भाजपा : बेहतर संभावनाओं का साल

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साल 2020 भाजपा के लिए मिले-जुले चुनावी परिणामों वाला साल रहा। उसने बिहार में जद (यू) गठबंधन के साथ विधानसभा चुनाव जीता, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में उसे बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 2021 का साल भाजपा के लिए बेहतर संभावनाओं वाला लगता है।

पांच राज्यों में ओपिनियन पोल के शुरुआती संकेत बेहतर चुनावी प्रदर्शन की ओर इशारा कर रहे हैं। हालांकि जनमत सर्वेक्षण असम को छोड़कर कहीं भी भाजपा की सरकार बनने का संकेत नहीं दे रहे हैं। लेकिन फिर भी यह संकेत स्पष्ट है कि भाजपा का प्रदर्शन सुधर सकता है।

भाजपा के सामने केवल असम में सरकार बचाने की चुनौती है, अन्य चार राज्यों में वह विपक्ष में है। पिछले रिकॉर्ड से पता चलता है कि भाजपा को उन राज्यों में सरकार बचाने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है, जहां वह सत्ता में है, जबकि गैर-भाजपा शासित राज्यों में वह बेहतर प्रदर्शन करती है। हालांकि 2019 का लोकसभा चुनाव अपवाद रहा। 2014 के मुकाबले उसका प्रदर्शन बेहतर हुआ।

इस पृष्ठभूमि और लोगों के मूड को देखते हुए लगता है कि 2021 उसके लिए बेहतर होगा। यहां तक कि असम में भी जहां वह सत्ता में है, उसे मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस से किसी भी बड़ी चुनौती की संभावना नहीं है, क्योंकि 2016 में हार के बाद कांग्रेस वहां खुद को फिर खड़ा नहीं कर पाई है। असम में तीन बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई की मौत के बाद कांग्रेस की स्थिति और भी कमजोर हो गई है।

2014 से 2020 के बीच अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन स्पष्ट संकेत देता है कि उसे सरकार को बचाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। 2018 में भाजपा छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सरकार बचाने में विफल रही। झारखंड और महाराष्ट्र में वह चुनाव हार गई। हरियाणा में बहुमत हासिल करने में विफल रही, लेकिन फिर भी दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के साथ गठबंधन में सरकार बनाने में कामयाब रही।

हालांकि हाल के बिहार चुनाव में भाजपा का चुनावी प्रदर्शन गठबंधन सहयोगी जेडी (यू) से कहीं बेहतर रहा, फिर भी वह नीतीश कुमार के साथ मुश्किल से सरकार बना पाई। छत्तीसगढ़ में वोट शेयर 2013 के 41% से घटकर 2018 में 33% रह गया, जबकि राजस्थान में 45% से घटकर 38% रह गया। मप्र में भी 2013 में वोट शेयर 44.8% था, जो 2018 में 41% हो गया। महाराष्ट्र में वोट शेयर में 27.8% से 25.7% की मामूली गिरावट आई।

दूसरी ओर भाजपा ने उन राज्यों में आश्चर्यजनक प्रदर्शन किया है, जहां वह सरकार में नहीं थी। त्रिपुरा में 43.5% वोटों के साथ कुल 60 में से 36 सीटों पर जीत हासिल की। 2013 में उसे केवल 1.5% वोट मिले थे। पार्टी ने उत्तर प्रदेश में भी 312 विधानसभा सीटें 39.7% वोट शेयर के साथ जीतीं। 2017 में उत्तराखंड में भाजपा ने 46.5% वोट के साथ 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की। कर्नाटक में 19.9% से 36.3% वोट शेयर पर पहुंच गई। नगालैंड में वोट शेयर 1.8% से बढ़कर 15.3% हो गया।

अब भाजपा चार राज्यों- पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक, केरल में एलडीएफ और पुड्डुचेरी में कांग्रेस-डीएमके गठबंधन को चुनौती देगी। इन चारों राज्यों में भाजपा के पास खोने के लिए शायद ही कुछ है। कुछ साल पहले तक इन राज्यों में वह महत्वपूर्ण राजनीतिक खिलाड़ी नहीं थी। 2016 में पश्चिम बंगाल में उसे 10.2%, केरल में 10.6%, तमिलनाडु में 2.6% और पुडुचेरी में तो और कम (1.1%) वोट मिले थे। इन राज्यों में लोगों के मूड और संभावित गठबंधनों को देखते हुए भाजपा चुनावी लाभ दर्ज करने के लिए तैयार है।

एकमात्र सवाल यह है कि इन राज्यों में भाजपा सरकार में किस हद तक बदलाव ला पाएगी? तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी के संबंध में इसका जवाब बहुत स्पष्ट है कि पार्टी का आधार बढ़ेगा, लेकिन सरकार बनाने में सक्षम होने का कोई सवाल ही नहीं है। सस्पेंस केवल पश्चिम बंगाल के बारे में है – क्या भाजपा पश्चिम बंगाल में सरकार बदल सकती है? क्या भाजपा यहां वही कर पाएगी जो कुछ साल पहले त्रिपुरा या असम में करने में कामयाब रही थी?

पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में 18 सीटें जीती और 40.6% वोटों के साथ भारी बढ़त बनाई, जबकि टीएमसी ने 43.6% वोटों के साथ 22 सीटें जीती थीं। स्पष्ट संकेत है कि टीएमसी के सामने कठिन लड़ाई है, लेकिन सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या भाजपा पश्चिम बंगाल में ऐसा कर सकती है?

संजय कुमार
(लेखक टिप्पणीकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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