सूचनाएं ही तो असली संपत्ति हैं

0
1308

आज के प्रतिस्पर्धी समाज में व्यक्ति को खुद से जिंदगी गुजारने के लिए बस थोड़ी सी बहुमूल्य सूचना की जरूरत है। दशकों से रेडियो, टीवी और समाचार पत्र विश्वसनीय जानकारी के स्रोत बने रहे हैं। एक जमाने में सूचनाओं से भरा सुबह-शाम का रेडियो बुलेटिन ही सबसे विश्वसनीय होता था। माध्यम बदलते रहे, लेकिन सूचना की महत्ता नहीं बदली।

आज से पहले, अभी और आगे भी सूचनाएं धन-संपत्ति या संपदा जुटाने में मदद करती रहेंगी। वह सूचना या जानकारी जो किसी के निजी संपर्कों या नेटवर्क से हासिल की जाती है जैसे कि डॉ. सांद्रा नवीदी अपनी किताब ‘सुपर हब्स’ में कहती हैं नेटवर्क, नेटवर्थ है। अक्सर उस व्यक्ति के नेटवर्क से आने वाली बहुमूल्य सूचना बताती है कि वह व्यक्ति कितना धनवान है या हो सकता है। बावजूद इसके उस बहुमूल्य जानकारी के लिए जरूरी नेटवर्क तक आबादी के उच्च वर्गीय पांच फीसदी लोगों की ही पहुंच होती है।

नेटवर्क के जरिए नए प्रोजेक्ट, राजनीति, नियमन, टैक्स और छूट आदि से जुड़ी गुप्त और विश्वसनीय जानकारी उनके पास आम आदमी तक पहुंचने से पहले पहुंच जाती है। उदाहरण के लिए एक प्रमुख आईटी कंपनी के सह-संस्थापक उसी कंपनी के 100 करोड़ रुपए के शेयर खरीदते हैं। अगले ही दिन आईटी कंपनी के लिए फायदेमंद एच1बी वीज़ा से संबंधित खबर सामने आती है और कंपनी के शेयर का मूल्य बढ़ जाता है। ये इत्तेफाक है या कुछ और, पर पहले से मौजूद सूचनाओं के आधार पर हाईएंड नेटवर्क के जरिए पैसा बनाने का अच्छा उदाहरण है।

सूूचनाओं का कभी लॉकडाउन नहीं होता। साल के 365 दिन, सप्ताह के सातों दिन सूचनाएं तैरती रहती हैं। इंसानों को गुमान है कि तकनीक में हुई प्रगति के कारण उन्हें सबकुछ पता है। हालांकि वही इंसान कोरोनावायरस से लड़ रहा है और इससे छुटकारा पाने के लिए किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहा है। जीवनयापन के लिए सूचनाओं की जरूरत हर किसी को है। छात्र अपने कॅरिअर की योजना में जानकारी और सूचनाओं के लिए शिक्षक पर निर्भर है, तो कर्मचारी अपने बॉस या कंपनी से कॅरिअर में उन्नति की उम्मीद कर रहा है।

एक दोस्त दूसरे दोस्त से जानकारी लेता है। इनमें सब सिर्फ बहुमूल्य जानकारी ही चाहते हैं, क्योंकि ये सही समय और तथ्यों पर आधारित होती है। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों को लगता है कि गूगल ही सबकुछ है और उससे आने वाली जानकारी बेशकीमती है। सोशल मीडिया ने भी सूचनाओं में सेंध लगाई है, लेकिन इसकी विश्वसनीयत संदेह के घेरे में रहती है। दूसरी ओर इसका हद से ज्यादा इस्तेमाल बुद्धिमत्ता को धीमा कर रहा है।

मलयाली सिनेमा की फिल्म ‘दृश्यम-2’ का उदाहरण लेते हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे नेटवर्क के जरिए जुटाई गई जानकारी अप्रत्याशित और अनिश्चित या विपरीत हालातों में भी सफल होने के लिए किस तरह मददगार साबित होती है। बहरहाल हम उम्मीद करते हैं कि बहुमूल्य सूचनाओं तक सबकी पहुंच हो।

डा. एम. चंद्र शेखर
(लेखक असि. प्रोफेसर, इंस्टीट्यूट ऑफ पलिक एंटरप्राइज, हैदराबाद हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here