कोरोना – युद्ध में एक दिन जीत भारत की ही होगी, ये तय है

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कोरोना महामारी की रतार जितनी तेज होती जा रही है, देश में उतना ही ज्यादा हड़कंप मचता जा रहा है। टीवी पर श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों के दृश्य देखकर लोगों का दिल बैठा जा रहा है। लेकिन देश के कोने-कोने से ऐसे सैकड़ों-हजारों लोग भी निकल पड़े हैं, जो अपना तन, मन, धन लगाकर मरीज़ों की सेवा कर रहे हैं। उनका जिक्र कुछ अखबारों में जरुर हो रहा है लेकिन हमारे टीवी चैनलों को या हुआ है ? वे उन दृश्यों को क्यों नहीं दिखाते? कई लोग आसीजन सिलेंडर मुत में भर रहे हैं, कई मुत वेसीन अपनी तरफ से लगवा रहे हैं, कुछ लोग जरुरतमंदों को रेमडेसिविर का इंजेशन सही कीमत पर उपलब्ध करवा रहे हैं।

कुछ लोग अपनी जान हथेली पर रखकर मरीजों के लिए एंबूलेंस चला रहे हैं। उन डॉक्टरों और नर्सों के या कहने, जो मौत के खतरे के बावजूद मरीजों की सेवा कर रहे हैं। अब टीके की कीमत भी घटी है और सरकार मुत में भी टीके उपलब्ध करवा रही है लेकिन असली सवाल यह है कि नौजवानों को लगनेवाले करोड़ों टीके कब तक उपलब्ध होंगे ? ऑक्सीजन एसप्रेस और विदेशी ऑक्सीजन यंत्रों के आयात के बावजूद दर्जनों लोग ऑक्सीजन के अभाव में दम यों तोड़ रहे हैं? चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों के चुनाव-परिणाम के बाद की रैलियों पर प्रतिबंध लगाकर ठीक किया लेकिन बंगाल, तमिलनाडु और केरल के आंकड़े प्रतिदिन छलांग लगा रहे हैं। कुंभ में स्नान करनेवाले 35 लाख लोग अब इस महामारी को गांवों तक ले गए हैं। वहां न पर्याप्त अस्पताल हैं, न ऑक्सीजन है, न इंजेशन हैं।

ऐसा लगता है कि जनसंख्या के हिसाब से मरीजों का अनुपात भारत में जो अभी एक-सवा प्रतिशत है, वह शीघ्र ही दुगुना-तिगुना हो जाएगा। ऐसी हालत में सरकार या कर पाएगी? ऐसी बुरी हालत में भी नेता लोग राजनीति करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि मोदी ने भारत को भिखारी बना दिया है। यह मानवीय मदद किसी व्यक्ति-विशेष की वजह से नहीं, भारत की अपनी वजह से आ रही है। उन देशों के लोगों के सीने में वही दिल धड़कता है, जो हमारे सीने में धड़क रहा है। भारतीय लोगों में अद्भुत सेवा-भाव है। उन्होंने दर्जनों देशों को मुत वेसीन बांटी है। अब जो मुसीबतों का पहाड़ उस पर टूट पड़ा है, अपनी और सरकार की लापरवाही के कारण, वह उस पर भी विजय पाकर रहेगा। भारत हारेगा नहीं, जीतेगा।

डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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