गंगा निर्मलीकरण योजना एक अधुरा सपना

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गंगा निर्मलीकरण योजना एक अधूरा सपना सिद्ध हुई है। इसका एक बड़ा कारण पूरी परियोजना को सरकारी तौर पर चलाया जाना रहा। 2014 के बाद से गंगा के लिए 20 हजार करोड़ रुपए जारी हुए, मगर खर्च एक तिहाई भी नहीं हो पाए। एक तरफ सरकार ने चिंता व्यक्त करके अपना काम पूरा समझ लिया है तो दूसरी तरफ गंगा निर्मलीकरण में जन भागीदारी भी लगभग न के बराबर ही रही है।

गंगा प्रदूषण की मॉनीटरिंग के लिए बने 30 केंद्रों में से 28 की रिपोर्ट है कि नदी में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश में बिजनौर से गाजीपुर के बीच गंगा जल के परीक्षण के परिणाम बताते हैं कि नदी का पानी मनुष्यों ही नहीं, पशुओं के लिए भी खतरनाक हो गया है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के प्रदूषण रोकने संबंधी निर्देशों और नियमों की तटवर्ती क्षेत्रों में धज्जियां उड़ रही हैं। यह सब तब, जबकि ‘राष्ट्रीय नदी गंगा विधेयक’ ड्राफ्ट में गंगा संबंधी मुद्दों की देखरेख के लिए एक प्रबंध तंत्र विकसित करने, गंगा के निर्बाध प्रवाह की निरंतरता बनाए रखने तथा अनेक अवैधानिक गतिविधियों पर रोकथाम के प्रावधान हैं। ‘सशस्त्र गंगा संरक्षण बल’ तो है ही, गंगा कानून के उल्लंघन पर गिरफ्तारी, पांच साल की जेल और 50 करोड़ रुपए तक के भारी जुर्माने का प्रावधान है। और तो और, 58 संसदीय क्षेत्र गंगा किनारे के हैं।

‘विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित’ नदी के रूप में प्रचारित गंगा के जल की गुणवत्ता में कहीं-कहीं मामूली सुधार तो हुआ है, पर ‘जीरो प्रदूषण’ का लक्ष्य अभी काफी दूर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी क्षेत्र वाराणसी की प्रसिद्ध देव दीपावली महोत्सव में पिछले दिनों अपनी उपस्थिति तो दर्ज कराई, लेकिन 2014 में शपथ ग्रहण करने से पहले काशी में गंगा तट से जो कहा था, ‘मैं नहीं आया, मुझे मां गंगा ने बुलाया है’, उसे भूल गए और गंगा प्रदूषण के बारे में उनका मौन गंगा प्रेमियों के लिए एक कसक पैदा कर गया।

गंगा प्रदूषण की रोकथाम के लिए सबसे जरूरी है नदी में नगरों के सीवेज का प्रवाह रोकना। यह काम गंगा ऐक्शन प्लान के तीन चरणों और ‘नमामि गंगे’ अभियान के आधे दशक में भी पूरा नहीं हो सका है। पांच राज्यों से होकर जाने वाली गंगा के प्रति राज्यों का रवैया बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा है। ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के अंतर्गत प्रस्तावित 63 सीवेज प्रबंधन इकाई की स्थापना, नदी तट विकास की 28 योजनाओं, जैव विविधता संरक्षण, सघन वृक्षारोपण, गंगा ग्राम की स्थापना और औद्योगिक कचरा प्रबंधन संबंधी योजनाएं लंबी अवधि बीतने पर भी पूरी नहीं हुई हैं। सर्वाधिक विफल तो जनजागरण योजना रही है। वाराणसी में अब भी गिरते 39 सीवेज नालों और हरिद्वार-प्रयागराज के बीच गंगा में मिलते करीब तीन दर्जन कारखानों का गंदा जल प्रयाग के माघ मेला के अवसर पर बंद किए जाने की सरकारी घोषणा स्वयं प्रदूषण का प्रमाण है।

गंगा को सरकार और सरकारी योजनाओं के भरोसे छोड़कर हमने शायद भारी भूल की है। लंदन में टेम्स नदी की कथा गवाह है कि कैसे नदी को बचाने और प्रदूषण दूर करने के लिए हजारों युवक-युवतियां, बुजुर्ग सभी निकल पड़े। यह मानवीय जनजागरण का परिणाम है कि नदी का पानी आज पारदर्शी है और जगह-जगह नदी की तलहटी भी साफ देखी जा सकती है। जिस नदी के भयंकर प्रदूषण और दुर्गंध के कारण इंग्लैंड की संसद को लंबे समय तक अपना कामकाज बंद करना पड़ा था, वही टेम्स आज पीने के पानी का भी एक बड़ा स्रोत बन गई है।

इसी तरह से अपने यहां के हालात से यह साफ हो चुका है कि केवल सरकार के भरोसे गंगा को नहीं छोड़ा जा सकता। इस दिशा में भारतीय सेना के रिटायर अधिकारियों का एक प्रयास विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसी माह दिसंबर में प्रयागराज (इलाहाबाद) संगम तट से शुरू हुई आठ महीने की लंबी गंगा यात्रा 5100 किलोमीटर की दूरी तय कर गंगा की स्वच्छता के प्रति जनजागरण करेगी। रिटायर सैनिकों की संस्था ‘अतुल्य गंगा’ द्वारा ‘सबका साथ हो-गंगा साफ हो’ नारे के साथ पांच राज्यों की यात्रा युवकों को जोड़ने के काम में लगी है।

अमितांशु पाठक
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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