दुनिया के अनेक देश कोरोना वायरस को हल्के में ले रहे हैं। दुनिया के जिन देशों में सरकारें गंभीर हैं और कोरोना के खतरे को गंभीरता से लिया है वहां भी आम लोगों में इसे लेकर बहुत गंभीरता नहीं है। यूरोपीय संघ के देशों और अमेरिका तक में लोगों ने वायरस को हल्के में लिया और इसकी नतीजा है कि उन देशों में महामारी का तांडव एक साल बाद तक चल रहा है। दुनिया के कई देशों में सरकारों ने लॉकडाउन लगाया या दूसरी पाबंदियां लगाईं तो लोगों ने उसके विरोध में आंदोलन किए, जिससे वायरस और फैला। यूरोप में जहां लोगों को छूट मिली वे तुरंत छुट्टियां मनाने निकल गए। छूट मिलने के अगले ही दिन कई देशों में समुद्र तट पर लोगों का हुजूम पहुंच गया। सरकारें कहती रहीं कि अभी वायरस खत्म नहीं हुआ है और इसकी दूसरी, तीसरी लहर भी आ सकती है लेकिन लोगों ने उसे अनसुना किया और वायरस के प्रोटोकॉल का पालन करने की बजाय समझने लगे कि दुनिया पहले जैसी हो गई।
यूरोप के देशों में सरकारों से ज्यादा लोगों की वजह से संकट भयावह हुआ तो लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों में सरकारें भी लापरवाह रहीं और लोग भी। दोनों मानते रहे कि उनके यहां कोरोना का असर नहीं होना है। चूंकि लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों में कोरोना वायरस के ज्यादा केसेज नहीं मिले इसलिए उनके मन में इसे हल्के में लेने की धारणा बनी। दोनों महादेशों में दो-चार देशों को छोड़ कर बाकी जगह कोरोना का कोई शोर नहीं मचा। वैसे ही जैसे कुछ साल पहले अफ्रीकी देशों में इबोला फैला तो यूरोप और एशियाई देशों में उसकी कोई हलचल नहीं हुई क्योंकि इबोला का वायरस इन महादेशों में नहीं पहुंचा। उसी तरह लैटिन अमेरिकी और अफ्रीका देश मानते रहे कि कोरोना का वायरस एशिया और यूरोप में तक ही सीमित है और अगर उनके यहां पहुंचा भी है तो उसका असर कम है।
जहां तक एशिया महादेश का मामला है तो यहां अलग किस्म की लापरवाही दिखी। एशिया के अमीर देशों- चीन, जापान, दक्षिण कोरिया आदि ने अपने यहां की बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं या सख्त प्रशासनिक फैसलों या तकनीक का इस्तेमाल करके वायरस को फैलने से रोका। जापान तो अब यहां तक फैसला करने वाला है कि हर देश के नागरिक का अपने यहां प्रवेश बंद कर सकता है। बहरहाल, इन देशों में कोरोना नहीं फैला। एशिया में पाकिस्तान जैसे देश भी हैं, जहां न तकनीक है, न स्वास्थ्य सेवाएं और न सख्त प्रशासनिक फैसला हुआ फिर भी कोरोना नहीं फैला। मध्य-पूर्व एशिया या दक्षिण एशिया में भी एक-दो देशों को छोड़ कर बाकी हर जगह कोरोना का वायरस काबू में रहा। भारत में वायरस जिस अंदाज से पसर रहा था उसे देख कर लगता था कि अक्टूबर में ही भारत दुनिया का नंबर एक संक्रमित देश बन जाएगा लेकिन अचानक और बेहद रहस्यमय तरीके से भारत में वायरस का प्रसार रुक गया और एक्टिव केसेज के मामले में भारत अब दुनिया का दसवें नंबर का देश बन गया है, सर्बिया से भी नीचे।
बहरहाल, पहले कोरोना वायरस को लेकर चाहे जैसी स्थिति रही हो, वह फैला हो या नहीं फैला हो और लोगों की लापरवाहियों के बावजूद थम गया हो लेकिन अब इसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि अब इसका एक नया स्ट्रेन आया है, जिसमें 70 फीसदी ज्यादा तेजी से लोगों को संक्रमित करने की क्षमता है और वह कम उम्र के उन बच्चों को भी संक्रमित करने में सक्षम है, जिनको वायरस का पिछला स्ट्रेन संक्रमित नहीं कर पाया था। यह वायरस रूप बदल कर आया है और दुनिया के देश अभी इस बहस में उलझे हैं कि यह कहां से आया और इसका पहला स्ट्रेन कहां से मिला, उस बीच यह करीब एक दर्जन देशों में पहुंच गया है।
इसका पहला स्ट्रेन और सबसे ज्यादा केसेज ब्रिटेन में मिले हैं। पर ब्रिटेन के कहना है कि यह पहली बार दक्षिण अफ्रीका में मिला और वहां से ब्रिटेन पहुंचा है। एक नया स्ट्रेन अफ्रीकी देश नाइजीरिया में भी मिला है, जिसके ज्यादा खतरनाक होने की बात कहा जा रही है पर नाइजीरिया ने कहा कि उसके यहां मिला स्ट्रेन ब्रिटेन में मिले स्ट्रेन से ज्यादा खतरनाक नहीं है। नाइजीरिया वाले में स्ट्रेन में 501 म्यूटेशन की बात की जा रही है। सोचें, नाइजीरिया अफ्रीका महादेश का सबसे बड़ा देश है, जिसकी आबादी 20 करोड़ के करीब है। अगर वहां यह वायरस फैलता है तो महामारी विकराल हो जाएगी।
वैसे भी कोरोना वायरस के फुटप्रिंट को ध्यान से देखें तो यह सबसे पहले अमीर देशों में फैला, जहां उम्रदराज आबादी ज्यादा है और जहां स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हैं। उसके बाद विकासशील देशों में फैला और इस लिहाज से इसे सबसे आखिर में गरीब मुल्कों में पहुंचना था। सो, अगर अब अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में वायरस फैल रहा है तो या उसका नया स्ट्रेन मिल रहा है तो यह सिर्फ उन गरीब महादेशों के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। कोई भी देश अपने यहां घेरा बना कर अपने लोगों को बचा कर इस वायरस से बचा नहीं रह सकता है।
ब्रिटेन से मिले वायरस के स्ट्रेन से संक्रमित लोग जापान में भी मिले हैं और स्पेन व फ्रांस में भी नए स्ट्रेन से संक्रमित मरीज मिले हैं। खबर है कि कनाडा और स्वीडेन में भी इसके केसेज मिले हैं। ऐसे में अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रह सकता है, जहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की लापरवाही की वजह से ब्रिटेन से उड़ानों का संचालन नहीं रोका गया। दुनिया के 50 से ज्यादा देशों ने ब्रिटेन से उड़ानें रोक दीं पर अमेरिका और ब्रिटेन के बीच विमानों का परिचालन जारी रहा। यह भी ध्यान रखने की बात है कि ब्रिटेन, अमेरिका सहित अनेक देशों में टीका लगना शुरू हो गया है फिर भी केसेज बढ़ रहे हैं। रूस में हर दिन रिकार्ड संख्या में केसेज आ रहे हैं। सो, टीका लगना शुरू हो जाना भी अपने आप में वायरस से बचाव का उपाय नहीं है क्योंकि टीके के दो डोज लगने हैं और इनके बीच दो से चार हफ्ते का अंतर रहना है। इस बीच सावधानी नहीं बरती गई तो टीके लगते रहेंगे और लोग संक्रमित होते रहेंगे। सो, दुनिया को बहुत सावधान हो जाने की जरूरत है। इस वायरस को गंभीरता से लेने की जरूरत है और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की जरूरत है। वैसे भी विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लुएचओ ने कहा है कि यह आखिरी महामारी नहीं है।
शशांक राय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)