राष्ट्रनिष्ठ पत्रकारिता का वाहक

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उस समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य की कठोर बेडिय़ों के बाहुपाश में था। अभिव्यति की स्वतंत्रता पर कानूनी पहरा था। लेकिन महाभारतकालीन मेरठ की भूमि से एक उद्घोषणा हुई कि आजादी की जंग केवल बंदूक से ही नहीं, कलम से भी लड़ी जाती है। क्रांति की स्याही, कर्मशीलता की लेखनी और प्रखर भावनाओं के कागज पर एक ओजस्वी इतिहास का अंकन आरंभ हुआ, इतिहास ऐसा कि अंग्रेजी हुकुमत भी घबरा गई। लेकिन भारत माता की पीड़ा का अभिव्यत करने वाला कलम का यह सिपाही किसी से भयभीत होने वाला नहीं था, उसकी लेखनी से निकलने वाले अंगारे स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी का विराट ज्वाला का रूप दे रहे थे। बात वर्ष 1944, मेरठ की है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को इस धरती ने प्रत्यक्ष देखा था, अब उसी लड़ाई को आने चलाने के लिए राष्ट्रवादी विचारक और समाज सुधारक विश्ंबर सहाय विनोद ने ‘प्रभात’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। कुछ ही दिनों में ही यह पत्र आजादी के दिवानों के लिए गीता बन गया।

अंग्रेजी साम्राज्य की बर्बरता और कठोर दंडात्मक कार्रवाइयों के मध्य भी प्रभात क्रांतिकारियों का न केवल प्रेरणाबल रहा बल्कि आजादी की लड़ाई को वैचारिक ऊर्जा प्रदान करता रहा। ब्रिटिश साम्राज्य में अनेक बार ऐसे अवसर आए जब ‘प्रभात’ की प्रतिभूति जत कर ली गई, लेकिन देशभति की भावनाओं के प्रवाह को कोई भी तटबंध नहीं रोक सकता। वह निरंतर आजादी की आवाज को बुलंद करता रहा और भारत माता के लिए अपने शीश देने वाले बलिदानियों की गौरव गाथा प्रकाशित करता रहा। आजादी से पहले ‘प्रभात’ भारत भर के उन युवकों का आदर्श पत्र माना जाता था जो क्रांति के माध्यम से देश को स्वतंत्र कराना चाहते थे। वयोवद्घ सावरकरवादी विचारक प्रो एके मल्होत्रा ने एक बार चर्चा में बताया था कि वे जब दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे, तो रविवार के अवकाश में ‘प्रभात’ लेने के लिए मेरठ अपने मित्रों के साथ जाते थे। समाचार पत्र की कुछ प्रतियां लाते थे और वह विश्वविद्यालय के सभी विद्यार्थी बारी-बारी से पढऩे के लिए देते थे।

हर अंक में देशभति की ज्वाला होती थी और किसी न किसी क्रांतिकारी के जीवन की गाथा। यदि किसी कारण से किसी सप्ताह ‘प्रभात’ विश्वविद्यालय में नहीं आता था तो छात्र बेचैनी अनुभव करते थे। गांधीजी के आन्दोलन को भी ‘प्रभात’ से जन प्रचारित करने में काफी सहयोग किया। अनेक क्रांतिकारी इस समाचार पत्र से ज़ुड़ते चले गए। सन् 1936 महान क्रांतिकारी वीर सावरकर रत्नागिरी में स्थानबंदी से मुत होकर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की भूमि मेरठ के दर्शन के लिए आए थे, उनके साथ क्रांतिकारी और आर्य समाज के नेता भाई परमानन्द, क्रांतिकारी आशुतोष लाहिड़ी और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे। तब उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा था कि मेरठ की धरती से अब विचारों की गंगा अवतरित होनी चाहिए जो देश की सुप्त जनता में राष्ट्रवाद की भावनाओं को भर दे। श्री विश्म्बर सहाय विनोद उस समय युवा थे, लेकिन उन्होंने संकल्प लिया कि वे आजादी के आंदोलन में मेरठ की जो भौतिक सहभागिता रही है, उसमें वैचारिक सहभागिता को भी जोड़ेंगे।

इसी भावना ने ‘प्रभात’ का जन्म दिया। जब इसका प्रकाशन आरंभ हुआ तो वीर सावरकर ने अपना आशीष भी भेजा। आजादी से पहले ‘प्रभात’ एक समंवित विचारों का पत्र था। उसमें गांधीजी दर्शन को स्थान भी था तो क्रांतिकारियों की गौरवगाथा भी। स्वतंत्रता के बाद भी ‘प्रभात’ ने अपने दायित्वों को निर्भयता के साथ पालन किया। लेकिन लगता है कि जैसे-जैसे आजादी का समय व्यतीत होता गया, लोगों का मोहभंग भी व्यवस्था से होने लगा। अब ‘प्रभात’ की भूमिका में परिवर्तन आया। वह जनता का प्रवता बनकर विषात व्यवस्था और संवेदनहीन शासन पर जमकर प्रहार करने लगा। सच्चाई बहुत महंगी होती है, और जो पत्रकारिता सत्य की वाहिका होती है, उसको कंटकमय पथ पर चलना पड़ता है। यही ‘प्रभात’ के साथ भी होना आरंभ हो गया। लेकिन ‘प्रभात’ को सिद्घांतों से समझौता पसन्द नहीं था, इसकी कीमत बार-बार चुकानी पड़ रही थी। देश तो आजाद हो चुका था लेकिन गोवा फिर भी पुर्तगालियों के कजे में था। गोवा मुति आंदोलन को जन प्रचारित करने और इस उग्र रूप देने में ‘प्रभात’ की ऐतिहासिक भूमिका है।

‘प्रभात’ के सम्पादक और प्रकाशन श्री विनोद ने केवल कलम से ही नहीं, अपितु गोवा मुति आंदोलन में प्रत्यक्ष भाग लिया। वे इस कारण से जेल यात्रा पर भी गए। देश और आम आदमी के लिए संघर्ष करने वाला अखबार स्वयं संघर्षों का शिकार होने लगा। फिर भी जैसे-तैसे उसे प्रकाशित किया जाता रहा। सन 2006 में दैनिक ‘प्रभात’ के लिए एक नई प्रभात हुई। सुभारती मीडिया लिमिटेड ने इस गौरवशाली समाचार पत्र को जीवित करने के लिए अपने स्वामित्व में ले लिया। सुभारती मीडिया के सामने यह एक बड़ी चुनौती थी कि इस ऐतिहासिक समाचार पत्र की गरिमा और महान उद्देश्यों को परिवर्तित परिस्थितियों में किस प्रकार सार्थक करें। देश में राजनीतिक अस्थिरता, नैतिकता का क्षरण, जीवन मूल्यों में अवमूल्यन के साथ-साथ मीडिया पर छाई बाजारवादी संस्कृति के मध्य स्वयं को सबसे अलग लेकिन आम आदमी के सबसे निकट प्रमाणित करने के लिए लोकरंजन की भावना से कार्य करने का संकल्प लिया गया।

इस नाते दैनिक ‘प्रभात’ से ऐसे कलमकारों को जोड़ा गया जो पत्रकारिता के मूल ध्येय के प्रति समर्पित और अपने-अपने विषयों के प्रखर ज्ञाता हैं। यही कारण है कि आज दैनिक प्रभात एक सम्मानित पत्र माना जाता है और उसको वैचारिक समाचार पत्र का गौरव भी प्राप्त है। निष्पक्षता दैनिक प्रभात का मूल मंत्र है लेकिन तटस्थता नहीं। वर्तमान में दैनिक ‘प्रभात’ तेजी से आगे बढ़ता समाचार पत्र है। इसका विस्तार आम पाठक से आत्मिक संबंध बनाने के कारण ही है। इस समय दैनिक ‘प्रभात’ मेरठ के अतिरिक्त देहरादून, गाजियाबाद, लखनऊ और से भी प्रकाशित होता है। सभी संस्करणों को एक ध्येय मंत्र दिया गया है कि समाचार पत्र का संबंध आम आदमी की आवाज से है, वह शासन या प्रशासन का प्रवता नहीं होना चाहिए। जहां भी कोई नागरिक स्वयं को असहाय अनुभव करें उसकी आवाज दैनिक प्रभात बन जाता है, इसी गुण के कारण पाठकों से आत्मिक रिश्ता बनना स्वाभाविक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश और अन्तरराष्ट्रीय मामलों में, जिसका सरोकार या तो आम आदमी से है, या देश हित से, उस विषय को दैनिक प्रभात प्रभावशाली ढंग से उठाता है।

प्रत्येक रविवार को किसी न किसी मुद्दे पर जनचेतना पैदा करने या व्यवस्था से जुड़े लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पृष्ठ दिया जाता है। समय के साथ-साथ मीडिया का वैचारिक पक्ष काफी पीछे रह गया है, लेकिन दैनिक ‘प्रभात’ ने विचारों की गुणवत्ता और सम्प्रेक्षण क्षमताओं का सदा सम्मान किया है, यही कारण है कि बाजारवादी सोच ने जहां सनसनीजनक समाचारों को बढ़ावा दिया, हमने उन से किनारा कर विचारों को आगे बढ़ाया। यही कारण है कि प्रबुद्घ वर्ग में दैनिक ‘प्रभात’ ने सम्मानजनक स्थान बनाया है। वर्तमान की स्थिति दैनिक ‘प्रभात’ का अन्तिम लक्ष्य नहीं है, यह तो पड़ाव मात्र है, हमारा उद्देश्य हिंदी पत्रकारिता को नवीन आयाम प्रदान करना है। स्वस्थ और स्वच्छ पत्रकारिता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और उसके जीवन मूल्यों की रक्षा करना भी हमारा ध्येय है और रहेगा।

धीरे-धीरे दैनिक ‘प्रभात’ की ज्योतिर्मय किरणों से संपूर्ण हिंदी भाषी क्षेत्रों को आच्छाादित करने की योजना है, समय की गति के साथ पदसंचलन कर दैनिक ‘प्रभात’ आगे बढ़ेगा, ऐसा हम 77वीं वर्षगांठ पर संकल्प लेते हैं। यह भी समझना आवश्यक है कि कोई भी समाचार पत्र उत्तम कागज पर सुंदर साज-सज्जा से युत दस्तावेज नहीं होता। उसकी आत्मा उसके विचार तथा ध्येय है। आजादी से पहले की पत्रकारिता में जाएं तो क्रांति की ज्वाला के वाहक वे ही समाचार पत्र थे जो देखने में आकर्षक नहीं थे, लेकिन विचारों में उनका कोई सानी नहीं था। ‘प्रभात’ का प्रबंधन समाचार पत्र को वैचारिक अभियान के रूप में देखते हैं, इसलिए उसकी बाहरी सुंदरता के साथ उसकी वैचारिक आत्मा को अधिक सबल बनाया जाता है।

अशोक त्यागी
वरिष्ठ पत्रकार

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