ऑक्सीजन की कमी

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भारत ने जब कोरोना के दो-दो टीके को मंजूरी दी और देश में विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान शुरू हुआ तो विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई देशों ने भारत की इस उपलधि की मुतकंठ से प्रशंसा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कोविड का टीका बनाने के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों और कंपनियों की सराहना की। पीएम ने तो इसे राष्ट्रीय गर्व के रूप में पेश किया। टीका बना लेने की भारत की उपलब्धि वाकई में राष्ट्रीय गर्व के लायक है, क्योंकि अब तक भारत ने ऐसा प्रयास पहले नहीं किया था, बल्कि भारत इससे पहले तक केवल वैक्सीन का बाजार तक सीमित रहा था। लेकिन आज जब देश में कोरोना की दूसरी लहर प्रचंड वेग से पसर रही है, कुछ क्षेत्र में कम्युनिटी स्प्रेड जैसी स्थिति में है, तो देश मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी से जूझ रहा है। रिकार्ड समय में दो-दो टीका बनाने वाले देश में ऑक्सीजन की कमी शर्म की बात है। कोरोना के दौरान देश ने मास्क, सैनिटाइजर, पीपीई किट आदि बनाने में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली, लेकिन मेडिकल ऑक्सीजन, हाईटेक एंबुलेंस, वेंटिलेटर, अस्पतालों में अतिरितबेड जैसे जरूरी संसाधनों के इंतजाम पर विशेष ध्यान नहीं दिया।

आज अगर सरकार को 50 हजार मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन आयात करने का फैसला लेना पड़ता है, यह हमारी दूरदर्शी नीति नहीं होने की ओर इशारा करता है। सरकारी नौकरशाही के समूचे तंत्र में कुछ तो गंभीर खामियां हैं कि संकट से भी वह नहीं सीखती हैं। जब संकट सिर से गुजरने लगता है, तभी सरकार जागती है। कोरोना के मामले पिछले एक महीने से बढ़ रहे हैं, पर पीएम की राज्यों के साथ बैठक तब होती है, जब ऑक्सीजन संकट विकराल रूप ले चुका है, ऑक्सीजन की कमी से मरीज की मौत होने लगी है। गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में तीन साल पहले जापानी बुखार से जब बच्चों की मौत हो रही थी, तब भी ऑक्सीजन की कमी की बात सामने आई थी। राजस्थान में भी उस वत ऑक्सीजन की कमी से बच्चे दम तोड़ रहे थे। आज जब एक साल से देश कोरोना से जूझ रहा है, तब भी हमारी सरकारें जरूरत भर ऑक्सीजन नहीं बना सकीं। लगता है हमारी अफसरशाही इतनी संवेदनहीन हो चुकी है कि उनके लिए जनता के जीवन का कोई मूल्य ही नहीं है। ऑक्सीजन नहीं मिलने से, समय पर इलाज नहीं मिलने से, दवा की कमी से या एंबुलेंस नहीं मिलने से किसी की मौत हो जाय, तो जैसे किसी भी जिम्मेदार पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। हमारे सिस्टम की छोटी-छोटी नाकामियां आवाम के जीवन पर भारी पड़ती हैं।

यह केवल स्वास्थ्य सेवा को लेकर नहीं है, प्रशासनिक सेवा हो या अन्य सब क्षेत्र की स्थिति कमोबेस एक जैसी है। पाइपलाइन बिछाने के लिए बनी बनाई सड़कें खोद दी जाती हैं, और पाइप बिछाने के बाद उसे वैसे ही महीनों तक छोड़ दी जाती हैं। खराब सड़कें सड़कों पर गड्ढे के चलते हर साल हजारों लोगों की जानें चली जाती हैं, लेकिन हमारे राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ती है। 12 राज्यों में अगर ऑक्सीजन का संकट है तो यह अचानक तो नहीं हुआ है? यह संकट वानगी है कि राज्य सरकारें नागरिक अस्पतालों के इंतजामों को लेकर सजग नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने राज्यों से कहा है कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की सोंसें नहीं थमें, तो इसे देश के सभी राज्यों को गंभीरता से लेना चाहिए। एक तरफ देश में जब आत्मनिर्भर भारत का नारा जारी है, तो हमें हर जरूरी चीजों के निर्माण के लिए योजनाबद्ध काम करना होगा। 100 नए ऑसीजन प्लांट बनाने का ऐलान केवल बयानों तक ही समीत न रहे, बल्कि यह जमीन पर भी उतरे। देश में हजारों नए ऑक्सीजन प्लांट लगने चाहिए ताकि अपनी जरूरत के साथ-साथ दूसरे देशों की आवश्यकता भी पूरी की जा सके।

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