किसान आंदोलन की चिंता नहीं अब सरकार को

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भाजपा और उसकी केंद्र सरकार को अब किसान आंदोलन की चिंता नहीं है। कम से कम ऐसा दिख नहीं रहा है कि सरकार किसानों के आंदोलन की चिंता कर रही है। कई राज्यों के किसान 85 दिन से दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं और दूसरी ओर प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के सारे मंत्री और पार्टी के सारे नेता यह समझाने में लगे हैं कि केंद्र का बनाया कृषि कानून कितना शानदार है और इससे किसानों को कितना फायदा होगा। एक तरफ किसानों के आंदोलन को पवित्र बताया जाता है और उन्हें बातचीत का न्योता दिया जाता है तो दूसरी ओर उसे कम्युनिस्टों, खालिस्तानियों और देशद्रोहियों का आंदोलन बताया जाता है। भाजपा और सरकार को लग रहा है कि यह ट्रिक काम कर रही है इसलिए उसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। सो, पार्टी अब इस आंदोलन से हुए राजनीतिक नुकसान की चिंता में लगी है और उस नुकसान की कैसे भरपाई हो इसकी रणनीति बना रही है। यह नहीं हो रहा है कि सरकार कृषि कानूनों की कमियों को स्वीकार करे और खुले दिल से किसानों से बात करके उनकी समस्याओं को दूर करे। सरकार ऐसा करती है तो भाजपा के राजनीतिक नुकसान की भरपाई के लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं होगी।

लेकिन उसकी बजाय भाजपा के शीर्ष नेता और केंद्रीय मंत्री इस पर विचार कर रहे हैं कि किसानों की बात माने बगैर कैसे राजनीतिक नुकसान की भरपाई हो? असल में भाजपा को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश व उाराखंड के एक बड़े हिस्से में राजनीतिक नुकसान की आशंका दिख रही है। तभी मंगलवार को भाजपा के शीर्ष नेताओं की एक अहम बैठक हुई, जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आदि शामिल हुए। इसमें किसान आंदोलन से प्रभावित राज्यों के सांसदों, खास कर जाट सांसदों, विधायकों और संगठन के नेताओं को बुलाया गया था और उनसे कहा गया कि वे अपने इलाके में ज्यादा सक्रिय तरीके से काम करें और किसानों को समझाएं कि सरकार ने कितना अच्छा काम किया है। इसके साथ ही यह भी बताने को कहा गया है कि आंदोलन किसानों का नहीं है, बल्कि कम्युनिस्टों का है।भाजपा के शीर्ष नेताओं को जो जमीनी फीडबैक मिली है उसमें यह अनुमान लगाया गया है कि पार्टी को 40 से ज्यादा सीटों का नुकसान हो सकता है। पंजाब में भाजपा के नेता मान रहे हैं कि राज्य की सारी सीटों पर तो पार्टी को नुकसान होगी ही चंडीगढ़ की सीट बचानी भी मुश्किल होगी।

इसी तरह हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर भाजपा को नुकसान होगा। राजस्थान की कुछ सीटों पर भी भाजपा को नुकसान हो सकता है। कुल मिला कर 50 लोकसभा सीटों पर नुकसान का आकलन है। अभी लोकसभा के चुनाव दूर हैं फिर भी यह भाजपा के लिए चिंता की बात है क्योंकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में अगले ही साल चुनाव हैं और हरियाणा की सरकार अभी ही खतरे में आई दिख रही है।भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने बैठक करके पार्टी के सांसदों, विधायकों और संगठन के नेताओं को यह जिम्मेदारी तो सौंप दी कि वे अपने क्षेत्र में जाएं और किसानों को कृषि कानूनों के फायदे समझाएं और यह बताएं कि किसानों का आंदोलन असल में कम्युनिस्टों का आंदोलन है। पर मुश्किल यह है कि भाजपा के नेता किसानों का यह बात कैसे समझाएंगे? भाजपा का आईटी सेल क्या केंद्र सरकार के मंत्री सोशल मीडिया और मीडिया में चाहे कुछ भी कहें पर आंदोलन की हकीकत जमीनी स्तर पर लोगों को पता है। जब पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई जिलों में हर गांव और लगभग हर घर से लोग आंदोलन में शामिल होने के लिए गए हैं तो कोई नेता गांव के लोगों को कैसे समझा सकता है कि यह आंदोलन कम्युनिस्टों का है?

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