आज सरकार ने ऐसी घोषणा की है जिसे तालाबंदी का खात्मा भी समझा जा सकता है और जिसे किसी न किसी रुप में तालाबंदी का जारी रहना भी माना जा सकता है। सरकारें और जनता, दोनों दुविधा में पड़े हैं कि अब तालाबंदी हट गई है या जारी है ? ये सवाल ऐसे हैं, जिनका उत्तर हां या ना में ही नहीं दिया जा सकता है। इन सवालों का जवाब खोजने के पहले देश के सभी लोगों को सबसे पहले अपने दिल से कोरोना का डर निकाल देना चाहिए। इसके लिए मैं एक नया नारा दे रहा हूं- ‘‘कोरोना से डरोना’’। यदि दुनिया के अन्य देशों से हम भारत की तुलना करें तो मालूम पड़ेगा कि हमारे नेताओं और उनके नौकरशाहों ने जनता को जरुरत से ज्यादा डरा दिया है।
जो देश भारत के मुकाबले अपनी स्वास्थ्य सेवाओं पर दुगुना, चार गुना, छह गुना और आठ गुना पैसा खर्च करते हैं और उनकी जनसंख्याएं भारत के एक या दो प्रांतों के बराबर भी नहीं हैं, वहां जरा मालूम कीजिए कि कोरोना से हताहतों की संख्या कितनी है ? यदि यह गणित आप ठीक से समझ लेंगे तो आपका दुख और डर काफी कम हो जाएगा। अपनी जीवन-पद्धति, अपने खान-पान, अपनी प्रतिरोध शक्ति पर गर्व होने लगेगा। इसी का नतीजा है कि कोरोना से संक्रमित लोग जितनी बड़ी संख्या में घरेलू एकांतवास से भारत में ठीक हो रहे हैं, उतने दुनिया के किसी देश में नहीं हो रहे हैं। अभी तक 1 लाख 65 हजार लोग संक्रमित हुए हैं। इनमें से 71 हजार लोग ठीक हो चुके हैं। 90 हजार लोगों का इलाज जारी है। इनमें से चार सौ गंभीर हैं। इनमें से सिर्फ 9 मरीज सघन चिकित्सा में है। सिर्फ चार को आक्सीजन दी जा रही है और सिर्फ तीन या चार वेंटिलेटर पर हैं।
यह ठीक है कि मरनेवालों की संख्या 5000 के आस-पास पहुंच गई है लेकिन भारत में 20-25 हजार लोगों की मौत अन्य कई रोगों से रोज़ होती हैं। इसीलिए अब कोरोना से ज्यादा डर तालाबंदी पैदा कर रही है। प्रवासी मजदूरों का हाल देखकर रुह कांपने लगती है। दुकानों, दफ्तरों और कारखानों को जहां भी खोला गया है, वहां न तो उनको चलानेवाले लोग आ रहे हैं और न ही खरीददार लोग। बड़े पैमाने पर बेकारी, भुखमरी और लूट-पाट का डर फैल रहा है। तालाबंदी के कारण दर्जनों मौतों का सिलसिला भी शुरु हो गया है। ऐसी स्थिति में सरकारों को चाहिए कि वे तालाबंदी को विदा करें लेकिन देश का हर व्यक्ति खुद पर तालाबंदी जमकर लागू करे। शारीरिक दूरी, मुखपट्टी, हाथ धोना, काढ़े का नित्य सेवन और भेषज-होम सब लोग करें तो कोरोना पर विजय पाई जा सकती है।
डा.वेद प्रकाश वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)