विरोधी साझेदारों से हाथ मिलाएं

0
202

कम से कम मैं चार ऐसे युवाओं को जानता हूं, जिन्होंने अपनी शादी की तारीख आगे बढ़ा दी है और परिस्थितियों के सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं। उनकी शिकायत है कि महज 50 लोगों की मौजूदगी में वह शादी नहीं कर सकते इसलिए वे सब परिस्थितियों के सामान्य होने तक इंतजार करना चाहते हैं। सबकुछ फरवरी 2020 के पहले वाली स्थिति जैसा हो जाएगा या नहीं ऐसा सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन अब दुनिया मानने लगी है कि शादियां तो अब नए अवतार में ही करनी पड़ेगी। मेरे हिसाब से नए अवतार में, सरकार द्वारा लागू 50 लोगों का नियम तोड़े बिना भी आपकी शादी में सैकड़ों लोग शामिल हो सकते हैं! इसके अलावा, सभी शादी के समय एक ही तरह का खाना भी खा सकते हैं! सुनने में अटपटा लग रहा है? वेडिंग प्लानर्स तो पहले ही इस विचार पर आधा काम कर चुके हैं। कई कैटरिंग युनिट्स द्वारा शादियों की लाइव स्ट्रीमिंग अब पुरानी बात हो गई है। अब यह करना जरूरी भी हो गया है। इसमें नई बात यह है कि अब ये कैटरिंग यूनिट्स छोटी-छोटी टीम में बंटकर उन वर्चुअल मेहमानों के घरों पर खाना परोस रही हैं, ताकि ये गेस्ट दूर से सिर्फ शादी न देखें बल्कि उस लज़ीज़ खाने का भी लुत्फ उठाएं, जो यहां शादी हॉल में शामिल 50 वीवीआईपी मेहमानों को परोसा जा रहा है! यहां इसकी सच्ची कहानी है। पिछले हफ्ते केरल में कोट्टयम के नजदीक एक सगाई समारोह में मनोज माडावसेरिल ने कैटरिंग की थी। समारोह में शामिल 50 लोगों के अलावा मनोज ने 15 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले 70 मेहमानों के घरों में वही दावत का खाना परोसा।

समारोह की लाइव स्ट्रीमिंग करने के अलावा, हॉल में परोसा गया हरेक आइटम उन सब वर्चुअल मेहमानों को भी परोसा गया, जितने कि उस क्षेत्र में रहने वाले मेहमानों की मनोज ने गारंटी दी थी। अलग-अलग क्षेत्रों का काम पूरा कराने के लिए वह दूसरे लोगों से अनुबंध कर लेता है।) बन जाएगा और जहां भी दूल्हा-दुल्हन के रिश्तेदार या दोस्त होंगे, वहां के कैटरर्स से अनुबंध कर लेगा। इसका मतलब है कि भले ही मेहमान तीन हजार किलोमीटर दूर हों, लेकिन शादी के दिन वह उस जोड़े की ओर से दावत खा सकेंगे। समारोह के बाद वह वही खाने का लुत्फ उठा सकते हैं, यहां तक कि अगर पहले से तय है तो अपनी पसंद का खाना भी खा सकते हैं। केरल में कैटरिंग युनिट चलाने वाले गीजन मैथाइस एक बहुत ही इनोवेटिव आइडिया के साथ आए हैं। उनकी युनिट चिकन और मीट के लिए ग्रेवी उपलध करा रही है, जिसे वह पोल्ट्री और मीट की दुकानों के जरिए बेच रहे हैं। लोगों को सिर्फ इसमें मीट के साथ नमक डालकर उबालना होता है। अब वह फिश करी की ग्रेवी बेचने का विचार कर रहे हैं और लोगों से अच्छी-खासी प्रतिक्रियाएं भी मिल रही हैं। फंडा यह है कि अब समय आ गया है कि अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिद्वंद्वियों और अनपेक्षित साझेदारों से भी हाथ मिलाना पड़ेगा। विचार बुनियादी भी हो सकता है। बरसात के दिन नुक्कड़ पर खड़े होकर ठेकेदार का इंतजार करते दिहाड़ी मजदूर के लिए सड़क किनारे की गुमटी से एक चाय की प्याली भी राहत पहुंचा सकती है। बालाजी का ‘फोन पर कहानी’ नाम का आइडिया धीरे-धीरे दूसरे गांवों में भी फैल रहा है, जिसे उन्होंने अप्रैल शुरू किया था।

जब उन्हें पता चला कि स्कूल तय समय पर नहीं खुल पाएंगे तो उन्होंने एक बार में 15 छात्रों के ग्रुप फोन कॉल की शुरुआत की। छुट्टियों के दौरान प्रयोग के तौर पर सुबह और शाम कुछ घंटों के लिए कहानी के कुछ सत्र रखे, जिनका उद्देश्य बच्चों को यह सिखाना था कि ऑडियो माध्यम से कैसे समझें कि क्या पढ़ाया जा रहा है। सुबह बच्चे कहानी सुनते और शाम को वही बालाजी को सुनाते। इससे बच्चों की सुनने और बोलने क्षमता सुधरी। बालाजी ने देखा कि लगभग सभी माता-पिता ऐसी कंपनियों के फोन नंबर इस्तेमाल कर रहे थे, जो एक बार में 15 लोगों को ऑडियो कॉल पर जोडऩे की सुविधा देती हैं। तो उन्होंने ग्रुप क्लास में छात्रों की संख्या इतनी ही रखी। उन्होंने यह भी देखा कि ज्यादातर माता-पिता 9 से 5 बजे तक काम पर जाते हैं, इसलिए बालाजी ने कॉल ऐसे समय पर रखे जब माता-पिता घर पर हों और बच्चे उनके फोन इस्तेमाल कर सकें। इस साल की पाठ्यपुस्तकें आने के बाद इस महीने बालाजी ने छात्रों को विस्तार से पढ़ाना शुरू किया है। पाठ्यक्रम को याद रखने वाले शब्दों में बुनकर, बच्चों की रुचि बनाए रखते हुए बालाजी सफलतापूर्वक सुबह-शाम ऑडियो क्लास चला रहे हैं क्योंकि बच्चे कहानियों के सत्र से पहले ही ऑडियो कौशल में प्रशिक्षित हो चुके थे। आज बच्चे सुबह के कॉल का इंतजार करते हैं और शाम के कॉल से पहले पूरी लगन से दिया हुआ काम पूरा करते हैं। सुबह हर विषय को कहानी के स्वरूप में पढ़ाया जाता है। दिनभर छात्र इसे समझते हैं और शाम को शिक्षक के साथ अपने नोट्स साझा करते हैं। फंडा यह है कि जरूरी नहीं आपकी खोज हमेशा कोई रॉकेट साइंस हो। यह बहुत अल्पविकसित भी हो सकती है, जो आधारभूत समस्याओं को हल करे और बड़ी आबादी की मदद कर सके।

एन रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरू हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here