हर्ड इम्यूनिटी से घटेगा प्रकोप

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जैसे-जैसे कोरोना का प्रसार तेज हो रहा है, वैज्ञानिकों में हर्ड इम्यूनिटी को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है। हर्ड इम्यूनिटी यानी अगर लगभग 70-90 फीसद लोगों में बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए तो बाकी भी बच जाएंगे। लेकिन इसके लिए वैक्सीन जरूरी है। बहस भी इसी बात पर है कि कोरोना में किसी वैक्सीन की अनुपलब्धता में क्या हर्ड इम्युनिटी अपना इतिहास दोहरा पाएगी? कोरोना की शुरुआत में ब्रिटेन ने हर्ड इम्यूनिटी का प्रयोग करने की कोशिश की। हालांकि वहां के तीन सौ से अधिक वैज्ञानिकों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया और कहा कि सरकार को सख्त प्रतिबंधों के बारे में सोचना चाहिए, ना कि ‘हर्ड इम्यूनिटी’ जैसे विकल्प के बारे में, जिससे बहुत सारे लोगों की जान को अनावश्यक खतरा हो सकता है। मगर ब्रिटेन की सरकार ने कुछ दिनों तक अपने प्रयोग जारी रखे और वहां कोरोना ने भीषण तबाही मचाई। ब्रिटेन ने जब अपने देश में हर्ड इम्यूनिटी का प्रयोग शुरू किया, उसी के आसपास स्वीडन ने भी अपने यहां यही प्रयोग शुरू किया।

शुरू-शुरू में स्वीडन को इसमें कुछ सफलता भी मिलती दिखी, लेकिन अब वहां भी कोरोना के मामले जोरों पर हैं। दरअसल हर्ड इम्यूनिटी की जरूरी शर्त वैक्सीनेशन है, जिससे लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की इमरजेंसी सर्विस के प्रमुख डॉ. माइक रयान का कहना है कि अभी पूरे यकीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि नए कोरोना मरीजों के ठीक होने के बाद उनके शरीर में जो एंटीबॉडी बनी है, वह उन्हें दोबारा इस वायरस के संक्रमण से बचा पाएगी भी या नहीं। चीन ही नहीं, भारत में भी कोरोना के रिवर्स अटैक देखने को मिल रहे हैं। लेकिन स्थापित तथ्य यही है कि सामूहिक रोग प्रतिरोध क्षमता का अभाव ही महामारी का विस्तार करता है और उस क्षमता की मजबूती से ही महामारी शांत होती है। महामारी विज्ञान के अनुसार किसी रोग का फैलाव वायरस या बैक्टीरिया की मारक शक्ति और मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति पर निर्भर है। जिन्हें रोग का टीका या दवा मिल चुकी है, उनका और संक्रमित लोगों का अनुपात और वातावरण की स्वच्छता रोग के प्रसार के निर्णायक पहलू हैं।

अगर वायरस या बैक्टीरिया की मारक क्षमता मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति की अपेक्षा कमजोर है, तो रोग उत्पन्न नहीं होता। अगर दोनों की शक्ति समान है, तो दोनों ही सहअस्तित्व की स्थिति में स्थायी या अस्थायी शांति बनाकर रहते हैं। जब किसी एक पक्ष की शक्ति में अपेक्षाकृत वृद्धि हो जाती है, तब संघर्ष फिर शुरू हो जाता है। रोगाणु की मारक शक्ति उसकी संख्या, आक्रामकता, जनन-क्षमता तथा सामर्थ्य पर निर्भर करती है। जनता की रोग प्रतिरोधक शक्ति, प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिरोधक शक्ति को जोड़ने से बनी सामूहिक प्रतिरक्षा पर निर्भर करती है। महामारी का प्रकोप होने पर या तो लोग संक्रमित होकर मरते हैं, या निरोग हो जाने पर प्रतिरक्षित हो जाते हैं। ठीक होने वालों की संख्या बढ़ने से रोग प्रतिरोधी व्यक्तियों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है। ऐसा होते-होते एक दिन रोग प्रतिरोधक लोगों की संख्या रोगियों की संख्या से ज्यादा हो जाती है और महामारी शांत हो जाती है। यही हर्ड इम्यूनिटी का आधार है।

अभी तक कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे थे। लेकिन हाल में ही दुनिया भर में पाए गए लगभग 79 लाख मामलों में 40 लाख लोगों के ठीक होने के भी समाचार आए हैं। भारत अपने आंकड़ों के जरिए 50 फीसद रिकवरी रेट बता रहा है तो अमेरिका- 41 फीसद, चीन- 90, जर्मनी- 91, इटली- 74 और फ्रांस 46 प्रतिशत के आसपास बता रहे हैं। लेकिन ये आंकड़े भी कुल संक्रमित लोगों की तुलना में हैं, न कि कुल आबादी की तुलना में। जबकि हर्ड इम्यूनिटी कुल आबादी की अवधारणा पर काम करती है। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंचने के लिए 70 से 90 फीसद आबादी का इम्यून होना जरूरी है। फिर भी वैज्ञानिकों को आशा है कि सामुदायिक स्तर पर महामारी पहुंची तो शायद हर्ड इम्यूनिटी काम आ जाए। लेकिन उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि वैक्सीन की अनुपलब्धता में यह काम कैसे आएगी?

नरपत दान-बारहठ
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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