युद्ध के हजारों वर्ष पश्चात जर्मनी के वैज्ञानिक आधुनिक साउंड रिकॉर्डर लेकर कुरुक्षेत्र गए। उस 18 दिन चले युद्ध में घायलों की चीत्कार धनुष की टंकार इत्यादि ध्वनियां रिकॉर्ड की गईं। इस तरह 3 हजार वर्ष पूर्व हुए युद्ध की पुष्टि हुई। विष्णु खरे ने लिखा है कि 2 4,16 5 लोगों ने युद्ध के पूर्व ही पलायन किया और वे विविध स्थानों पर बस गए। संभवत: प्रवासी भारतीयों का यह पहला दल रहा।
कोई आश्चर्य नहीं है कि एक द्वीप में बना राम मंदिर आज भी कायम है। कुछ द्वीपों पर भारतीय मूल के लोग चुनाव जीतकर राज चला रहे हैं। सारांश यह है कि आवाज ही एकमात्र अजर अमर तत्व है। हमारे शास्त्रों में ध्वनि को ब्रम्हा माना गया है। विदेशों में लंबे समय से प्रकाशित अखबार अब मात्र सप्ताहांत प्रकाशित होते हैं।
वहां घर पर जाकर अखबार देने वाले हॉकर ही नहीं हैं। भारत में इस महामारी के समय भी हॉकर अपना काम कर रहे हैं । उन्हें प्रणाम । विदेशों में अखबार, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, रेस्त्रां में रखे होते हैं। पाठक को कोई मूल्य देना नहीं होता। ताजा खबर है कि एक अखबार 26 अप्रैल से प्रिंटिंग अखबार के अतिरिक्त खबरों की व्याख्या सहित ऑडियो कैप्सूल भी जारी करेगा, जिसे अवाम अपने मोबाइल पर सुन सकेगा। मीनल बघेल इस नए माध्यम की प्रमुख आवाज और चिंतक रहेंगी। कुछ वर्ष पूर्व एक कंपनी ‘बुक्स इन वॉइस’ ने खाकसार के उपन्यास ‘ताज बेकरी का बयान’ का ऑडियो वर्जन बनाया था।
फिल्म निर्माण प्रारंभिक दशकों में मूक रहा परंतु मूक फिल्मों में मानवीय करुणा की अभिव्यक्ति हुई। चार्ली चैपलिन को फिल्म जगत का पहला कवि माना जाता है। इस क्षेत्र में ध्वनि के आते ही फिल्में वाचाल हो गईं। सप्ताह में 1 दिन मौन रहने से ऊर्जा का बचाव होता है। बहुत अधिक बोलने से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
अगर नेता को विश्वास दिला दें कि हर चुनाव में उसे ही विजेता बनाया जाएगा, बशर्ते वह बोलना सीमित कर दे तो उसका मिजाज बिगड़ जाएगा और वह बीमार भी पड़ सकता है। मेडिकल क्षेत्र में स्टेथोस्कोप का आविष्कार एक महान कदम है। दिल की धड़कन से रोग की पहचान होती है। यह यंत्र दिल की धड़कन की ध्वनि को मैग्नीफाई करता है। गीतकारों ने ने धड़कन का बहुत उपयोग किया है।
गुलजार की संजीव कुमार और जया बच्चन अभिनीत फिल्म ‘कोशिश’ में पति-पत्नी गूंगे हैं। उन्हें आनंद प्राप्त होता है कि उनका शिशु बोल सकता है। कहते हैं कि जापान में बनी फिल्म ‘हैप्पीनेस ऑफ अस अलोन’ की प्रेरणा से ‘कोशिश’ बनी है। राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘पीके’ में अंतरिक्ष से आया प्राणी कहता है कि उसके गोले में तो प्राणी सोचता है और उसके बिना बोले ही, बात दूसरे तक पहुंच जाती है।
इसके वर्षों पूर्व निदा फाजली ने लिखा था ‘मैं रोया परदेस में, भीगा मां का प्यार, दिल ने दिल से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार।’ शैलेंद्र ने लिखा, ‘जो लोग बहुत बोलते हैं इंसान को कम जानते हैं।’ दुष्यंत कुमार ने लिखा वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता, मैं बेकरार हूं आवाज़ में असर के लिए।’ विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ में जावेद अख्तर का गीत है, ‘कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो, क्या कहना है क्या सुनना है।’ संयुक्त परिवार के बारे में कहते हैं कि एक चौके में बर्तन टकराते हैं। गोयाकि बर्तन बतियाते हैं। यह भी मान्यता है कि मन ही मन बोले श्लोक से लाभ नहीं होता, प्रार्थना स-स्वर होना चाहिए। कुछ घाटियों में आवाज लौट कर आती है और 3 बार आती है। असहाय व्यक्ति पर अत्याचार होता है, तो वह चीत्कार करता है। किसी दिन ये सारे चीत्कार और गरीबों के गले में घुटी हुई आवाजें लौटकर आएंगी। जुल्म करने वालों के सीने में आवाजें तीर की तरह घुस जाएंगी।
जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)