आया हूं। रामानुज ने कहा कि अगर तुम किसी से प्रेम नहीं कर सकते तो भक्ति भी नहीं कर पाओगे, क्योंकि प्रेम का विस्तार रूप भक्ति है और प्रेम का ठुकराया रूप वासना है। वासना तो तुहारे भीतर जागी रहेगी, फिर भक्ति कैसे करोगे, प्रेम एक स्वभाव है, इसमें शरीर नहीं देखा जाता है। इसमें आत्मा देखी जाती है। इसीलिए जो प्रेम कर सकता है, वही भक्ति कर सकता है। आज के समय में रामानुज की ये शिक्षा बड़ी काम आती है। आज काफी लोगों का प्रेम सिर्फ शरीर तक टिका है। जो लोग सच्चा प्रेम करना चाहते हैं, उन्हें एक-दूसरे के शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से प्रेम करना चाहिए। आज लोगों के बीच नि:स्वार्थ प्रेम नहीं है, इसी वजह से घर-परिवार में कलह रहता है। अगर परिवार का कलह मिटाना है और समाज से भेदभाव दूर करना है तो प्रेम को समझना होगा।