ऐसे एक गोली से 40 मुर्गियां ढेर कर डाली थी नवाब हैदर ने…

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शिकार यात्रा में बादशाह के ‘जेंटिलमैन’ अंग्रेज दोस्तों, चहेती बेगमों, दिलजोई करने वाले मुलाजिमों और खूबसूरती के रखवाले फ्रेंच नाइयों के अलावा प्रसिद्ध चित्रकार माट्ज भी थे अवध के नवाबों के इतिहास में 1819 में एक नया मोड़ तब आया, जब नवाब गाजिउद्दीन हैदर ने खुद को ‘दिल्ली दरबार के दबदबे से आजाद’ घोषित कर दिया। दरअसल, तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंग्ज ने अपनी खास कूटनीति के तहत उन्हें यह कहकर ऐसे ऐलान के लिए बहकाया कि आखिर वे दिल्ली दरबार से किस बात में कम हैं, जो हमेशा के लिए उसके डिप्टी ही बने रहें? उन्हें तो खुद बादशाह होना चाहिए। फिर तो गाजिउद्दीन यह बादशाहत हासिल करके ही माने और जब तक वे मसनद पर रहे, उसका ताज उनके सिर पर सजा रहा। 1827 में उनका इंतकाल हुआ और उनके पुत्र नसीरुद्दीन हैदर गद्दीनशीन हुए तो रवायत के अनुसार उन्हें भी बादशाह ही कहा गया। इतिहास की पुस्तकों में इन नसीरुद्दीन हैदर के नाम एक बड़ा ही दिलचस्प ‘करिश्मा’ दर्ज है- अपनी इटैलियन बंदूक के एक फायर से चालीस मुर्गाबियों को ढेर कर डालने का।

प्रसिद्ध लखनऊविद डॉ. योगेश प्रवीन ने अपनी किताब ‘नवाबी के जलवे’ में इसका ऐसा रोचक वर्णन किया है। दरअसल, एक दिन नसीरुद्दीन को अचानक शिकार खेलने का शौक चर्रा गया। बादशाह तो थे ही, सो मामूली ढंग से खेलने निकल नहीं सकते थे। चिनहट की कठौता झील के किनारे स्थित नवाब आसफउद्दौला की बारादरी में डेरा डालकर खेमे लगाए गए तो बादशाह ने पहली शाम मुर्गाबियों के शिकार की तमन्ना जाहिर की। इंतजामकार इस फन में उनकी ‘महारत’ से नावाकिफ नहीं थे, इसलिए उन्होंने कोई पांच सौ शिकारी बाज पिंजरों से निकलवाकर झील के ऊपर छुड़वा दिए ताकि वे मुर्गाबियों को झील के पानी की सतह पर रोके रखें। ऐसा इसलिए किया गया ताकि बादशाह गोली चलाएं तो मुर्गाबियों को अपने एक ओर कुआं और दूसरी ओर खाई नजर आए। ऊपर जाएं तो बाज के झपट्टे में आ जाएं और नीचे रहें तो गोलियां खाएं।

झील में बीस मछुआरे भी तैनात किए गए, ताकि वे गोली खाकर गिरने वाली मुर्गाबियों को फौरन निकाल लाएं और बादशाह के हुजूर में पेश करें। हां, पेशबंदी के तौर पर उनकी धोतियों के फेंटों में दो-दो तुरंत की मारी मुर्गाबियां भी छिपा दी गईं, ताकि बादशाह का निशाना खाली भी जाए तो वे शर्मिंदगी से बच जाएं। बादशाह ने अपनी इटैलियन बंदूक उठाई तो सब कुछ पहले से निर्धारित योजना के तहत ही हुआ। उनके एक फायर करते ही बीसों मछुआरे झील में कूद पड़े और दो-दो हलाक मुर्गाबियां लिए उनके पास हाजिर हो गए। उन्होंने भड़ककर कहा, ‘कमबतो! यह क्या तमाशा है? मैंने तो सिर्फ एक गोली चलाई थी। उस एक गोली से चालीस मुर्गाबियां कैसे हलाक हो सकती हैं?’ वजीरेआजम नवाब रौशनउद्दौला ने जैसे पहले से ही इसका जवाब सोच रखा था। वे बोले, ‘बेवजह शक न करें हुजूर। इनमें से कुछ मुर्गाबियां आपकी गोली खाकर मरी होंगी तो कुछ उसके चलने की दहशत में दम तोड़ गई होंगी। आखिरकार गोली चलाने वाला कोई ऐरा-गैरा निशानेबाज नहीं, बादशाह था।’ इसके आगे का काम चित्रकार माट्ज का था।

(लेखक ”कृष्ण प्रताप” सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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