‘बिहार में तीन तरह से जोडिय़ां बनती हैं, बाबूजी! हिमत वालों की अरेंज जोड़ी, किस्मत वालों की लव जोड़ी और दहेज के लालचियों की जबरिया जोड़ी।’ यह उस फिल्म का डायलॉग है, जो बिहार में पकड़वा विवाह पर बनी है। जबरिया जोड़ी, यानी पकड़वा विवाह। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में इस साल जनवरी से सितंबर तक इन नौ महीनों में किडनैप कर जबरन शादी करवाने के 2300 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। इनमें से लगभग 1800 मामले लॉकडाउन के दौर के हैं। वैशाली जिले में इसी साल मार्च की घटना है। पिता-पुत्र इलाज कराने के लिए वहां के एक अस्पताल पहुंचे। उसी दौरान वहीं से दोनों को एक बोलेरो गाड़ी में अगवा कर लिया गया और उन्हें समस्तीपुर ले जाया गया। वहां बेटे की जबरन शादी करा दी गई, और दोनों को कई दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। बाद में पिता किसी तरह से भाग निकलने में कामयाब हुए, तब कहीं जाकर जांदहा थाने में उसकी रिपोर्ट दर्ज कराई। ऐसे ही सहरसा जिले के एक गांव की घटना है। एक नाबालिग लड़के को उसका रिश्तेदार बहकाकर अपने गांव ले गया और जबरन शादी करवा दी। कई बार ऐसे मामलों में मौसा-मौसी, बुआ-फूफा और अन्य नजदीकी रिश्तेदार शामिल होते हैं और पकड़वा विवाह हो जाता है।
लड़के वालों को साजिश का पता नहीं होता है। कई बार पुराना परिचय निकल जाता है, क्या कोई रिश्तेदारी निकल जाती है। लेकिन लड़की वालों को लड़के की सारी कुंडली पता होती है। पकड़वा विवाह का सबसे पहला और मजबूत कारण है दहेज। लड़का अगर पढ़-लिखा है और घर की माली हालत, जमीन-जायदाद, ओहदा आदि ऊंचा हो, तो लड़के वाले मूंछ पर ताव देते हैं कि दहेज में मोटी रकम ऐंठेंगे। ऊंचे दहेज की चर्चा समाज में स्टेटस के रूप में होती है- ‘फलां के बेटे को इतना दहेज मिला’ या, ‘फलां गाड़ी मिली!’ हालांकि मोटी पार्टी दहेज में मिली ज्यादा से ज्यादा रकम शादी के दिखावे में उड़ाना पसंद करती है। यानी कुल मिलाकर दहेज स्टेटस सिंबल बन जाता है। इसीलिए घर-वर कहीं ज्यादा पसंद आ गया, पहले से बात चल रही हो और दहेज पर आकर अटक गई हो, तो भी कई मामलों में दबंग पार्टी लड़के को उठवा लेती है और फिर शादी करा लेती है। पकड़वा शादी का एक रोमांचक पहलू भी है। दहेज की दबंगई के साथ-साथ धोखा और प्रेम भी पकड़वा शादी का कारण बनते हैं। मामले पुलिस तक जाते हैं, लेकिन आगे चलकर रफा-दफा हो जाते हैं। ऐसे ही शादी की रार-तकरार के बीच न जाने कितने घर बसे हैं।
कई घटनाएं ऐसी भी हुई हैं कि लड़के को रिश्ते की कोई लड़की पसंद आ गई। लड़की वालों की तरफ से ही भाभीदीदी ने शादी का कोमल सा प्रस्ताव दे दिया। लड़की सुंदर है, और लड़के का मन ललचा गया। घर वाले तैयार हुए तो ठीक, वरना अगर शादी के लिए ना करें तो ऐसी स्थिति में लड़का खुद ही अगवा होने की साजिश में शामिल हो जाता है। कई बार लड़का योग्य भी होता है, क्या फिर लंबे समय तक कुंवारे रहने के कारण भी अपनी सहमति जता देता है। कई बार पढ़ी-लिखी लड़कियां ऐसी शादियों से कड़ा विरोध करती हैं। पकड़वा विवाह में किडनैपिंग का केस दर्ज होता है और यह अपराध के दायरे में आता है। लेकिन सामाजिक बनावट पर गौर करें तो यह एक तरह से बिहार, उससे सटे झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसी शादियां एक खराब रिवाज की तरह ही हैं। कई बार जोर-जबरदस्ती खूब होती है, कई बार मान-मनौव्वल से काम चल जाता है और कई बार पकड़वा विवाह लंबी दुश्मनी का कारण बन जाता है। लड़के के पिता-दादा कसम खा लेते हैं कि लड़की तो घर की बेटी हो गई, अब कभी इसे मायके जाने नहीं दिया जाएगा। कई बार घर में संतान आ जाने के बाद बात बन जाती है, तो कई बार आजीवन उस घर का पानी न पीने की कसम खा ली जाती है। हमारे देश के सामाजिक बनावट का तड़का ही कुछ ऐसा है, जो ऐसे रिश्तों को आगे ले जा रहा है।
दिलीप लाल
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)