नशामुक्ति को खुद ही होना होगा संकल्पित

0
939

एक व्यति शराब के नशे में आचार्य विनोबा भावे से मिलने पहुंचा। पहले तो लोगों ने उसे रोक लिया, लेकिन जब उसने हल्ला किया तो ये बात विनोबा भावे तक पहुंची। विनोबा जी ने कहा, बुलाओ उस युवक को, या बात है? शराबी व्यति विनोबा जी के सामने पहुंचा तो उसने कहा, मैं शराब की लत छोडऩा चाहता हूं। मैंने आपके बारे में सुना है कि आपके पास एक से एक नुस्खे हैं। बहुत से लोग आपकी बात मानकर नशा छोड़ चुके हैं। आप मेरा भी नशा छुड़वा दीजिए। विनोबा जी ने कहा, आज तो नहीं, तुम कल सीधे यहां आ जाना और मुझे आवाज देना। अगले दिन वह युवक आचार्य विनोबा के यहां पहुंचा। उस समय वह होश में था। उसने जोर-जोर से आचार्य जी को आवाजें लगाईं। तीन- चार बार पुकारने के बाद अंदर से विनोबा जी की आवाज आई कि मैं बाहर नहीं आ सकता, क्योंकि मुझे एक खंभे ने पकड़ रखा है। तुम आकर मुझे छुड़ाओ। युवक जब अंदर गया तो उसने देखा कि विनोबा जी एक खंभे को पकड़कर खड़े हैं। युवक बोला, आप कैसी बात कर रहे हैं? आप कह रहे हैं कि खंभे ने आपको पकड़ रखा है, लेकिन मेरे हिसाब से तो आपने खंभे को पकड़ रखा है। आप इसे छोड़ दीजिए। विनोबा भावे ने खंभे को छोड़ दिया और बोले,बस यही बात तो मैं तुहें समझाना चाहता हूं। नशे ने तुहें नहीं पकड़ा है, तुमने नशे की लत पाल रखी है, नशा तुहारी लत है। विनोबा जी ने हमें ये सीख दी है कि बहुत सारी गलत बातें हम खुद स्वीकार कर लेते हैं और हम खुद कहते हैं कि ये बुरी लत हमसे नहीं छूट रही है। नशे जैसे बुरी लत छोडऩे में व्यतिबहाने बाजी करता है। जिस दिन व्यति समझ जाएगा कि नशे को मैंने ही पकड़ रखा है और मैं ही इसे छोड़ सकता हूं, उस दिन ये लत छूट जाएगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here