नैतिकता अनमोल है एम. रिजवी मैराज

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अक्सर इंसान ऐसे होते हैं जो नैतिकता की बजाय सुंदरता को ही मानते हैं। इसके लिए वह उसकी ओर खींचे चले जाते हैं लेकिन सुंदरता अस्थाई होती है जबकि नैतिकता स्थाई है। इसकी कद्र करनी चाहिए। इस बारे में एक प्रसंग यूं है कि एक सुंदर महिला सफर की गरज से जैसे हवाई जहाज में दाखिल हुई तो उसे पता चला कि उसकी सीट के बगल वाली सीट पर ऐसा व्यक्ति बैठा था जिसके दोनों हाथ नहीं थे। महिला को उसके पास बैठना नागंवार लगा, उसने एयरहोस्टिस को आवाज लगाई और उससे कहा कि वह इस सीट पर नहीं बैठना चाहती उसकी सीट बदल दी जाए। ऐयरहोस्ट्सि उसकी बात सुनकर हैरान थी।

उसने कारण जानना चाहा तो महिला ने बताया कि वह किसी अपाहिज व्यक्ति के बराबर में यात्रा नहीं कर सकती। इसलिए उसकी सीट बदल दी जाए। ऐयरहोस्टिस ने अन्य सीट की तलाश चारों ओर निगाह घुमाकर कहा कि क्षमा करें इसके अलावा कोई सीट नहीं है। महिला की परेशानी ऐयरहोस्ट्सि ने जहाज प्रशासन को बताई तो पायलट रूम केवल एक सीट थी, जिस पर किसी महिला का बैठना वर्जित था। ऐयरहोस्टिस ने महिला को बताया कि केवल पायलट रूम में एक सीट है जिस पर किसी महिला को नहीं बैठाया जा सकता। महिला की परेशानी को देखते हुए प्रशासन ने तय किया कि अपाहिज पुरुष को ही पायलट रूम में बैठा दिया जाए। ऐयरहोस्टिस ने विकलांग पुरुष से अपील की कि सर यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो आप पायलट रूम में बैठ सकते हैं।

अब विकलांक पुरुष जो काफी देर से महिला की बाते सुनकर चुप था बोला कि मैं एक रिटायर्ट फौजी हूं। मैं काफी देर से यही सोच रहा था कि मैं कितना बदनसीब हूं कि जिनकी रक्षा के लिए मैंने युद्ध में अपने दोनों हाथों की कुर्बानी दे दी वह आज मुझको धिक्कार रहे हैं। लेकिन जब मुझे पायलट महोदय ने अपने पास बैठने की अनुमति दी तो मुझे गर्व है कि मैंने ऐसे लोगों की रक्षा के लिए अपने दोनों हाथ शहीद करा दिए जो आज अपने पास बैठाने के लिए मेरी खुसामद कर रहे हैं। अब सुंदर महिला शर्म के मारे पानी-पानी हो रही थी उसकी नजरें शर्म से झुकी हुई थी उसके पास फौजी की बातों का कोई जवाब नहीं था।

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