सरकार बदलाव के प्रति संवेदनशील

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अंतरराष्ट्रीय बाजार में बीते एक साल में तेल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। ब्रेंट क्रूड ऑयल इंडेक्स के अनुसार मार्च 2020 में यह 30 डॉलर प्रति बैरल थी जो फरवरी 2021 में तकरीबन 64 डॉलर प्रति बैरल हो गई। यह महंगाई स्पष्ट रूप से मांग-आपूर्ति के बुनियादी सिद्धांत पर आधारित है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आया यह बदलाव जब पेट्रोल पंप पर उतरता है तो भारत के मीडिया में इस पर तीखी प्रतिक्रिया होती है, लेकिन इसकी असली वजहों को समझने की कोशिश का हमेशा अभाव दिखता है। कीमत में बढ़ोतरी का पहला कारण कच्चे तेल की मांग में बढ़ोतरी है। कोविड-19 के बाद के दौर में तमाम देशों ने अर्थव्यवस्थाओं को खोलना शुरू किया तो कच्चे तेल की वैश्विक मांग में इजाफा हुआ। दूसरी तरफ ओपेक देश उत्पादन बढ़ाने को तैयार नहीं थे क्योंकि वे कीमतें नीचे नहीं आने देना चाहते थे। साल 2020 की शुरुआत में तेल उत्पादन में 97 लाख बैरल प्रति दिन की कटौती की गई थी। उसमें तब से सिर्फ 25 लाख बैरल प्रति दिन की बढ़ोतरी की गई है।

मध्य पूर्व पर निर्भरता

पिछली सरकारों के दौर में देश को कीमतों में ऐसे उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए ठीक से तैयार नहीं किया गया। ऐसी उदासीनता ने मध्य-पूर्व पर निर्भरता को बढ़ाया। भारत के तेल आयात का 83 फीसद मध्य-पूर्व से ही आता है। सौभाग्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में अब एक ऐसी दूरदर्शी सरकार है जिसने मांग, आपूर्ति और मूल्य निर्धारण की दिशा में सुधार के कई उपाय किए हैं जिनका मकसद कीमत में उतार-चढ़ाव से आम जन को बचाते हुए आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू तेल व गैस उत्पादन को बढ़ावा देना है।

वरुण गांधी
(लेखक भाजपा सांसद हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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