अब भविष्य की तरफ देखें

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कोविड-19 ने मजबूत जन स्वास्थ्य नीतियों की अहमियत को पहले से कहीं ज्यादा जाहिर कर दिया है। इससे हमारे समाज, समुदाय और लोगों को एहसास हुआ है कि अच्छी सेहत मानवता को मिला सबसे कीमती तोहफा है।

पिछले दो दशकों के दौरान गैर-संचार रोगों, जैसे दिल के मर्ज, डायबिटीज और सांस की बीमारियों का खतरा बढ़ा है। इसके कारणों में सामाजिक व जीवनशैली संबंधी तौर-तरीकों के साथ पर्यावरणीय कारण भी शामिल हैं। ऐसे में वित्त मंत्री द्वारा पेश बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछले साल के मुकाबले बजट में 137% की बढ़ोतरी के साथ पर्यावरण के स्वास्थ्य की तरफ भी ध्यान दिया गया है।

केंद्रीय बजट में रिन्यूएबल्स से लेकर हाइड्रोजन और यहां तक कि उपभोक्ता के पास अपनी बिजली कंपनी चुनने का विकल्प देने की भी बात की गई है। जहां सौर ऊर्जा निगम को 1,000 करोड़ रु. मिले, वहीं नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी को 1,500 करोड़ रु. का बजट मिला। साथ ही वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले 42 शहरी केंद्रों के लिए 2,217 करोड़ रु. की राशि मुहैया कराने का बजट में फैसला लिया गया। जो अगले पांच वर्षों के लिए हर साल लगभग 450 करोड़ रु. हुआ।

यही नहीं, सरकार ने गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए पुराने वाहनों को हटाने के लिए स्वैच्छिक वाहन स्क्रैपिंग नीति की बात भी की है। इसके तहत, निजी वाहनों को 20 साल बाद और व्यावसायिक वाहनों को 15 साल बाद स्वचलित फिटनेस केंद्रों में फिटनेस परीक्षण से गुजरना होगा।

2021-22 में वृहद हाइड्रोजन एनर्जी मिशन शुरू करने का भी फैसला हुआ है। कोयला खनन के लिए दी गई रकम में 30% की कटौती जैसे पर्यावरणीय सुधार के अनेक कदम उठाए गए हैं। कोयले का कम इस्तेमाल करने और अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने से प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आएगी।

यह सब बताता है कि केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट वैश्विक रुझानों के अनुरूप है। भारत में ग्रीन हाइड्रोजन संबंधी नई नीति जल्द ही जारी होने की घोषणा स्वागत योग्य है। कोयला अब भी भारत की ऊर्जा उत्पादन का बेस है और आने वाले 20 वर्षों या उससे भी अधिक सालों तक इस्तेमाल में बना रहेगा।

बजट में दक्षतापूर्ण तरीके से काम नहीं कर रहे कोयला बिजली घरों को बंद करने के बारे में किसी योजना का जिक्र नहीं है। बिजली घरों में उत्सर्जन में कमी लाने वाली प्रौद्योगिकी लगाने या नहीं लगाने पर उन्हें बंद करने का जिक्र नहीं है। बाकी देशों में बिजली उत्पादन में कोयले वाले बिजली घरों की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है क्योंकि सौर तथा वायु बिजली जैसे अक्षय ऊर्जा विकल्पों का फायदा वक्त के साथ और भी साफ नजर आने लगा है।

भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिन्होंने वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। राष्ट्रीय विद्युतीकरण रणनीति से भी ऊर्जा संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने में जरूरी तेजी आएगी, लेकिन किफायती अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी और योगदान बढ़ने के साथ भविष्य की तस्वीर साफ होती जा रही है। सौर और वायु बिजली को स्टोर करने वाली बैटरी स्टोरेज जैसी प्रौद्योगिकी में निवेश का काम स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होगा।

परिवहन क्षेत्र में सार्वजनिक बस सेवा को मजबूती देने के लिए बजट तो है, लेकिन इसका जिक्र नहीं है कि वे वाहन इलेक्ट्रिक होंगे या नहीं। किसी को भी वायु प्रदूषण के चरम पर पहुंचते स्तरों के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। जब देश 100 साल आगे की योजना के बारे में सोच रहा है, ऐसे में हम पीछे के बजाय भविष्य की तरफ देखें और दुनिया के लिए एक रोल मॉडल बनें कि कैसे पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाए बगैर भी विकास की इबारत लिखी जा सकती है।

नगरीय इलाकों में सार्वजनिक परिवहन बसों के लिए 18000 करोड़ रु. की राशि अगर पेट्रोल-डीजल बसों पर खर्च की गई तो बजट में साफ हवा के लिए की गई तमाम कोशिशों पर पानी फिर जाएगा। बजट में ब्रॉड गेज रेल पटरियों के 100% विद्युतीकरण और छोटे शहरों के लिए मेट्रो लाइट और मेट्रो नई सेवाएं शुरू करने के ऐलान पर अमल से लोगों के आवागमन के तौर-तरीकों में बदलाव आएगा और हवा की गुणवत्ता सुधरेगी। ठहराव के इस दौर में यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि हमारी वह दुनिया प्रदूषण की गिरफ्त में ना आए जिसे हम अपना घर कहते हैं।

आरती खोसला
(लेखिका निदेशक लामेट ट्रेंड्स हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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