लगभग बारह दौर की वार्ता के बाद भी सरकार ने जहां अपनी जिद नहीं छोड़ी, वहीं आंदोलित किसान भी कड़ाके की सर्दी के बावजूद अपनी मांग को लेकर दिल्ली की सरहदों पर डटे हैं। सरकार के तमाम प्रयास व लुभावने वादे भी किसानों को टस से मस नहीं कर सके। पहले से गणतंत्र दिवस पर परेड निकालने का ऐलान कर चुके किसान संगठन जहां परेड की तैयारी कर रहे हैं, वहीं दिल्ली पुलिस प्रशासन ने आखिरकार दिल्ली के अलग-अलग पांच रूटों पर परेड इजाजत मिली है जो 100 किलोमीटर की परेड होगी इसमें 45 किमी क्षेत्र दिल्ली का होगा । इस इजाजत के बाद जहां दिल्ली व हरियाणा पुलिस के लिए शांति व्यवस्था संभालना एक चुनौती होगी, वहीं किसान नेताओं की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह इस परेड को शांतिपूर्ण संपन्न करके ऐतिहासिक उदाहरण बनाएं। उधर किसान नेताओं ने आंदोलन में शामिल न होने वाले किसानों से भी आह्वान किया है कि गणतंत्र दिवस पर सभी किसान अपने ट्रैक्टरों लेकर चल पड़ें।
लखनऊ में ट्रैक्टर से राजभवन का घेराव करने के दौरान भाकियू की घोषणा और गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने के ऐलान पर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को सतर्क करना और किसानों को मनाने की हिदायत देना। इस बात का संकेत है कि जिस प्रदेश में भाजपा की सरकार है, वहां किसानों के आंदोलन को गंभीरता से लिया जा रहा है। सीएम योगी ने किसान संगठनों को बातचीत के द्वारा समाधान करने का भी भरोसा दिया। अभी दो दिन पहले किसानों ने आंदोलन स्थल से एक ऐसे संदिग्ध युवक को पुलिस के हवाले किया जो हरियाणा से एक पुलिस अधिकारी के कहने पर आंदोलन व परेड में अशांति पैदा करना चाहता था। हालांकि वह युवक किसानों के समक्ष दिए बयान से पलट गया। आशंका है कि ऐसे ही अन्य लोग भी हो सकते हैं जो किसी के कहने पर इस तरह की हरकत कर सकते हैं। गत 22 दिसंबर को सरकार प्रतिनिधियों व किसान संगठनों के बीच हुई अंतिम वार्ता के बाद अब ऐसा नहीं लग रहा है कि दोनों पक्षों में बातचीत का रास्ता बाकी रहा हो, क्योंकि सरकार के प्रतिनिधि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यह कहना कि हमारे पास किसान हित में इन कानूनों को लेकर जो सर्वोत्तम प्रस्ताव था वह किसानों के समक्ष प्रस्तुत कर दिया अब उनके पास यदि हमसे अच्छा प्रस्ताव है तो वह बातचीत को तैयार है लेकिन बातचीत के लिए विज्ञान भवन खाली नहीं है।
इस बात से यही अर्थ निकलता है कि अब सरकार न तो कृषि कानूनों को रद करना चाहती है और न ही अपनी ओर से इस वार्ता के दौर को आगे जारी रखना चाहती है। कृषि मंत्री के दो टूक पर किसान संगठनों का पारा चढऩा लाजिम है। इसलिए वह अब परेड की तैयारी कर रहे हैं। किसान नेता चाहते हैं कि उनकी परेड में कोई टकराव के हालात न बनें। परेड करने के मामले पर सर्वोच्च न्यायालय पहले ही पुलिस पाले में गेंद डाल चुकी है। अब पुलिस पर दबाव होगा कि वह किस रणनीति के तहत दिल्ली में किसानों की परेड को शांतिपूर्ण कराने में अपनी भूमिका निभाए। किसान नेता राकेश टिकैत ने किसानों से आह्वान किया कि वह हर हाल में परेड में शामिल हों। आशंका इस बात की बनी है कि इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए असामाजिक तत्व इसे हिंसक न बना दें। इसलिए दिल्ली पुलिस के साथ किसान नेताओं की पूरी जिम्मेदारी है कि परेड में अप्रिय घटना न घटे इसलिए उन्हें पूर्ण रूप से सतर्क रहना होगा।