डार्विन के गॉड थोड़े से अलग

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वर्ष 1809 में आज ही के दिन 12 फरवरी को चार्ल्स डार्विन का जन्म हुआ था। उन्होंने दक्षिण अमेरिका के गल्पागोस द्वीप में कछुओं का गहन अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हर प्रजाति पर्यावरण की चुनौतियों के अनुसार अपने को बदलती रहती है। हर प्रजाति में विभिन्नता होती है। जैसे कुछ गायें घास खाकर जीवित रह सकती हैं तो कुछ को दाना चाहिए। ऐसे में यदि निरंतर अकाल पड़ता ही रहे तो घास खाने वाली गाय की प्रजाति जीवित रहेगी और दाना खाने वाली गाय लुप्त हो जाएगी। इसी बदलाव के एक अन्य उदाहरण के रूप में उन्होंने व्हेल मछली के विषय में कहा कि कुछ भालू समुद्र में मछली पकड़ कर खाते हैं। कुछ भालू अपना मुंह बड़ा करते गए होंगे ताकि आसानी से मछलियों को पकड़ सकें। समय क्रम में उनकी प्रजाति व्हेल मछली के रूप में बदल गई होगी। बाद में पाया गया कि भालू नहीं बल्कि हिप्पोपोटैमस के बदलाव से व्हेल मछली बनी हो सकती है। ऐसे ही नर मोर के सुंदर और बड़े पंख के दो विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। एक तरफ वह इसके जरिए मादा को आकर्षित करता और प्रजनन बढ़ाता है तो दूसरी तरफ इसी बड़े पंख के कारण दूसरे पशु उसे चिह्नित कर शिकार करने को तत्पर रहते हैं। इसलिए नर मोर को प्रजनन और सुरक्षा के बीच में अपने पंखों को एडजस्ट करना पड़ता है।

डार्विन के विचार में कमी यह पाई गई कि चींटी, मधुमक्खी आदि तमाम ऐसी प्रजातियां देखी गईं जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के स्थान पर अपनी जाति के स्वार्थ को प्राथमिकता देती हैं। इसका हल यह निकाला गया कि हर जाति के सभी जीव एक दूसरे से जुड़े होते हैं। उनकी दो प्रकार की चेतना होती है– जातीय चेतना और व्यक्तिगत चेतना। विशेष परिस्थतियों में उनकी जातीय चेतना प्रभावी हो जाती है जिसके कारण चींटी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को त्याग कर अपने जातीय स्वार्थ को प्राथमिकता देती है। इस प्रकार मूल रूप से डार्विन की थियरी आज वैज्ञानिकों को मान्य है।

1860 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में डार्विन के समर्थक थॉमस हक्सली और बिशप सैमुअल विल्वरफोर्स के बीच विवाद हुआ। विल्वरफोर्स ने हक्सली से पूछा कि यदि वे अपने को बंदर का वंशज मानते हैं तो उनके पूर्वज दादी की तरफ से बंदर थे या दादा की तरफ से? इसके उत्तर में हक्सली ने कहा कि वे बंदर का वंशज होना पसंद करेंगे बनिस्बत ऐसे मनुष्य का जो किसी वैज्ञानिक विचार को हंसी में उड़ा दे। ईसाई धर्म के बिशप विल्वरफोर्स द्वारा डार्विन का विरोध किये जाने का कारण यह था कि बाइबिल के अनुसार गॉड ने मनुष्य को बनाया। ऐसा ही हमारे शास्त्रों में कहा गया है। वायु पुराण 8.37-40 में कहा गया कि ब्रह्मा ने पुरुष और स्त्री के हजार हजार जोड़ों के चार समूह उत्पन्न किए। पुनः कहा गया कि ब्रह्मा ने राक्षस, देवता, मनुष्य, पितर, चिड़िया और पशुओं को बनाया (9.6)। डार्विन की विचारधारा बैबले के गॉड या पुराणों के ब्रह्मा द्वारा मनुष्य को बनाए जाने के विपरीत बैठती है। डार्विन ने कहा कि वर्तमान मनुष्य बंदरों द्वारा अपने को धीरे-धीरे परिस्थति के अनुसार बदलाव के कारण उत्पन्न हुआ है न कि गॉड अथवा ब्रह्मा द्वारा बनाए जाने से।

डार्विन और धर्मशास्त्रों में दिखता यह अंतर्विरोध तब दूर हो जाता है जब हम गॉड अथवा ब्रह्मा की व्याख्या अंतर्चेतना के रूप में करते हैं। जैसे सब बंदरों की एक अंतर्चेतना थी। उस अंतर्चेतना ने बंदर को किसी विशेष दिशा में अपने को बदलने के लिए प्रेरित किया और वह धीरे-धीरे मनुष्य रूप में परिवर्तित हो गया। यानी कहा जा सकता है कि अंतर्चेतना ने मनुष्य को बनाया। अंतर्चेतना द्वारा मनुष्य को बनाने का अर्थ हुआ कि गॉड या ब्रह्मा हमारे अंदर हैं। लेकिन यह विचारधारा यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्मों के बाहरी भगवान की विचारधारा के विपरीत है। इन धर्मों का मानना है कि गॉड मनुष्य के बाहर है और एक बाहरी शक्ति के रूप में वह हमें बनाता है। ऐसे ही हिंदू धर्म के कुछ वर्गों में शिव, राम और कृष्ण को बाहरी शक्ति के रूप में माना जाता है। साफ है कि अगर हम बाहरी गॉड या ईश्वर को छोड़ कर हम उसकी परिभाषा अंतर्चेतना के रूप में करें तो डार्विन का विज्ञान और हमारे धर्मशास्त्र आपस में मेल खाते हैं। इनके बीच का अंतर्विरोध समाप्त हो जाता है।

भरत झुनझुनवाला
(लेखक अर्थ विशेषज्ञ हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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