हर किसी को न बताएं अपने दु:ख

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राजा दशरथ बुढ़ापे में प्रवेश कर चुके थे, लेकिन उनकी एक समस्या थी। दशरथ के यहां संतान नहीं थी। किसके पास जाएं और किसे अपना दर्द सुनाएं, इस संबंध में उन्होंने बड़ी रानी कौशल्या से बात की। राजा ने रानी से कहा, कि हम ऐसा या करें कि हमारे यहां पुत्रों का जन्म हो। पुत्र नहीं होगा तो हमारा रघुवंश कैसे चलेगा। पतिपत्नी ने बातचीत कर ये निर्णय लिया कि राजा को अपना दुख इधर-उधर नहीं बताना चाहिए। बल्कि सीधे अपने गुरु वशिष्ठ जी के पास जाना चाहिए। राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ जी के पास पहुंचे। वशिष्ठ जी राजा का चेहरा देखकर समझ गए कि ये अधिक परेशान हैं। उन्होंने दु:ख की वजह पूछी। राजा ने कहा, कि आज मैं एक विशेष उद्देश्य के लिए आया हूं। मेरा मन बड़ा भारी है। पता नहीं मृत्यु कब आ जाए। मैं पुत्र चाहता हूं।

वशिष्ठ जी तपस्वी थे। वे चाहते तो सीधा आशीर्वाद दे सकते थे, लेकिन उन्होंने कहा कि आपकी इच्छा पूरी होगी। प्रयास आपको करना होगा, आप यज्ञ करें। हम श्रेष्ठ पुरोहित बुलाएंगे। मैं आपके लिए सारी व्यवस्था कर दूंगा। वशिष्ठ जी ने ऐसा किया भी। यज्ञ के प्रभाव से दशरथ जी के यहां राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। इस प्रसंग से हमें दो सीख मिलती है। पहली, अपना दु:ख सभी को नहीं बताना चाहिए, योंकि अधिकतर लोग दूसरों के दुखों का मजाक बनाते हैं। दूसरीए गुरु का काम है मार्गदर्शन करना। गुरु को शिष्य को ऐसा रास्ता बताना चाहिए, जिस पर चलकर वह अपने लक्ष्य पर पहुंच सकता है। संतान के संबंध में पति-पत्नी यज्ञ करना चाहिए। यहां यज्ञ का अर्थ है अनुशासित जीवन शैली। पति-पत्नी बच्चे के जन्म से पहले से अनुशासित होंगे, समझदारी से अपना जीवन जिएंगे, तो उनके ये गुण बच्चों में भी उतरेंगे।

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