लाल अक्षरों में लिखी गाली और नारा बतला दे रहे थे कि आबोहवा में खौल रही है नफरत! इस्लाम की के ठीक साथ दिवाल पर लिखा था ‘नाथूराम गोड़से अमर रहे’। मौजपुर के मुख्य चौक सेलगने लगा था मानो जंग के मैदान से गुजर रहे हो। मारकाट-हिंसा के बाद जंग मैदान में चार दिन बाद भी जलते टायरों के धुएं,जली दुकानों औरजले सामान-वाहन को लिए हवा और ईंट-पत्थरों व कांच की टूटी बोतलों से अटी पड़ी सड़कें-गलियां सब बतला दे रहे थे कि आप उस मैदान में है जहांखत्म है उम्मीदे और खौफ व विभाजन है गहरा! जो जीता है वह नफरत-गुस्से में खदबदाया हुआ है और जो हारा है, पीटा है वह और लड़ाई की, बदला लेने के इरादे में है। दो दिन लगातार भयानक हिंसा ने उत्तर-पूर्व दिल्ली ने पूरी दिल्ली को, पूरे देश को बतला दिया है कि रिश्तों में सब कुछ चकनाचूर है। न केवल काम धंधे, बल्कि भावनाएं और संवेदनाएं भी। चार दिन जो हुआ वह दंगा नहीं बल्कि ऐसी हिंसा थी जिसकी प्रकृति में आक्रामकता और तरीकों में वह खूंखारपना था कि गोली मारो और फेंको लाश नाले में। एक दिन मुसलमानों का दूसरा दिन हिंदुओं का। एक दिन जयश्री राम और दूसरे दिन..। सचमुच जाफराबाद और मौजपुर में सड़कों की हालत, पसरा सन्नाटा, बंद पड़े घर, टूटी खिड़कियां और दरवाजे, बंद दुकानें और दीवारों पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखे नारे जैसे- नो एनआरसी, नो सीएए.. बता रहे हैं कि आप दिल्ली में नहीं, श्रीनगर में हैं। पर श्रीनगर में तो एक तरफ सुरक्षा बल और दूसरी और मुसलमान होते है।
जबकि दिल्ली का यह इलाका तो चार दिन बिना पुलिस के था। तभी आमने-सामने जुनूनियों की बर्बरता, हिंसा का बेरोकटोक प्रदर्शन था। मैं जब मौजपुर चौक से आगे बढ़ी तब इलाके में भारी संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात थी। पर सड़कों पर जिस तरह गश्त हो रही है, वह और भयभीत कर देने वाली है। लगता है कि आपाधापी वाली दिल्ली से ये इलाका पूरी तरह कटा हुआ देश का कोई और ही हिस्सा है। खौफ, नफरत वसांप्रदायिकता का मानो कड़ाहहो। हम में से बहुतों ने जाफराबाद, मौजपुर, चांदबाग, भजनपुरा, ब्रजपुरी और मुस्तफाबाद जैसे इलाकों का नाम पहले कभी नहीं सुना होगा, लेकिन दिल्ली के ये इलाके अब हिंदू-मसलमान दंगों, हिंसा के प्रतिनिधि केंद्र में तब्दील हैं औरलोग धर्म अनुसारअपने बाड़ों, इलाकों में बुरी तरह बाड़ाबंदहैं। इलाका कैसे-कब हिंसा का खौलता कड़ाव बना? हॉरिजन इंस्टीट्यूट के मालिक नवनीत गुप्ता ने बताया- ये सब 24 तारीख की सुबह अचानक से ही शुरू हुआ। एक भीड़ उस तरफ से आई और पथराव करना शुरू कर दिया। गुप्ता का घर जिसमें यह इंस्टीट्यूट भी चलता है, भजनपुरा पेट्रोल पंप से चंद मीटर की दूरी पर ही है। दंगाइयों ने इस पेट्रोल पंप को आग लगा कर राख कर दिया और अब जो वहां अवशेष नजर आ रहे हैं, वे बता रहे हैं कि किस तरह से हिंदुओं को निशाना बनाया गया। उस वक्त को याद करते हुए पच्चीस साल के शिव कुमार ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा- उनका मकसद था मंदिर को जलाना। पेट्रोल पंप के ठीक पीछे यह मंदिर है।
हालांकि इसेकुछ नहीं हुआ, यह पूरी तरह से सुरक्षित रहा। भजनपुरा की महिलाओं और पुरुषों में भारी गुस्सा है। नौजवान जो करीब-करीब बीस साल के आसपास ही होंगे और जो साफतौर पर मीडिया के सामने आए थे, ने जाविद हबीब सैलून की ओर इशारा करते हुए गुस्से में पूछा- सड़क के उस पार मुसलमानों की दुकानें यों नहीं जली? दरअसल, उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाके हिंदू और मुसलमान की मिलीजुली बस्तियों वाले हैं। इन बस्तियों में दोनों समुदायों के लोग रहते हैं। सडक की एक तरफ हिंदू तो दूसरी ओर मुसलमान। कई बस्तियां ऐसी हैं जो या तो हिंदू बहुल हैं क्या फिर मुसलिम बहुल। इन कालोनियों में छोटे-छोटे और एक दूसरे से सटे घर बने हुए हैं, संकरी गलियां हैं जिनमें घिचपिच जैसी हालत है, छतें एक दूसरे से सटी हैं। हर तीसरी गली के बाद या तो हिंदुओं की बस्ती है, क्या फिर मुसलमानों की और इन बस्तियों का विभाजन नालों से होता है, यानी हर तीसरी गली के बाद नाला पड़ता है। भजनपुरा हिंदू बहुल इलाका है। इसकी मुख्य सड़क पर चांदबाग के कुछ मुसलमानों की दुकानें थीं। इस मुख्य सड़क के दूसरी ओर, चांदबाग है जो मुसलिम बहुल बस्ती है और इस सड़क पर भजनपुरा के कुछ हिंदुओं की दुकानें थीं। 24 तारीख को सुबह जब हिंसा भड़की तो इन दोनों तरफ की दुकानों को निशाना बनाया गया। पुलिस की मामूली कार्रवाई के बीच दंगाइयों ने सड़क के दोनों तरफ की इन दुकानों को लूटा, तोडफ़ोड़ की और आग के हवाले कर दिया। इसके बाद पेट्रोल बम फेंके गए और सड़क पर खड़े वाहनों को आग के हवाले करना शुरू हुआ।
इसी में शाहदरा के पुलिस उपायुक्त अमित शर्मा, जो दंगाइयों के हमले में बुरी तरह जख्मी हो गए, की निजी कार भी दंगाइयों ने फूंक डाली। इनके साथ जो पुलिस वाले और सुरक्षा कर्मी गए थे, वे दंगाइयों से निपटने में नाकाम रहे, क्योंकि दंगाइयों की तादाद काफी ज्यादा थी। तीन दिन बाद जब इलाके में भारी पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात हुआ और दंगाइयों पर काबू पा लिया गया, तब डरे-सहमे लोग घरों से बाहर निकले और अपनी तबाह संपत्ति का जायजा लिया। किसी ने भीड़ में कहा- इल्जाम किसी को नहीं दे सकते, क्योंकि फिर यहीं रहना है। चेरियन जॉर्ज ने अपनी किताब ‘हेट स्पिन’ में लिखा है कि जब धार्मिक रूप से प्रेरित निचले तबके की भीड़ हिंसा पर उतारू होती है तो वह अपनी स्वंयस्फूर्तता में आगा-पीछा कुछ कुछ नहीं देख पाती। स्वार्थी तत्वों के सुविचारित मेकेनाइजेशन से भी परे फेल जाती है। संक्षिप्त में घायल-आहत गुस्सा, बदले की भावना राजनीतिक रणनीति में बदली होती है। भाजपा के कपिल मिश्रा का 23 फरवरी काबयान भड़काऊथा,वह दूसरे पक्ष को ओफेंड करने वाला था। चिंगारी भड़की और हिंसा, प्रतिहिंसा,एक-दूसरे को सबक सिखाने, भिडऩे का सिलसिला चल पड़ा। जो हुआ, वह पहले से पैंठे गुस्से, नफरत का ज्वालामुखी विस्फोट था जिससे बचाव के लिए न पुलिस थी, न सरकार थी। कपिल मिश्रा के भाषण से बात बिगड़ी और सोमवार को मोहम्मद ताहिर हुसैन एंड पार्टी के जरिए कौम की ताकत का प्रदर्शन हुआ तो अगले दिन हिंदुओं ने गोलबंद हो कर, पुलिस की अनदेखी के बीच अपना उन्माद निकाला।
इस मोटी रूपरेखा के बीच घटनाक्रम को सिलसिलेवार जान सकना, बूझना संभव नहीं है। दोनों तरफ का विवरण एक-दूसरे से एकदम अलग व परस्पर विपरित है। मुसलिम बहुल चांदबाग में हिंदुओं की छोटी-सी बस्ती मूंगा नगर में निवासियों ने आम आदमी पार्टी के पार्षद मोहम्मद ताहिर हुसैन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। लोगों ने दावा किया कि ताहिर ने ही अपने समुदाय के लोगों को अपनी इमारत में घुसने और उसका इस्तेमाल करने दिया। ताहिर का घर इलाके में सबसे ऊंचा है। आरोप है कि इस इमारत की छत से दंगाई पेट्रोल बम और पत्थर फेंक रहे थे। इसके पड़ोस वाले घर में ओपी सिंह सेंगर ने बताया कि उनकी बेटी की शादी थी, लेकिन देखते ही देखते सब कुछ भयानक खौफ में बदल गया। वे बताते हैं- हमने बहुत ही डरडर के शादी और विदाई की, पता नहीं कब कौन कहां से मारने आ जाए। मूंगा नगर में कई बाशिदें पथराव और गोलियों से घायल हुए हैं। दूसरी तरफ से मंदिर को निशाना बनाया गया। ताहिर के घर के ठीक सामने शिव मंदिर है। यहां के बाशिंदे राकेश शर्मा बताते हैं कि किस तरह से हमले की शुरुआत हुई और क्या-क्या होता गया। उन्होंने बताया- दंगाइयों ने पहले फर्नीचर की इस दुकान को जलाया और फिर मंदिर पर पेट्रोल बम फेंके। मैंने मूंगा नगर के इस शिव मंदिर की सीढिय़ों पर जाकर 24 और 25 तारीख के दंगे को समझने की कोशिश की।
पर मैं इसी सवाल में उलझ गई कि हिंसा कैसे और कब शुरू हुई होगी? यह सवाल सचमुच ऐसा है जो किसी को भी उलझा कर रख देगा, खासतौर से जब आप दंगाग्रस्त इलाके में जाकर हालात देखेंगे। देश की राजधानी के उत्तर-पूर्व इलाके में हुई सांप्रदायिक हिंसा नफरत का वह कड़ाव है जिसमें दोनों ही समुदायों के लोग अपनी-अपनी सच्चाई बता रहे हैं, हर किसी की अपनी कहानी है, हर व्यक्ति, हर महिला अपनी पीड़ा बता रही है, और इसमें कहीं भी न कोई गलत है न ही कोई सही। मंदिरों को निशाना बनाया गया, मस्जिदें जलाई गईं, हिंदू बर्बरता से मारे गए तो मुसलमान भी उतनी ही बर्बरता से। इसलिए हिंसा बाद जो बचा है, जो है वह विध्वंस बाद का वह जमा लावा है जिसमें अमन, शांति जैसे शब्द लंबे समय तक बेमतलबदबे रहेंगे तो खौफ-नफरत में लोग राजधानी दिल्ली को हिंदू और मुसलमान के बाड़ो में अपने को और बाड़ाबंद बनाएगे। यों भी पुलिस ने, हिंदूओं और मुसलमानों सभी ने चार दिनों में देखा है, अनुभव किया है कि बस्तियां जो सड़क-गलियां लिए हुए है वे रहनुमाओं के घर नहीं बल्कि मानों लडाई की खंदके हो। कभी आप भी उत्तर-पूर्व दिल्ली जा तर इन खंदतों, बस्तियों से बूझिए ति सभ्यता के संघर्ष की हटिंगटन थ्योरी के लिए कैसी-कैसी खंदकें-छावनियां बन रही है?
श्रुति व्यास
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)