गिलानी घोर भारत विरोधी

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जब अखबारों में हुर्रियत कांफ्रेंस के पृथकतावादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को अपने ही संगठन से खुद को अलग करने की खबर पढ़ी तो पुरानी यादें ताजा हो गई। वह जम्मू-कश्मीर के उन पृथकतावादी नेताओं में से थे जोकि दिल्ली पहुंचते ही मुझे फोन करके बुलावा लेते थे। मैं लाजपतनगर स्थित उनके घर में चाय पर उनसे राज्य की राजनीति पर चर्चा किया करता था। सैयद अली शाह गिलानी घाटी के उन बुजुर्ग अलगाववादी नेताओं में हैं जोकि अपने भारत विरोधी रवैए के कारण जाने जाते हैं।90 वर्षीय नेता पहले जमाते-इस्लामी कश्मीर के सदस्य थे। बाद में उन्होंने तहरीक-ए-हुर्रियत नामक पार्टी बनाई व बाद में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस का गठन करके वे खुद तो उसके अध्यक्ष बने और अपनी पार्टी का इसमें विलय करा दिया। भारतीय संविधान में लगातार यह नेता तीन बार 1972, 1977 व 1987 में भारतीय संविधान की शपथ लेकर राज्य के सोपोर विधानसभा क्षेत्र का विधायक चुना गया। गिलानी की पढ़ाई-लिखाई अविभाजित भारत के लाहौर शहर में हुई थी। वे कश्मीर के के प्रमुख अलगाववादी नेताओं में गिने जाते हैं।

जब उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे तो वे कश्मीर में आतंकवाद व खून खराबे के लिए गिलानी को जिम्मेदार ठहराते थे व राज्यो के लोगों को उनकी बरबादी से बचाने की बात करते थे व उनके पिता फारूक अब्दुल्ला कहते हैं कि वें तो ऐसे कौव्वे है जिनको पटाकर अपनी मदद के कितने ही अच्छे डिटरजेंट से क्यों न धोए उनका रंग साफ होने वाला नहीं है।उनके रहते ही हुर्रियत कांफ्रेंस में विभाजन हो गया था और वे अपनी अध्यक्षता वाले  धड़े के प्रमुख बन गए। उन्होंने 2013 में तहरीक-ए-हुर्रियत पार्टी बनाई थी। उन्हे पुलिस मुठभेड़ में आतंकवादियों के मरने  के बाद शहर में लंबे अरसे के लिए बंद आयोजित करवाने के लिए जाना जाता है। उन्हें आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कहते थे। उन्होंने युवा आतंकवादी वुरहान मुजफ्फर वानी के 2016 में पुलिस एनकाउंटर में मौत के बाद लगातार कश्मीर में महीनो तक आम हड़ताल करवाने का रिकार्ड बनाया था। वे वहां के स्थानीय राजनीतिक दलो जैसे पीपुल्स डेमोक्रेटिव पार्टी व नेशनल कांफ्रेंस के धुर विरोधी रहे हैं। जब 2014 के राज्य विधानसभा चुनावों में उन्होंने बायकाट किए जाने की अपील की तो बावजूद इसके बावजूद वहां रिकार्ड मतदान हुआ।

उनके दो बेटे व चार बेटिया है। उनका एक दामाद जाना-माना पत्रकार है व दिल्ली में ही पत्रकारिता करता है। उनका बेटा नईम व उसकी पत्नी डाक्टर है। दोनों पाकिस्तान के रावलपिंडी में अपनी प्रेक्टिस करते हैं।उनका छोटा बेटा नसीम श्रीनगर कृषि विश्वविद्यालय में नौकरी करता है। उनका पोता इजहार एक भरतीय विमान कंपनी में पायलट है। उनकी बेटी फरहत भी अपने इंजीनियर पति के साथ रहती है व वह खुद अध्यापिका है। उनके पोते-पोतियां कश्मीर से बाहर देश के जाने-माने स्कूलो व कालेजों में पढ़ रहे हैं। भारत के खिलाफ लंदन में अभियान चलाने वाला गुलाम नवी उनका चचेरा भाई है। भारत विरोधी रवैए के कारण सरकार ने 1981 में उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। हालांकि उन्हें 2006 में हज पर जाने की इजाजत दे दी गई थी। वे फिलहाल कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं व मनमोहन सिंह सरकार से विदेश ईलाज कराने जाने के लिए उनका व उनके बेटे को पासपोर्ट जारी किया गया था मगर अमेरिकी सरकार ने उन्हें वीजा देने से मना कर दिया था। उनका मुंबई में आपरेशन हुआ था।

उन्हें 2014 में दिल का दौरा पड़ा था व वे 2010 से अपने घर में कैद रहकर जीवन बिता रहे थे। 2015 में उन्होंने सऊदी अरब में रह रही अपनी बेटी से मिलने जाने के लिए पासपोर्ट मांगा मगर राष्ट्रीयता का जिक्र न करने के कारण सरकार ने उन्हें पासपोर्ट देने से मना कर दिया। बाद में जब गिलानी ने अपनी राष्ट्रीयता भारतीय बताई तो सरकार ने नौ माह के लिए उन्हें पासपोर्ट जारी कर दिया था। 2019 में पुलवामा हमला होने के बाद सरकार ने गिलानी समेत तमाम आतंकवादियों के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए फेमा कानून के तहत उनसे 6.8 लाख रुपए जब्त करने व उन पर 14.40 लाख का जुर्माना लगाया था। कट्टर पाक समर्थक यह वयोवृद्ध नेता कश्मीर को भारत से अलग कर पाकिस्तान की तरह इस्लामी राष्ट्र बनाना चाहता है। वह युवाओं को हथियार उठाने के लिए प्रेरित कर रहा है। मगर उसके अपने बच्चे व बच्चों के बच्चे कश्मीर के बाहर देश के दूसरे हिस्सो व विदेशों में पढ़ रहे व नौकरी कर रहे हैं।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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