कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य के जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब उसकी ईमानदारी की परीक्षा होती है। वह पराई धन संपत्ति को देख बहक भी सकता है, यदि वह अपने इरादे में निपुण हो तो वह मोह माया के जाल में नहीं फंसता। उसकी ईमानदारी की ताकत उसको महान बनाती है जिससे माया भी उसकी दासता में आ जाती है। यहां एक लघु कथा है जिसमें ईमानदारी के बल पर अपना महानता का प्रमाण देता है, सामने वाला भी उसके सामने नतमस्तक हो जाता है। एक सौदागर को बाजार में घूमते हुए एक उम्दा नस्ल का ऊंट दिखाई पड़ा! सौदागर और ऊंट बेचने वाले के बीच काफी लंबी सौदेबाजी हुई और आखिर में सौदागर ऊंट खरीद कर घर ले आया!
घर पहुंचने पर सौदागर ने अपने नौकर को ऊंट का कजावा (काठी) निकालने के लिए बुलाया। कजावे के नीचे नौकर को एक छोटी सी मखमल की थैली मिली जिसे खोलने पर उसे कीमती हीरे जवाहरात भरे होने का पता चला। नौकर चिल्लाया, मालिक आपने ऊंट खरीदा, लेकिन देखो, इसके साथ या मुत में आया है! सौदागर भी हैरान था, उसने अपने नौकर के हाथों में हीरे देखे जो कि चमचमा रहे थे और सूरज की रोशनी में और भी टिम टिमा रहे थे। सौदागर बोला, कि मैंने ऊंट खरीदा है, न कि हीरे, मुझे उसे फौरन वापस करना चाहिए! नौकर मन में सोच रहा था कि मेरा मालिक कितना बेवकूफ है!
बोला, मालिक किसी को पता नहीं चलेगा! पर, सौदागर ने एक न सुनी और वह फौरन बाजार पहुंचा और दुकानदार को उसने सारा किस्सा सुनाया। दुकानदार भी ईमानदार था उसने सौदागर को कहा कि यह थैली तुम्हें ऊंट से काठी से उस समय मिली जब वह तुम्हारा हो चुका था इसलिए इस पर तुम्हारा ही अधिकार है। सौदागर ने तर्क देते हुए कहा कि मैने केवल ऊंट खरीदा है, इसलिए मैं इस थैली का मालिक नहीं हो सकता। दुकानदार ने सौदागर के तर्क को प्रभावहीन बनाते हुए कहा कि जिस तरह ऊंट के साथ काठी दी गई है लेकिन काठी का सौदा नहीं हुआ फिर भी वह तुम्हारी है उसी तरह यह मखमली थैली भी तुम्हारी है!