टेस्ट की कप्तानी छोड़ी, संन्यास लिया। वनडे और टी-20 की कप्तानी भी छोड़ी। वर्ल्ड कप-2019 में रन आउट हुए, मैच हारे। खराब प्रदर्शन पर खूब आलोचना हुई। पर किसी भी समय नहीं बोले। सिलेक्टरों ने कहा डोमेस्टिक खेलो, युवाओं को मैदान में तराशो.. नहीं खेले… नहीं बोले। अब आपकी परछाई, पर्दे का माही, साथ छोड़ गया, दुनिया छोड़ गया। पर्दे का क्यों.. आपका तो वो माही ही था, जिसने आपको अपनी बेजोड़ अदायगी से फिल्मी दुनिया में जीवंत कर दिया था। उसके कारण आपको उन लोगों ने भी जाना जिन्हें क्रिकेट का क, ख, ग… तक नहीं पता था। वो अपने किरदार में इस कदर रमा कि हर उन लम्हों को अमर कर गया, जिन्हें जीते वक्त आपने तमाम मुश्किलें झेली थीं।
वह भी आपकी तरह कूल था। नाम भी ‘सु’शांत था। 3 बहनों (4 थीं पर एक का स्वर्गवास हो चुका है) की इकलौती राखी था। पिता के बुढ़ापे का लाठी था। वो चला गया, लेकिन आप खामोश रहे। आखिर क्यों? क्यों नहीं बोले? कब बोलोगे? वो कौन सी कसम है, जो तुम्हें बोलने नहीं देती? मौन क्यों धारण किए हो? इसमें कोई शक नहीं कि गमों के दरिया में हिचकोले तुम भी खा रहे होगे। हर वो खुशनुमा लम्हा व्याकुल कर रहा होगा, जिसमें सुशांत बसते हैं। पर बेजूबां क्यों हो? अपने आप में तकनीक के मास्टर हो। अंपायर रिव्यू सिस्टम (डीआरएस) तो तुम्हारी मर्जी से चलता है, जिसे पुख्ता करने के लिए लोग तकनीक का सहारा लिया करते हैं। फिर आभाषी दुनिया की तकनीक से इतनी दूरी क्यों? फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम… क्यों ये सिर्फ पेड पोस्ट के लिए खोल रखे हैं?
जब वो गया तो पूरी दुनिया हताश थी, जैसे हर किसी का उससे कुछ छिन गया हो. चाहने वाले ही नहीं बल्कि उसकी जमात ने भी उसे अपने तरीके से याद किया। तुम्हारी जमात ने भी उसे खूब याद किया। चाहत तो थी उसकी भी तभी तो कोरोना काल में लोग जान हथेली पर लेकर उसे आखिरी बार अलविदा कहने जुटे और उनकी संख्या ने सड़क जाम कर दिया. इन सबके बावजूद सबने तुम्हारी तरफ देखा, तुम्हारी तरफ देखने वाली आंखों ने सोचा होगा कि उनका एक माही गया है और दूसरा अभी उनके बीच है और कुछ बोलेगा तो शायद कुछ अच्छा लगे। लेकिन फिर भी तुम खामोश रहे, उस ठंडी राख की तरह शांत रहे जो फिल्मी माही के चिता के ठंडी होने के बाद बची थी।
बोलो? तुम्हारा यूं मौन रहना नागवार गुजर रहा है। तुम्हारी संवेदनाओं को सुनना चाहते हैं। हम उसी माही को देखना चाहते हैं, जो आईपीएल मैच में अंपायर के फैसले के खिलाफ गुस्से का इजहार करने मैदान में उतर पड़ा था। साथियों की बेइज्जती होते देख विरोधी को कंधा मार दिया था। वह माही कहां गया? क्यों नैशनल ड्यूटी वाले माही को सामाजिक ड्यूटी निभाना नहीं आता।
जन्मदिन की बधाई नहीं देते हो, कोई गम नहीं। यह वह समय है, जब उनके विरोधियों ने भी ‘U will be missed’ के मेसेज भेजे। घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। खुद को गमगीन दिखा रहे हैं। क्या आप इतना भी नहीं कर सकते हो। आप उस वक्त भी खामोश रहे थे, जब युवराज के पिता योगराज ने बेटे का करियर खराब करने की उलाहना दी थी। तब भी खामोश थे जब हमारे चहेते लक्ष्मण ने संन्यास लिया था। तब भी कुछ नहीं बोले थे, जब क्रिकेट के ‘सुल्तान’ सहवाग ने शिकायतों के दौर के बाद बल्ला टांगने का फैसला किया था। यही नहीं, गाहे-बगाहे तमाम खिलाड़ी दबी जुबां में आपके बारे में अब भी शिकायत करते हैं।
पहले लगता था विवादों से बचने के लिए नहीं बोलते हो, पर अब लगने लगा है आप बोलना ही नहीं चाहते। आखिर इतना निष्ठुर कोई कैसे हो सकता है? आपने एक बार कहा था- हार-जीत और घटनाओं का फर्क मुझ पर भी पड़ता है…। मैं भी तो इंसान ही हूं…। माफ करना पर ऐसा दिखता नहीं। आप भी इंसान हो। कम से कम इंसानियत ही दिखा देते। कुछ लोग पूछेंगे मुझसे- तालें तो कई लोगों (रिया चक्रवर्ती और अंकिता लोखंडे) की जुबां पर लगे हैं, फिर धोनी से ही शिकायत क्यों? तो बोलूंगा ये सब सामाजिक जिंदगी में भी ऐक्टर हैं, पर माही तो अपना हीरो हैं और उनकी चुप्पी भी बड़ी लंबी है… ढेरों सवाल हैं, जवाब मौन है।
खैर, इंतजारी जारी रहेगी…।
(लेखक नित्यानंद पाठक वरिष्ठ पत्रकार है ये उनके निजी विचार हैं)