जब मैं मैक्सिको से हॉलीवुड आई तो कई बातों को लेकर नर्वस थी, जो बाद में गलत साबित हुईं। मैं सोचती थी कि मैं हॉलीवुड पहुंचते ही काम शुरू करूंगी, लेकिन मुझे यहां पहले से काम कर रही लड़कियों के बारे में सोचकर तनाव होता था। मुझे लगता था कि वो मुझे यहां पैर नहीं जमाने देंगी और काफी खींचतान होगी। वो मुझे टॉप पर नहीं रहने देंगी और ऑडिशन के दौरान मेरी टांग भी टूट सकती है। मैं वाकई यह सब सोचकर चिंतित रहती थी। लेकिन मैं गलत थी। अमेरिका में इतने लंबे कॅरिअर के बाद मुझे कहना होगा कि जब मैं अपनी अंतिम सांसें ले रही होऊंगी तब मेरे चेहरे पर एक मुस्कान होगी।
दोस्तों के बारे में…
इस इंडस्ट्री ने मुझे अद्भुत लोग दिए, कमाल के दोस्त दिए। शायद इस इंडस्ट्री में दुनिया की सबसे बेहतरीन महिलाएं हैं, यह शायद इसलिए कि हमें इतना दबाया जाता है कि हममें आपस में ही एक बॉन्डिंग बन जाती है। जैसे ‘वाइल्ड वाइल्ड वेस्ट’ करते वक्त मैं तमाम लड़कों में अकेली महिला थी, एक एक्टर की पत्नी वहां मेरी दोस्त बनी जो जीवनभर से मेरे साथ है। हम उस पीढ़ी की महिलाएं हैं जो यह मानती थीं कि हम कभी 30 की उम्र को पार नहीं करेंगे, अगर हमें यहां काम नहीं मिला तो हम अपनी इंडस्ट्री शुरू करेंगे।
महिलाओं के बारे में…
महिलाएं इस दुनिया की जनसंख्या का लगभग 50 प्रतिशत हैं। हमें कम मौके मिलते हैं, हमारी अपनी सीमाएं हैं, एजुकेशन तक में सीमित पहुंच है… फिर भी हम दुनिया के वर्क पावर का 66 फीसदी हैं। लेकिन दुनिया की केवल 10 प्रतिशत कमाई ही हमारे हिस्से आती है। यह वाकई दु:खद है। बतौर सामाजिक कार्यकर्ता, 20 साल काम करने के बाद मुझे अब महसूस हो रहा है कि इस मामले में बदलाव अब शुरू हो रहा है। खासतौर पर इस इंडस्ट्री में तो पहली बार, क्योंकि हम महिलाओं की स्थिति को लेकर बरसों से शिकायतें करते रहे।मुझे याद है ऑस्कर में कई लोगों ने अपनी स्पीच में इस बारे में बात की। हम इस बारे में लगातार बात करते रहे, बहस करते रहे, विचार करते रहे। अब हमारी पीढ़ी इस बदलाव को महसूस करेगी। उन्होंने आखिरकार हमारी बात समझी। उन्होंने हमें समझा… इसलिए नहीं कि वे बहुत अच्छे हैं और हमें सुन रहे थे, बल्कि इसलिए कि हम महिलाएं इस देश में बड़ी आर्थिक शक्ति हैं, हम उस मजबूत ऑडियन्स का हिस्सा हैं,, जिसे अब नजरंदाज नहीं किया जा सकता। जो बदलाव आ रहा है उसके बारे में रोचक बात यह है कि हम उसके साथ क्या करने वाले हैं! यह कन्फ्यूज़ करने वाला है क्योंकि हमें इतने लंबे दौर तक नजरंदाज किया गया कि हम वाकई नहीं जानते कि महिलाएं क्या देखना चाहती हैं। हम तो अपनी आवाज ही नहीं पहचानते हैं क्योंकि हमें इन आवाजों को सिस्टम के अनुसार एडजस्ट करना होता था। और सिस्टम आदमियों का बनाया हुआ था कि वो कायम रह सकें।
बदलाव को लेकर…
यह वाकई प्रेरक वक्त है, यह वक्त है कि हम जिम्मेदारी उठाएं और यह जानने की कोशिश करें कि हम असल में हैं क्या। हम वो महिलाएं नहीं जो ऐसी फिल्में देखना चाहती हैं जिनमें राजकुमार आएगा और हमें बचाएगा। हम बदल चुकी हैं, लेकिन इंडस्ट्री ने हमारे साथ बदलने की जहमत नहीं उठाई है। यह वक्त पूरे दम से आवाज उठाने का है और आजादी को दिल से महसूस करने का है ना कि हालातों के हिसाब से उसमें फिट होकर जिंदगी बिताने का। पुरुषों की तरह महिलाएं भी फिल्म स्कूल्स में पढ़ रही हैं, कानून पढ़ रही हैं, मेडिकल में दिलचस्पी ले रही हैं, लेकिन जब वो लीडर बनती हैं तो चुप हो जाती हैं। यह बात मुझे खत्म होते देखना है।
सलमा हायेक
(लेखिका चर्चित अदाकारा हैं ये उनके निजी विचार हैं)