यह दुखद है कि भारत के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन कोई उत्साह से नहीं मना। जीवन में कितनी ही आपाधापी क्यों न हो परंतु इस महान लेखक का जन्मदिन भूल जाने को क्षमा नहीं कर सकते। ज्ञातव्य है कि अपनी कथा पर बनी फिल्म ‘द मिल’ में स्वयं प्रेमचंद ने चरित्र भूमिका निभाई थी। मजदूर बनाम मालिक की कथा में तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत को अपने लिए खतरा दिखा व उन्होंने फिल्म प्रतिबंधित करा दी। तब तक कुछ जगह फिल्म प्रदर्शित हो चुकी थी। इसी से दु:खी हो, प्रेमचंद ने फिल्म उद्योग त्याग दिया, परंतु उद्योग ने उन्हें स्मृति में जीवित रखा। सत्यजीत रे ने प्रेमचंद प्रेरित ‘शतरंज के खिलाड़ी’ बनाई और श्याम बेनेगल ने ओम पुरी अभिनीत ‘सदगति’ तथा गुलजार ने ‘कफन’ व अन्य कथाओं से प्रेरित लघु फिल्में दूरदर्शन के लिए बनाईं। युवा फिल्मकार जेटली ने दो बैलों की कथा से प्रेरित होकर ‘हीरा-मोती’ बनाई, जिसका संगीत पंडित रविशंकर ने रचा। प्रेमचंद के उपन्यास गबन, सेवा सदन और गोदान पर भी फिल्में बनीं। मुंशी प्रेमचंद की ‘द मिल (मजदूर)’ में मालिक मजदूर का द्वंद्व था और कुछ ऐसा ही द्वंद्व अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना अभिनीत ऋषीकेश मुखर्जी की फिल्म ‘नमक हराम’ में भी प्रस्तुत किया गया था। ज्ञातव्य है कि ‘नमक हराम’ पर भी सीधा प्रभाव पीटर ओ टूल और रिचर्ड बर्टन अभिनीत फिल्म ‘बैकेट’ का था।
सृजन क्षेत्र में हवाएं स्वतंत्र हैं और पूर्व-पश्चिम का छाया युद्ध उसमें नजर नहीं आता। मिल मालिक और मजदूर के हितों की टकराहट समय-समय पर सभी देशों में घटित हुई हैं। एक दौर में अमेरिका के मजदूरों ने अपना संगठन बनाने की स्वतंत्रता की मांग की और हड़ताल पर चले गए। सभी सीनेटर मिल मालिक के हित की रक्षा करना चाहते थे। सीनेटर वैगनर ने सुझाव दिया कि मजदूरों को संगठन बनाने की आज्ञा दी जाए और हम अपने लोगों को ही संगठनों का अध्यक्ष बना देंगे। इस तरह साधनहीन लोगों के जीवन में पलीता लगा दिया गया। मुंशी प्रेमचंद ने अपनी आरंभिक रचनाएं उर्दू में लिखी थीं। ज्ञातव्य है कि अपने जन्म नाम धनपत राय से उर्दू में लिखा कालंतर में प्रेमचंद रखा। इस बात पर भी भाषा क्षेत्र में शुद्धता के हिमायती लोग नाराज हो गए। इसी तरह राजेंद्र सिंह बेदी से भी कुछ लोग खफा रहे कि उन्होंने ‘एक चादर मैली सी’ उर्दू लिपि में लिखी। संकीर्णता हर दौर में हर क्षेत्र मे सक्रिय रही है, परंतु वर्तमान में इसे संगठित माफिया बना दिया गया है। अवाम सदियों से संकीर्णता ग्रसित रही है, परंतु कुछ समय के लिए उसने मुखौटा धारण कर लिया था। वर्तमान में कोई परदेदारी नहीं बरती जा रही है। नंग-धड़ंग घूम रहे लोगों को खोज कर सम्मानित किया जा रहा है।
एक किस्सा है कि एक हुक्मरान ने श्रेष्ठ वस्त्र बनाने की प्रतियोगिता आयोजित की। वस्त्र का महीन होना आवश्यक था। एक चतुर व्यक्ति ने अपने प्रचार की सहायता से ऐसी हवा बनाई कि हर वह देखने वाला अंधा और मूर्ख मान लिया जाएगा, जिसे वस्त्र दिख रहे हैं। अत: नंग-धड़ंग दिख रहा व्यक्ति अपनी प्रचार शक्ति से विजेता बना। वह जानता था कि कोई व्यक्ति स्वयं को अंधा या मूर्ख कहा जाना पसंद नहीं करेगा। कबीर ने आंखन देखी बयां की और शैलेंद्र ने अपने दौर की विसंगतियों और विरोधाभास को देखकर लिखा कि ‘मत रहना अंखियों के सहारे।’ अब स्पर्श भी धोखा देने लगा है, हमने अदृश्य दस्ताने जो पहन रखे हैं। गुजश्ता नेहरू युग में डाक-विभाग ने मुंशी प्रेमचंद का स्टैम्प जारी किया था। मुंशी प्रेमचंद के जन्म स्थान लमही में उनकी मूर्ति लगाई गई है। लेकिन, वर्तमान पंचायत में से परमेश्वर नदारद हो गए हैं, सरकार अन्य कामों में व्यस्त है। प्रेमचंद ने रिश्वत को चीन्ह कर ‘नमक का दरोगा’ लिखी थी। उनकी रचनाएं कालजयी हैं। सारी विसंगतियां व विरोधाभास वर्तमान में हैं, परंतु आम आदमी वही देख रहा है, जिसकी उसे आज्ञा है। वह अपनी छोटी सी खिड़की से आकाश का आकल्पन कर रहा है।
जयप्रकाश चौकसे
(लेखक वरिष्ठ फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)