यह राहत नहीं, मुसीबत है

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अब समय आ गया है कि इस बात पर चर्चा हो कि आखिर राहत पैकेज क्या होता है? आर्थिक राहत पैकेज जैसे जुमले शुरू होने से बहुत पहले लोग राहत और बचाव की बात बाढ़ या उस जैसी प्राकृतिक आपदा के समय सुनते थे। तब राहत का यह मतलब होता था कि सरकार की ओर से लोगों को खाने-पीने की चीजें मुहैया कराई जाती थी। उसके लिए राहत किट बनते थे, जिसमें आटा, चावल, दाल, मसाले, नमक, मोमबत्ती, माचिस, कंबल और कुछ जरूरी दवाएं होती थीं। इसे हाथों हाथ पहुंचाया जाता था या हेलीकॉप्टर से गिराया जाता था। इसका मतलब होता था कि राहत किट मिलते ही तुरंत लोगों की जरूरतें पूरी होती थीं। उनको तत्काल लाभ होता था, राहत मिलती थी। तभी से यह समझ बनी है कि राहत इसी तरह की होती है।

पर अब राहत पैकेज आ गया है, जिसमें तत्काल राहत नहीं दी जाती है, सिर्फ राहत देने का वादा किया जाता है। सरकार लोगों को उपाय बताती है और चाहती है कि उस उपाय को आजमा कर लोग राहत हासिल कर लें और उसके सुझाए उपाय की कीमत भी चुकाएं। जिस तरह से पुराने जमाने में या अब भी गांवों के साहूकार मुश्किल में फंसे गरीब लोगों को सूद पर कर्ज देते हैं और फिर कर्ज से निकलने के लिए और कर्ज देते हैं उसी तरह सरकार भी लोगों को राहत दे रही है। पहले से जिन लोगों ने कर्ज लिया है उनको कर्ज चुकाने के लिए सरकार और कर्ज लेने का बंदोबस्त कर रही है और इसे राहत बता रही है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले दिन करीब छह लाख करोड़ रुपए के जिस कथित राहत पैकेज की घोषणा की उसका लब्बोलुआब यह है कि छोटी और मझोली कंपनियां यानी एमएसएमई सेक्टर की कंपनियां तीन लाख करोड़ रुपए का कर्ज बिना गारंटी के ले सकती हैं। अब सवाल है कि क्या यह कर्ज उनको लौटाना नहीं होगा? क्या वे इसे अपनी पूंजी के तौर पर अपनी बैलेंसशीट में दर्ज कर सकते हैं? सामान्य दिनों में आसान कर्ज की उपलब्धता जरूर राहत की बात होती है पर मौजूदा समय में तो यह और मुसीबत बढ़ाने वाली है। एमएसएमई सेक्टर की ज्यादातर कंपनियों की हालत पहले से खराब है। लॉकडाउन ने उनका कामधंधा चौपट किया है। उनके मजदूर घर लौट चुके हैं और मांग पूरी तरह से खत्म हो गई है। ऐसे में उनकी हालत पिछला कर्ज चुकाने की नहीं है पर सरकार उन्हें नए कर्ज दे रही है। कायदे से उनका पिछला कर्ज माफ होना चाहिए था और ऊपर से उन्हें बिना शर्त मदद दी जानी चाहिए थी ताकि वे अपना कारोबार फिर से खड़ा कर सकें और लोगों को रोजगार दे सकें। पर इसकी बजाय सरकार उन्हें और कर्ज देने की पेशकश कर रही है और इसे राहत कह रही है।

वित्त मंत्री ने राहत की घोषणा में कहा कि टीडीएस और टीसीएस 25 फीसदी कम काटे जाएंगे। यह किस तरह की राहत है? क्या सरकार कर की दरें कम कर रही है या कर की देनदारी घटा रही है? नहीं, कर की देनदारी पहले जैसी ही रहेगी यानी अभी जो 25 फीसदी टीडीएस नहीं कटेगा वह बाद में कर रिटर्न भरते समय देना ही होगा। फिर इससे क्या राहत मिली और यह कौन सा पैकेज हुआ? इसी तरह आयकर से जुड़ी दूसरी घोषणा यह है कि सरकार करदाताओं का रिफंड जल्दी देगी। सोचें, यह कितना बड़ा मजाक है। सरकार करदाताओं को उनका अपना पैसा लौटाएगी और इसे राहत पैकेज कह रही है? इस मामले में तो उलटे सरकार को जवाब देना चाहिए था कि उसने अभी तक लोगों का रिफंड किया क्यों नहीं था!

सरकार ने आजाद भारत की सबसे बड़ी त्रासदी के समय अपने नागरिकों को क्या राहत दी है? उसने कहा है कि आप अपने कर्ज की किश्तें छह महीने तक नहीं चुकाने के लिए आजाद हैं। लेकिन छह महीने बाद तो कर्ज चुकाना ही है और उसके ब्याज के ऊपर ब्याज चुकाने की मुसीबत अलग से है। राहत तो तब होती, जब सरकार कहती कि छह महीने किश्तें नहीं अदा करें और बैंक का ब्याज सरकार चुकाएगी। जब ब्याज के ऊपर ब्याज आम आदमी को ही चुकाना है तो उसे राहत कैसे कह सकते हैं।

सरकार ने और क्या राहत दी है कि आपके ईपीएफ के मद में जो पैसा कटता है उसमें दो फीसदी कम काटा जाएगा और वह पैसा आपके हाथ में दिया जाएगा। सोचें, हमारा ही पैसा हमारे हाथ में देने को सरकार राहत कह रही है! उलटे यह भी मुसीबत बढ़ाने वाली बात है क्योंकि इससे हमारी बचत कम होती है। ध्यान रहे इससे पहले भी सरकार ने यह राहत दी थी कि आप ईपीएफ से ज्यादा पैसे निकाल सकते हैं। सोचें, हमारे जमा किए पैसे को निकालने की छूट देने को सरकार राहत पैकेज का हिस्सा मानती है! संकट के समय हम अपने भविष्य निधि में कम पैसे जमा करें और पहले से भविष्य निधि में जमा पैसा निकाल कर खर्च करें और इसे सरकार का राहत पैकेज मानें! यह आम लोगों की समझ का भी अपमान है और संकट के समय उसके नोचने, खसोटने वाली पुरानी सामंती व्यवस्था का ही विस्तार है।

असल में सरकार इस राहत पैकेज के जरिए लोगों से कह रही है- संकट है तो आप कर्ज लेकर काम चलाएं, संकट है तो भविष्य निधि के जमा पैसे निकाल कर काम चलाएं, संकट है तो टैक्स बाद में भर दीजिएगा अभी काम चलाइए, आप संकट में हैं तो हम टैक्स थोड़ा कम काट ले रहे हैं लेकिन बाद में आप उसे चुका दीजिएगा, आप संकट में हैं तो भविष्य निधि वगैरह में बचत थोड़ी कम कीजिए और काम चलाइए पर साथ-साथ ध्यान रखिए कि आपकी देनदारियां जस की तस हैं, कर्ज की किश्तें जस की तस हैं, टैक्स देनदारी भी जस की तस है और कारोबारियों के लिए जीएसटी का भुगतान भी जस के तस है। वह सब सरकार बाद में वसूलेगी। असल में यह राहत नहीं है, आंख में धूल झोंकने की कला का बेहतरीन नमूना है!

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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