स्टॉक मार्केट कैसे बचा रह गया ?

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जहां अर्थव्यवस्था की स्थिति पर अब तक सामने आए आर्थिक आकंड़ों पर काफी भ्रम है, वहीं एक हिस्सा, जो महामारी और लॉकडाउन के असर से बचा हुआ है, वह है स्टॉक मार्केट। पहले देखते हैं कि सेंसेक्स किस गति से चला। जनवरी 2020 में यह 40,723 पर था और लॉकडाउन की घोषणा पर मार्च 2020 में 29,648 पर आ गया।

मदन सबनवीस का कॉलम:शेयर बाजार में लगातार बढ़त दिखी है, महामारी से स्टॉक मार्केट कैसे बचा रहा और आगे क्या होगा?4 घंटे पहलेकॉपी लिंकमदन सबनवीस, चीफ इकोनॉमिस्ट, केयर रेटिंग्सजहां अर्थव्यवस्था की स्थिति पर अब तक सामने आए आर्थिक आकंड़ों पर काफी भ्रम है, वहीं एक हिस्सा, जो महामारी और लॉकडाउन के असर से बचा हुआ है, वह है स्टॉक मार्केट। पहले देखते हैं कि सेंसेक्स किस गति से चला। जनवरी 2020 में यह 40,723 पर था और लॉकडाउन की घोषणा पर मार्च 2020 में 29,648 पर आ गया।

जून में अनलॉक पर 34,916 का आंकड़ा छुआ। जुलाई के बाद से लगातार बढ़ते हुए सितंबर में 38,068 के पार चला गया, जब संक्रमण उच्चतम स्तर पर था। मार्च 2021 तक यह 49,509 पर था। दूसरी लहर के बावजूद यह मई तक 51,937 पर पहुंच गया और जून में 52,000 के पार चला गया। कोई इसे कैसे समझा सकता है?

पहले आधारभूत बातें देखें। स्टॉक मार्केट भविष्य की कमाई दिखाता है, वर्तमान की नहीं। वास्तव में, अगर आज कमाई कम है और संभावना उच्च है, तो यह समझ में आने पर कि सबसे खराब समय खत्म हो गया है, बाजार ऊपर बढ़ना शुरू कर देगा। भारतीय बाजार के मामले में कॉर्पोरेट प्रदर्शन के संदर्भ में बुरा समय निकल गया है। headtopics.com

सवाल यह है कि यह कैसे समझें कि पहले लॉकडाउन की घोषणा से पहले सेंसेक्स 30,000 के नीचे था, लेकिन तब से 70% बढ़ गया है? दिलचस्प है कि सेंसेक्स मार्च 2020 से 70% बढ़ गया, जबकि बीएसई 100 व बीएसई 500 मार्च 2020 की तुलना में दोगुनी हो गईं। हर तरफ पागलपन है और यह केवल 30 बड़ी कंपनियों तक सीमित नहीं है।

दूसरा कारण फंड का फ्लो भी हो सकता है। यहां विदेशी पोर्टफोलियो निवेश और म्यूचुअल फंड की भूमिका है। पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में नकदी का प्रवाह बना हुआ है जिसके कारण धन उभरते बाजारों में चला गया है और भारत को इससे लाभ हुआ है। यहां निवेश शायद सिर्फ त्वरित रिटर्न के लिए हुआ।

म्यूचुअल फंड ने इक्विटी फंडों में रुचि देखी है और खरीदार बन गए हैं क्योंकि लोगों के पास कम रिटर्न के कारण बैंक डिपॉजिट के कम विकल्प बचे हैं। निवेश का प्रलोभन इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि जब बाजार बढ़ता है तो खुदरा ग्राहक इसकी सवारी करना चाहते हैं जिससे सीधे इक्विटी में, साथ ही फंड के जरिए अधिक निवेश होता है। इसलिए इससे बढ़त मिली।

तीसरा कारण बाहरी प्रभाव है, जहां वैश्विक इंडेक्सों से संकेत लिए जा रहे हैं। आज अमेरिका को ग्रोथ के लिए सर्वश्रेष्ठ बाजार माना जा रहा है। अमेरिकी स्टॉक मार्केट बढ़ने पर उसकी प्रेरणा से अन्य बाजारों के बढ़ने की भी प्रवृत्ति रहती है। चौथा टीकाकरण संबंधी अंदरूनी कारण है। जब टीके की खबर आई तो बाजार में उत्साह दिखने लगा। आज भी यह भाव है कि बाजार पर संक्रमणों की संख्या की तुलना में टीके की प्रगति का ज्यादा असर है। अब संक्रमित घट रहे हैं और टीका लगवा चुकी आबादी की संख्या बढ़ रही है, जिससे सेंसेक्स को एक और बूस्ट मिला है।

पांचवां, आरबीआई व सरकार द्वारा अपनाए गए रवैये की भी भूमिका रही है। आरबीआई के उदार रवैये से बाजार को मदद मिली है क्योंकि महंगाई बढ़ने पर चिंता थी, जिससे आदर्शत: आरबीआई की स्थिति प्रभावित होती क्योंकि मौद्रिक नीति समिति को महंगाई को लक्ष्य करना था। सरकार सुधारों पर सकारात्मक रही है, लेकिन प्रोत्साहन पर बहुत जोर नहीं है। सुधारों से बाजार में आशावाद आया है।

इसी गति से न सही, लेकिन बढ़त निश्चित दिख रही है। लेकिन यह गति किससे प्रभावित हो सकती है? क्वान्टिटेटिव ईजिंग (केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रा की आपूर्ति में नई मुद्रा की शुरुआत) की वापसी से बाजार अस्थिर हो सकता है, हालांकि यह इस साल नहीं होगा। वैश्विक वृद्धि भी सकारात्मक रहेगी। तीसरी लहर आती भी है, तो देश इसके लिए ज्यादा तैयार दिख रहा है। कुलमिलाकर बाजार ऊपर की ओर जाएगा, हालांकि गति अनिश्चित है। अर्थव्यव्सथा पहले ही नीचे हैं, जो और बुरी नहीं हो सकती और यह बाजार के लिए अच्छी बात होगी।

मदन सबनवीस
(लेखक चीफ इकोनॉमिस्ट, केयर रेटिंग्स हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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