आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से परेशान है। कुछ लोग इसे ‘वूहान वायरस’ या ‘चाइनीज वायरस’ भी कह रहे हैं। इसकी वजह से मानों दुनिया ठहर सी गई है। मौतें लगातार बढ़ रही हैं। इन्फेशन भी तेजी से बढ़ रहा है। दवा/वैसीन की उम्मीद सिर्फ उम्मीद ही है। कोरोना को मानव जाति से अलग-थलग करने की तमाम कोशिशें कमजोर पड़ती दिख रही हैं। ऐसा लग रहा है कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीना होगा। अगर हमने (खासकर भारत ने) कोरोना के चकर में लॉकडाउन को और अधिक बढ़ाया तो कई भयानक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। बेरोजगारी और भूखमरी विकराल रूप में सामने आ सकती है। संभावना है कि इससे होने वाली मौतें कोरोना से कई गुना ज्यादा हो सकती हैं। कोरोना की वजह से दुनिया की ज्यादातर देशों की इकॉनमी बुरी स्थिति में है। विकासशील और पिछड़े देशों के साथ-साथ विकसित देशों में भी बेरोजगारी बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है। दुनिया के ज्यादातर देशों की स्थिति इतनी बुरी यों हुई, इसके कई कारण हैं। कुछ लोग, यहां तक कुछ देश भी कोरोना वायरस को प्राकृतिक न मानकर मानव निर्मित मान रहे हैं।
चीन पर इसका सीधा आरोप भी लगाया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डल्यूएचओ)की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन समय-समय पर इन आरोपों को लगातार खारिज करते रहे हैं। हम इन विवादों में नहीं पड़ते हैं कि यह वायरस मानव निर्मित है या फिर प्राकृतिक, लेकिन चीन के झूठे आंकड़ों के चकर में कई देशों की इकॉनमी लगभग बैठ गई है। यह सत्य है। भीषण आर्थिक संकट से दुनिया के कई देश गुजर रहे हैं। भारत सहित दुनिया के कई देशों में करोड़ों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इन स्थितियों के लिए चीन कहीं न कहीं जिम्मेदार जरूर है। कैसे, आइए उसकी विवेचना करते हैं। इस वायरस का जन्म या कहें मानव में यह वायरस चीन के वूहान शहर से आया। वूहान न सिर्फ चीन बल्कि पूरी दुनिया का एक बड़ा बिजनस सेंटर है। वूहान चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी है। वहां की आबादी लगभग 1 करोड़ 10 लाख की है। वहीं पूरे हुबेई प्रांत की आबादी करीब 6 करोड़ है। मेडिकल जर्नल ‘द लासेंट’ की मानें तो कोरोना के पहले मरीज का पता 1 दिसंबर 2019 को चला।
हालांकि, उस वक्त तक इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। 26 दिसंबर को हुबेई प्रांत के एक बड़े अस्पताल में एक बुजुर्ग कपल में ऐसे कुछ लक्षण दिखे, जिसे पता चला कि यह वायरस अब तक दुनिया में पाए जाने वाले अन्य वायरसों से अलग है। इसके ठीक 3 दिन बाद 29 दिसंबर को हुबेई प्रांत के अधिकारियों ने जानकारी दी कि यह एक नया वायरस है। चीन की बात हम मान लें तो उसने 31 दिसंबर को इस वायरस की जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी। चीन का कहना है कि हमने समय पर पूरी दुनिया को इसके बारे में जानकारी दे दी। चीन में कोरोना से पहली मौत 11 जनवरी को हुई। चीन का दावा है कि उसे 20 जनवरी को पता चला कि यह संक्रमण मानव से मानव में फैलता है। चीन का कहना है कि इसके पहले उसे इसके बारे में जानकारी नहीं थी। चीन के इस दावे पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं। खैर छोडि़ए, इसके ठीक 3 दिन बाद वूहान के साथ-साथ हुबेई प्रांत के कई शहरों में चीन ने संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की। इस बीच चीन वूहान सहित चीन के अन्य शहरों में कोरोना का संक्रमण कम होता गया। मौतें भी तुलनात्मक रूप से काफी कम हुईं।
इस दौरान चीन ने कुछ अच्छे काम भी किए। कुछ दिनों में कोरोना के लिए एक बड़ा अस्पताल भी बना लिया। पूरी दुनिया में इसकी प्रशंसा भी हुई। चीन ने यह दावा करना शुरू कर दिया कि हमने लॉकडाउन से कोरोना पर काबू पा लिया है। चीन के इसी झांसे में भारत सहित दुनिया के कई देश आ गए। एक तरफ चीन में संक्रमण और मौतें काफी कम हो रही थीं, वहीं विकसित यूरोपीय देशों और अमेरिका में मौतें लगातार बढ़ रही थीं। भारत सहित दुनिया के कई देशों के एक खास विचारधारा के ‘अजेंडाबाजों’ ने चीन की राजनीतिक और आर्थिक ढांचे का ढोल पीटना शुरू कर दिया। यहां तक कहने लगे कि इस तरह की बीमारी से लडऩे में या फिर इस तरह की प्राकृतिक आपदा से लडऩे में चीनी मॉडल ही एक मात्र उपाय है। कई विद्वानों के साथ-साथ कई देश भी इस झांसे में आ गए। इन देशों ने भी चीन की तरह लॉकडाउन लगा दिया। भारत भी उसी रास्ते पर चला। लंबे संपूर्ण लॉकडाउन के रास्ते पर। भारत ने पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी। अब तक लॉकडाउन के चार चरण बीत चुके हैं। उसके गंभीर परिणाम आने भी शुरू हो गए हैं।
बेरोजगारी अपने चरम पर है। करोड़ों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। ऐसा लग रहा है कि करोड़ों की अभी और जाएंगी। प्रवासी मजदूरों का बुरा हाल है। चीन के नकल के चकर में हमने कई बुनियादी बातों का विचार ही नहीं किया। उसका दुस्परिणाम रहा कि देखते ही देखते देश में हाहाकार मच गया। सच्चाई तो यह है कि कोरोना से ज्यादा देश में अन्य कारणों से लोग मरे। देश में कई हादसे हुए। कई ह्रदयविदारक और मार्मिक कहानियां हम सबके सामने आईं। लेकिन, इस लंम्बे लॉकडाउन के बावजूद हमारे यहां संक्रमण नहीं रुक पाया। इसका कारण या है? या चीनी मॉडल के सामने हमारा मॉडल बेकार है? नहीं, अगर हम एसपर्ट की मानें तो चीन के आंकड़े भरोसे के लायक नहीं हैं।
चीन ने कहीं न कहीं दुनिया को धोखा दिया है। हमारी भी कमी है, हम उसके धोखे में आ गए। देश के जाने-माने हेल्थ इकनॉमिस्ट डॉक्टर अनूप कर्ण का कहना है कि जहां वायरस का जन्म हुआ है, वहां संक्रमण का रुकना पच नहीं रहा है। मौतें अगर कम होती हैं तो उसे स्वीकार किया जा सकता है, योंकि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की मदद से उन्हें कम किया जा सकता है, लेकिन संक्रमण रोकना संभव ही नहीं है। वह भी वहां जहां वायरस ने जन्म लिया है। कहीं न कहीं आंकड़ों के मामले में चीन झूठ बोल रहा है। कुछ ऐसी ही राय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व चिकित्सक डॉक्टर प्रमोद कुमार सिंघल की भी है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि हमने चीनी झांसे में आकर हमने अपनी इकॉनमी को तो बैठा ही दिया, बीमारी के संक्रमण को भी नहीं रोक पाएं।
शिवेंद्र कुमार सुमन
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)