गीता सार

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मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है। मनुषय को अपने विश्वास में वृद्धि करनी चाहिए। विश्वास के उत्पन्न होने से आत्मनिर्भरता का अनुभाव स्वत: ही हो जाता है।

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