आज का मनुष्य भाग्य का मारा और काल का प्यारा है। भाग्य और काल दोनों दिखते नहीं हैं। हमारे शास्त्रों में चार दिग्पालों की चर्चा आती है- इंद्र, वरुण, कुबेर और यम। यू कहें कि ये चारों ही संसार का संचालन करते हैं। इनमें इंद्र शीर्ष पर है, लेकिन डरा हुआ है। हर बड़े आक्रमण पर भगवान की शरण में जाना पड़ता है। इस दौर में बड़े-बड़े सत्ताधीश भी भयभीत हो गए। उनके भीतर का इंद्र ईश्वर की शरण ढूंढ रहा है। वरुण को जल की व्यवस्था का देवता माना जाता है। आज जो व्यवस्थाएं सुदृढ़ होना थीं, वो सब पानीपानी हो गई हैं। कुबेर संसार के सबसे बड़े धनी, देवताओं के खजांची, लेकिन रावण ने इन्हें कंगाल कर दिया था। इस समय कुबेर की गति भी समझ ही नहीं आ रही है।कृपा, जादू, चमत्कार या तिकड़म से कुछ लोगों की दौलत खूब बढ़ गई और कुछ की बचत तक खर्च हो गई। ऐसा लगता है जैसे कुबेर भी थककर बैठ गए हों।
चारों दिग्पालों में इस समय सर्वाधिक दबदबा यमराज का रहा। फुरसत ही नहीं है। पूरा यमलोक इतना व्यस्त है कि उसी कारण भू-लोक त्रस्त है। ध्यान रखिए, इन चारों दिग्पालों की चाबी ईश्वर के हाथ में है। तो हर बुद्धिमान आदमी इस समय उसे पकड़ ले, जिसने इन चारों को पकड़ा हुआ है। ईश्वर एक ऐसे आत्मविश्वास और अनुशासन का नाम है जिसे हर कोई संकल्प के साथ पा सकता है। अब ‘रोज कमाना और रोज बचाना’ ऐसा अंदाज़ सबके जीवन में उतर आया है। महंगाई बढ़ेगी और आमदनी घटेगी, तब या करें? यह सवाल जब चाणय से पूछा गया था तो उन्होंने मंत्रियों से कहा था कि बढ़ती हुई महंगाई का सामना अनुशासन से करना होगा और घटती हुई आय को मेहनत से बचाना होगा।
तो महामारी के बचाव के लिए आज जितनी बातें कही जा रही हैं मास्क, वैसीनेशन, स्वच्छता, दूरी.. इन सबमें दो बातें और जोड़ लीजिए- अनुशासन व मेहनत। कुछ लोग मूल रूप से अनुशासनहीन होते हैं। जिनको सारी दुनिया दुल्हन नजर आए, उनकी रंगीन मिजाजी का या कहना। ऐसे दुष्ट लोग खुद तो संकट में पड़ेंगे ही, दूसरों को भी परेशानी में डालेंगे। लेकिन, हम इनसे उलझकर अपनी ऊर्जा नष्ट न करते हुए अपने भीतर के ऐसे ही उद्दंड तत्व को नियंत्रित रखें और खूब परिश्रम करें। किया हुआ कभी व्यर्थ नहीं जाता। इन दिनों आमदनी को सुस्ती और महंगाई को मस्ती चढ़ी हुई है। इन दोनों का तोड़ है कायदा और हौसला। मतलब अनुशासन और परिश्रम।
पं. विजयशंकर मेहता
(लेखक आध्यात्म से जुड़े हैं, ये उनके निजी विचार हैं)