चीन का बहिष्कार संभव ही नहीं

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कुछ साल पहले तक जब नवरात्रि आती थी तो मैं नौ दिनों तक व्रत रखता था। व्रत में मैं अनाज का त्याग कर देता था। मंगलवार को व्रत रखता व उस दिन अन्न ग्रहण नहीं करता था। फिर दिल के आपरेशन व डायबिटीज हो जाने के बाद डाक्टर ने मुझे व्रत रखने से मना कर दिया व थोडे समय के बाद कुछ-न-कुछ खाते रहने की सलाह दी व मैंने उस पर अमल करना शुरू दिया। आज जब भी अपने अतीत के बारे में सोचता हूं तो मुझे खुद पर आश्चर्य होता है। अब जब चीन के साथ टकराव होने के बाद मैं लोगों को चीनी सामान की होली जलाते या उसका बहिष्कार करने के नारे लगाते हुए देखता हूं तो मुझे एक घटना याद आ जाती है व मुझे यह सोचने के लिए विवश हो जाना पड़ रहा है कि क्या हम लोग वास्तव में ऐसा कर सकते हैं? बहुत साल पहले जब मैं दीपावली पर रंगीन बल्बो की लडि़या खरीदने दिल्ली में बिजली के सामान बेचने वाले बाजार भगीरथ पैलेस गया था तो वहां एक दुकानदार से अपनी आदत के मुताबिक बात करने लगा।

जब मैंने उससे चीन की लडि़यो के सस्ता होने की वजह पूछी तो वह मुझको कहने लगा कि आप अपने घर जाकर मां-बाप से पूछिएगा तो आपको पता चलेगा कि सबसे पहले जब भारत में अंग्रेजो ने चाय का चलन शुरू किया था तो लोगों को घर-घर जाकर ठेले पर मुफ्त में चाय पिलाते थे ताकि इसे पीने की उनकी आदत पड़ जाए व वे आगे उसे अपनी शर्तों पर बेच सके। आज वहीं हो रहा है। वहीं काम आज चीन कर रहा है। हमें इतना सस्ता सामान उपलब्ध करा रहा है कि इसके इस्तेमाल की हमें आदत पड़ जाए। एक बार हम इसके आदि हो गए तो वह अपनी शर्तों पर अपना काम करेगा। एक दिन भारत में बहुत ज्यादा बेरोजगारी बढ़ जाएगी क्योंकि हमारे देश में चीन ने हमारे उत्पादन करने की आदत खत्म कर दी है व अब हम सिर्फ खरीद-फरोख्त करने के आदि हो गए है।

वह दिन दूर नहीं जबकि इसके कारण देश में इतनी ज्यादा बेरोजगारी होगी कि लोग सड़को पर लूटपाट करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। आज जब कोरोना काल में सड़को पर होने वाली लूटपाट की खबरें पढ़ता हूं तो वह बात याद आ जाती है। सबसे बड़ी आशंका मुझे इस बात की है कि क्या हम उस देश चीन के सामान का वास्तव में बहिष्कार कर पाएंगे जोकि आज न केवल हमारे दो सबसे बड़े त्यौहारो, दीवाली के पटाखे व होली के रंग व पिचकारी बनाकर हमें उपलब्ध करता रहा है। बल्कि हमारी रोजमर्रा की व्यापक चीजो उपलब्ध करवाने में उसका जबरदस्त दखल हो चुका है। क्या हम वास्तव में उसकी अनदेखी कर सकने की स्थिति में हैं? आज पूरे देश में चीनी सामान के बहिष्कार की लहर चल रही है पर हमें इसके लिए व्यवहारिकता पर ध्यान देना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और वह जितना सामान बेचता है उसकी तुलना में लगभग उसका छठा हिस्सा ही हमसे खरीदता है।

आज यह बात किसी से छिपी नहीं कि वास्तव में चीन ही पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कारण बरबादी लाने का जिम्मेदार माना जा रहा है व वह लद्दाख में हमारी जमीन पर जबरन कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। केंद्र व राज्य सरकारें चीन में बने सामान के बहिष्कार के लिए देश में माहौल बना रही है। पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कही थी। व्यापार संबंधी आंकड़े बताते हैं कि भारत चीन से जितना निर्याता करता है उसका सात फीसदी ज्यादा माल वहां से भारत आयात करता है। 2018-19 में भारत ने चीन से 70.3 अरब डालर का आयात किया जबकि उसे महज 16.7 अरब डालर का निर्यात किया। चीन अपने कुल निर्यात का महज दो फीसदी निर्यात ही भारत को कर रहा है।

अगर भारत पूरी तरह से उसके माल का बहिष्कार कर दे तो भी उसकी आर्थिक सेहत पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। इसलिए जब तक हमारी उत्पादन क्षमता पर्याप्त न हो जाए तब तक बहिष्कार का कदम बेहद नुकसानदायी साबित हो सकता है। हालात इतने खराब है कि भारत में आयात किया जाने वाला 60 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक सामान व उत्पादन चीन से ही आता है। भारत में बिकने वाले 5 में से चार सेलफोन चीनी कंपनियों शियोयी, वीवो व ओपो के हैं। देश के सेलफोन बाजार में उनका हिस्सा 60 फीसदी है। इनके अलावा भारतीय सेलफोन में लगने वाले 30 फीसदी पुर्जे व 90 फीसदी खिलौने चीन से ही आयात किए जा रहे हैं। देश में बिकने वाली कुल साइकिलो में से 50 फीसदी चीनी है। चीन ने भारतीय कंपनियों में चार अरब डालर का निवेश किया है। इनमें बास्केट, पेटीएम, काम, पेटीएममॉल, जीमैनो व सुपरडोल सरीखे कंपनियां शामिल है। इनके अलावा भारतीय कंपनियों में बाइजू, ड्रीम-11 फ्लिपकार्ट पैसेंजर, ओला व स्विगो में भी उसने करोड़ों रुपये का निवेश किया हुआ है। इन कंपनियों पर एक तरह से उनका कब्जा ही है। हम चीन को ज्यादातर कच्चा माल निर्यात करते हैं व बदले में उससे तैयार सामान खरीदते हैं। भारत में बनने वाली दवाओं का 90 फीसदी साल्ट एपीआई से ही आयात किया जाता है।

कोविड-19 के दौरान अमेरिका ने जिस हाइड्रो क्लोरोक्वीन नामक दवा के लिए भारत से अनुरोध किया उसका कच्चा माल एक्टिव फार्मोस्यूटिकल इनग्रेडिएटेट एपीआई चीन से आयात किया जाता है। जब हमने अमेरिका व दूसरे देशों को यह दवा सप्लाई की तब संयोग से हम लोग कुछ महीने पहले ही कच्चे माल एपीआई का स्टाक कर चुके थे। चीन ने इस टकराव के बाद अफ्रीका व यूरोप के कुछ देशों को अपने लक्ष्य पर ले लिया है। सबसे बड़ी समस्या विश्व व्यापार संगठन डब्ल्यूटीओ के लिए है जिसके तहत हमारे लिए कानूनी तौर पर चीन में विकसित सामान के आयात पर रोक लगा पाना मुश्किल है। चीन के एक जानकार विशेषज्ञ के मुताबिक हमें सबसे बड़ा खतरा तो उसके द्वारा किए जाने वाले साइबर हमले से हैं। क्योंकि हमने अभी तक देश में अपनी साइबर सेना तैयार नहीं की है। जबकि हमारे यहां कंप्यूटर व संचार व्यवस्था को तबाह करने के लिए चीन ने साइबर हमले करने शुरू कर दिए हैं। भारत सरकार ने भी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए अपने सामान के डिब्बो के बाहर यह लिखना अनिवार्य कर दिया है कि किस देश से है। न तो मैं नरेंद्र मोदी का विरोधी हूं न कांग्रेस भक्त। इसके बावजूद मेरा मानना है कि हम इन बातों पर विचार करके अपने उद्योगों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक व्यवस्था बनाना पहले जरूरी होगा। चीनी सामान के इस्तेमाल के खिलाफ आवेश में बहने के बजाय सोचना होगा।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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