सनातन धर्म में 33 कोटि देवी-देवताओं में भगवान श्रीगणेश जी को प्रथम पूज्यदेव माना जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार सर्वविघ्नविनाशक अनन्तगुण विभूषित बुद्धिप्रदायक सुखदाता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अनन्त है। श्रीगणेशजी की श्रद्धा, आस्था, विश्वास के साथ की गई पूजा-अर्चना से जीवन में सुख, समृद्धि, खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है। श्रीगणेश चतुर्थी तिथि के दिन की गई पूजा विशेष फलदायी होती है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक मास में शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाने वाला वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत इस बार शनिवार, 28 मार्च को रखा जाएगा। चैत्र शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि शुक्रवार, 27 मार्च की रात्रि 10 बजकर 13 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन शनिवार, 28 मार्च की रात्रि 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगी। मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी तिथि शनिवार, 28 मार्च को होने से वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। इस दिन श्रीगणेश भक्त व्रत-उपवास रखकर श्रीगणेशजी की विधिविधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके लाभान्वित होंगे।
कैसे करें पूजा-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल समस्त दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होने के उपरान्त अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करके वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। श्रीगणेश का श्रृंगार करके उन्हें दूर्वा एवं दूर्वा की माला, मोदक (लड्डू), अन्य मिष्ठान्न ऋतुफल आदि अर्पित करके धूपदीप, नैवेद्य के साथ पूजा करनी चाहिए। श्रीगणेश जी की महिमा में उनकी विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश चालीसा, श्रीगणेश सहस्रनाम एवं श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेश जी से सम्बन्धित विभिन्न मन्त्रों का जप करना लाभकारी रहता है। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है। जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो, उन्हें वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखकर श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए। वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है।
(ज्योतिर्विद श्री विमल जैन)