क्रिकेट के बारे में दशकों पहले सुनील गावसकर ने कहा था कि यह माइंड गेम है। सब मानते हैं कि क्रिकेट स्किल का गेम है लेकिन जो कप्तान विरोधी टीम के दिमाग के खेलना जान गया वह सबसे सफल होता है। वहीं राजनीति और खास कर चुनाव के खेल में भी हो रहा है। बुनियादी रूप से चुनाव लोकप्रिय समर्थन के आधार पर जीता या हारा जाता है। लेकिन जो नेता विरोधियों के दिमाग से खेलना जान जाता है वह सफल होता है। हालांकि यह सफलता का अंतिम सूत्र नहीं है फिर भी बेहद कारगर है, खास कर वहां जहां किसी पार्टी के पास जन समर्थन कम है। जन समर्थन की कमी की भरपाई माइंड गेम से की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके गृह मंत्री अमित शाह यही खेल पश्चिम बंगाल में खेल रहे हैं। भाजपा के पास बंगाल में जन समर्थन कम है, संगठन बिल्कुल नहीं है और जमीनी स्तर पर मजबूत नेताओं की भारी कमी है। मोदी और शाह इसकी भरपाई बयानों से कर रहे हैं। बार बार तृणमूल कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि मोदी और शाह का माइंड गेम बंगाल में नहीं चलेगा, लेकिन इसका पता चुनाव नतीजों से ही चल पाएगा। फिलहाल तो अपनी जीत के बड़े बड़े दावे करके मोदी और शाह ने माहौल तो बनाया हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव को प्रभावित करने के नए तरीके की ईजाद कुछ साल पहले की थी।
चुनाव आयोग कई चरणों में मतदान कराता है और वे हर चरण के मतदान के दिन उस राज्य के किसी दूसरे इलाके में रैली करते हैं। सो, बुधवार को जब बंगाल में तीसरे चरण का मतदान चल रहा था तो प्रधानमंत्री मोदी की रैली भी चल रही थी, जिसे देश का प्रतिबद्ध मीडिया लाइव दिखाता है। इस रैली में मोदी ने कहा कि चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस टूट जाएगी और उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। यह ताजा माइंड गेम है। इससे पहले वे तृणमूल कांग्रेस के सिर्फ हारने की बात करते थे, अब उन्होंने अस्तित्व मिट जाने की बात कही है। बहरहाल, इससे पहले उन्होंने माइंड गेम के अल्टीमेट हथियार के तौर पर अपनी प्रधानमंत्री पद की पोजिशन का इस्तेमाल करते हुए राज्य के अधिकारियों चुनावी रैली में निर्देश दिया कि उन्हें क्या-क्या तैयारी करनी है और वे जब शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने कोलकाता आएंगे तब तक क्या-क्या हो गया, या होना चाहिए। इससे उन्होंने तृणमूल काडर का हौसला पस्त किया और राज्य के ऐसे मतदाताओं को भाजपा की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया, जिन्होंने अभी तक फैसला नहीं किया है। मतदान के हर चरण के बाद भाजपा के नेता बिल्कुल एजिट पोल के अंदाज में भविष्यवाणी कर ही रहे हैं कि भाजपा जीत चुकी है। इससे भी विरोधियों का हौसला पस्त किया जा रहा है।
एक सवाल ये भी है कि क्या प्रशांत किशोर कीजीभ पर सरस्वती विराजमान थीं, जब उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच का अंतर तभी कम हो सकता है, जब अर्धसैनिक बलों के ऊपर हमला हो जाए या ऐसी कोई घटना हो जाए? उन्होंने यह बात कुछ समय पहले देश के सबसे तेज चैनल को दिए इंटरव्यू में कही थी। उनसे पूछा गया था कि क्या वे अब भी इस बात पर कायम हैं कि भाजपा एक सौ का आंकड़ा नहीं पार कर पाएगी? इस पर उन्होंने कहा था कि वे अपनी बात पर कायम हैं, लेकिन एक ही स्थिति में भाजपा की सीटें बढ़ सकती हैं, जब अर्धसैनिक बलों पर हमला हो जाए। यह संयोग है कि तीसरे चरण के मतदान से ठीक पहले छत्तीसगढ़ में माओवादियों के साथ अर्धसैनिक बलों की एक मुठभेड़ हो गई, जिसमें 24 जवान मारे गए। अब सवाल है कि क्या प्रशांत किशोर भविष्य देख रहे थे या भाजपा के साथ चुनाव रणनीतिकार के तौर पर काम कर चुके होने की वजह से वे कुछ बातें जानते थे या पिछले कुछ समय से हर चुनाव से पहले होने वाली इस किस्म की घटनाओं के विश्लेषण के आधार पर उन्होंने यह दावा किया था? इसका जवाब प्रशांत किशोर ही दे सकते हैं। लेकिन असली मुद्दा यह है कि अर्धसैनिक बलों पर हमला किस तरह से भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है? क्या इससे यह नैरेटिव नहीं बनता है कि भाजपा की सरकार में सुरक्षा बल भी सुरक्षित नहीं हैं?